न्यूटन के तीसरे नियम को बताया अधूरा, कहा- इसमें संशोधन की जरूरत : भारतीय वैज्ञानिक

न्यूटन के तीसरे नियम को बताया अधूरा, कहा- इसमें संशोधन की जरूरत : भारतीय वैज्ञानिक
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-हिमाचल निवासी वैज्ञानिक अजय शर्मा ने अमेरिका में आयोजित सम्मेलन में शोधपत्र प्रस्तुत किया

शिमला। हिमाचल प्रदेश के वैज्ञानिक अजय शर्मा ने सैकड़ों साल पुराने न्यूटन की गति के तीसरे नियम पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि यह नियम अधूरा है और इसमें संशोधन की जरूरत है। उन्होंने वॉशिंगटन में अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ फिजिकल टीचर्स के सम्मेलन में इस संदर्भ में शोधपत्र भी प्रस्तुत किया।

बीते एक अगस्त को आयाजित सम्मेलन में शर्मा ने कहा कि न्यूटन के तीसरे नियम के मुताबिक जब दो वस्तुएं आपस में टकराती हैं तो वस्तु का आकार महत्वहीन है। इस तरह क्रिया और प्रतिक्रिया हमेशा बराबर व विपरीत होती है। उन्होंने कहा कि जैसे कोई 100 ग्राम भार की वस्तु गोलाकार, अर्धगोलाकार, छतरीनुमा, स्पाट या अनियमित आकार की भी हो सकती है। शर्मा की शोध के मुताबिक वस्तु का आकार महत्वपूर्ण है और इसका स्टीक अध्ययन न्यूटन के तीसरे नियम के संबंध में नहीं किया गया है।

शर्मा ने इस साल 16 से 20 मार्च तक आयोजित पांच दिवसीय 105वीं इंडियन सांइस कांग्रेस में भी इस आशय का शोध प्रस्तुत किया था। यह शोध पत्र फिजिकल सांइस की प्रोसीडिंग्स में छपा है। न्यूटन के नियम को संशोधित करने वाला उनका शोधपत्र 2016 में अमेरिकन कनाडियन अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका फिजिक्स ऐसेज में पूरी वैज्ञानिक जांच पड़ताल के बाद छप चुका है। यह शोधपत्र आॅनलाइन उपलब्ध है।

दस जून 2018 को अपनी रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय रिसर्च जनरल फांउडेशन ऑफ फिजिक्स के चीफ एडिटर फ्रांसीसी वैज्ञानिक प्रो. कारलों रोबैली ने शर्मा के शोध कार्य को अति महत्वपूर्ण और उपयोगी बताया। उन्होंने शर्मा को प्रयोगात्मक आंकड़े प्रस्तुत करने को कहा है। सभी भारतीय वैज्ञानिकों की भी यही राय है कि शर्मा अंतिम मान्यता के लिए प्रयोगों के माध्यम से न्यूटन की खामियाें को दर्शाएं। केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने 16 जुलाई 2018 को मंत्रालय के सेक्रेटरी प्रो.आशुतोष शर्मा को इस पर विचार कर उचित कदम उठाने को कहा है।

अजय शर्मा का परिचय

वैज्ञानिक शर्मा, हिमाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत हैं और बीते तीन दशकों से न्यूटन, आर्किमिडीज और आइंस्टीन के नियमों-सिद्वांतों में खामियां निकाल चुके हैं। वर्ष 2013 में शर्मा की बियोंड न्यूटन एंड आर्किमिडीज नामक पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। उन्होंने एक पुस्तक और लिखी है जिसका नाम 'बियोंड आइंस्टीन एंड E=mc2 है। दोनों पुस्तकें कैम्ब्रिज इग्लैंड के प्रकाशक ने अपने खर्च पर प्रकाशित की हैं। इसमें नियम को संशोधित किया है। उल्लेखनीय है कि आर्किमिडीज के सिद्धांत 2265 वर्ष पुराने, न्यूटन के सिद्धांत करीब 331 वर्ष पुराने और आइंस्टीन के सिद्धांत करीब 110 वर्ष पुराने हैं।

न्यूटन के नियम

न्यूटन ने गति के तीन भौतिक नियम दिए हैं। ये नियम किसी वस्तु पर लगने वाले बल और उससे उत्पन्न उस वस्तु की गति के बीच सम्बन्ध बताते हैं। इन्हें तीन सदियों में अनेक प्रकार से व्यक्त किया गया है। सबसे पहले न्यूटन ने वर्ष 1687 में इन्हें अपने ग्रन्थ फिलासफी नेचुरालिस प्रिंसिपिआ मैथेमेटिका में संकलित किया था। न्यूटन ने कई स्थान पर भौतिक वस्तुओं की गति से सम्बन्धित समस्याओं की व्याख्या में इनका प्रयोग किया था। अपने ग्रन्थ के तृतीय भाग में न्यूटन ने दर्शाया कि गति के ये तीनों नियम और उनके सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम सम्मिलित रूप से केप्लर के आकाशीय पिंडों की गति से सम्बन्धित नियम की व्याख्या करने में समर्थ हैं। न्यूटन के गति के तीनों नियम संक्षेप में निम्नलिखित हैं-

तृतीय नियम: प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।

द्वितीय नियम: किसी भी पिंड की संवेग परिवर्तन की दर लगाए गए बल के समानुपाती होती है और उसकी दिशा वही होती है जो बल की होती है।

प्रथम नियम: प्रत्येक पिंड तब तक अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है।

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