बच्चें में नैतिक एवं व्यवहारिक शिक्षा का बढ़ता जा रहा है अभाव
वेब डेस्क। जिस प्रकार एक इमारत के बनने में बहुत से साधन लगते हैं वैसे ही जीवन की सुंदरतम इमारत को बनाने में शिक्षा तो महत्वपूर्ण भूमिका निभाती ही है लेकिन इसके साथ अगर नैतिक और व्यवहारिक शिक्षा का समावेश हो जाए तो इसमें चार चांद लग जाते हैं।
ये साधन की बात हो गई। अब बारी आती है निर्माता की। किसी भी निर्माण में जितना महत्वपूर्ण स्थान साधन का होता है उतना ही महत्वपूर्ण स्थान निर्माता का भी होता है। निर्माता यदि खरा है तो उसका निर्माण भी खरा ही होगा। क्योंकि कोई भी निर्माण स्वत: नहीं होता। उसके पीछे कोई न कोई निर्माता जरूर होता है। वह ठोक बजा कर हर बात से तसल्ली करता है कि कहीं से कुछ कमी न रह जाए। जब निर्माण ऐसे शुद्ध निर्माताओं द्वारा किया जाता है तो निश्चित ही परिणाम अपेक्षा से अधिक अच्छे प्राप्त होते हैं। लेकिन इमारत निर्माण और जीवन निर्माण में मूल अंतर यह है कि इमारत में खराबी आने पर उसमें सुधार किया जा सकता है, पुन: निर्माण किया जा सकता है लेकिन यदि जीवन बिगड़ गया तो उसमें सुधार की गुंजाइश लगभग न के बराबर होती है। बच्चे समाज का, देश का भविष्य हैं। एक बच्चे के लिए उसके सबसे पहले निर्माता उसके माता-पिता, परिवार उसके शिक्षक गण होते हैं। इन्हें किताबी ज्ञान के साथ नैतिक एवं व्यवहारिक शिक्षा की भी आवश्यता है जिससे ये नवीन पीढ़ी सद्मार्ग पर चलते हुए स्वयं का भी जीवन प्रशस्त करते हुए समाज व देशहित में कार्य करते हुए उत्तम जीवन जी सके।
...आइए इसी संदर्भ में जानते हैं विद्या विहार हायर सेकेंण्डरी स्कूल, ग्वालियर की प्रिंसिपल श्रीमती प्रतिभा गौर के विचार....
आधुनिकता के इस युग में बच्चों में नैतिक एवं व्यवहारिक शिक्षा का अभाव बढ़ता जा रहा है। इसके लिए विद्यालय एवं परिवार दोनों ही बराबरी के जिम्मेदार हैं। आज हम बच्चों को इस सबके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन इसमें बच्चों से ज्यादा माता-पिता एवं विद्यालय जिम्मेदार हंै। क्योंकि आज परिवार के सदस्यों के बीच आपसी तालमेल एवं समय की कमी है। परिवार में एक-दूसरे के लिए समय ही नहीं है। परिवार के सदस्य बैठकर किसी बात पर चर्चा नहीं करते जिससे उन्हें बड़ों के अनुभव या कुछ सीखने समझने को मिले। आज घरों में बच्चों को रेम्प शो, फैशन शो आदि में भेजने के लिए पूरी तरह प्रयत्नरत रहते हैं किंतु यदि कहीं कोई सांस्कृतिक, ऐतिहासिक या धर्म पर आधारित नाटक होते हैं तो हम उन्हें कभी देखने या भाग लेने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते।
आज विद्यालयों में भी शहीदों की जयंती या हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में कभी चर्चा नहीं की जाती। शिक्षक सिर्फ अपना विषय पूरा करने तक ही सीमित हो गये हैं। प्रत्येक व्यक्ति एक मशीन की तरह काम करता है, जितना उसे सौंपा गया है उतना ही करने की सोचता है। विद्यार्थी को कुछ अलग हटकर बताने में विश्वास नहीं रखता है।
हमारे देश के बच्चों को यह नहीं मालूम होगा कि राम कौन हैं। उनके माता-पिता कौन थे या उनके भाई कौन थे। किंतु यह अवश्य मालूम होगा कि सलमान खान के पिता कौन हैं, कितने भाई हंै। उन्हें अपनी भारतीय संस्कृति बेकार और रुढिय़ों से भरी नजर आती है। वहीं पश्चिमी सभ्यता एवं रहन-सहन ही उन्हें पसंद आने लगा है। भारतीय होते हुए भी अपने आपको पश्चिमी सभ्यता में ढालते जा रहे हैं।
हमारे पड़ौस में रहने वाले या नाते रिश्तेदार कौन हैं इसकी जानकारी हो न हो पर नेट पर इंटरनेशनल चैटिंग बिना देखे, बिना जाने पहचाने कई सारे दोस्त बनाकर बातचीत होती रहेगी। किंतु अपने निकटतम लोगों के साथ बातचीत नहीं होती।
आज स्वतंत्रता की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देने वालों ने हमें क्या शब्द कहे यह नहीं मालूम। रामायण एवं गीता के बारे में जानकारी शून्य है किंतु किस फिल्म में किस अभिनेता ने क्या संवाद कहे वह कंठस्थ है। यही नहीं ऐसी न जाने कितनी समस्याएं हैं जिन्हें दूर करने के लिए माता-पिता एवं विद्यालय दोनों को ही मिलकर प्रयास करने होंगे।
उन्हें यह समझाना होगा कि हमें अपने बच्चों को एक बड़ा आदमी बनाने से पहले एक अच्छा इंसान बनाएं। उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाएं। हमें अपने बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनाना है तो उन्हें हर दिशा में जागरुक करने का प्रयास भी करना होगा।
माता-पिता से फिर यही कहना चाहूंगी कि परीक्षा को लेकर बच्चों को आवश्यक मेहनत करने को कहें लेकिन इतना दबाव न डालें कि यदि उसका रिजल्ट खराब होता है तो वह गलत कदम उठाने का प्रयास करे। परीक्षा में पास या फेल होना जिंदगी का अंतिम पड़ाव नहीं है। अभी तो बच्चों की शुरूआत है आप बच्चों को बराबरी से समझे। उन्हें पर्याप्त समय देंं। उनसे खुलकर बात करें। विद्यालय में शिक्षकगण से संपर्क बनाए रखें और किसी समस्या से ज्यादा समाधान पर ध्यान दें। एक बात आवश्यक रूप से ध्यान रखें कि हमें किताबी कीड़े नहीं बल्कि एक जिम्मेदार बेहतर इंसान बनाने में भी अपनी सार्थक भूमिका निभाना है।
(लेखिका विद्या विहार हायर सेंकेण्डरी स्कूल, ग्वालियर की प्रिंसिपल हैं। )