Interview: कामयाबी पर गर्व करिए लेकिन जमीन से जुड़े रहना जरूरी : सुभाष घई
पणजी / अनिता चौधरी। समुद्री तट पर स्थित गोवा में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उत्सव हर दिन नए अंदाज में अपना रंग दिखा रहा है । उत्सव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे इसकी दिव्यता और भव्यता भी चकाचौंध कर रही है। देश - विदेश के फिल्म कलाकार उत्सव की शोभा बढ़ा रहे हैं तो पणजी में समंदर की लहरें उत्सव में चार चांद लगा रही हैं। नामचीन अभिनेता, निदेशक सहित कई दिग्गजों का जमावड़ा लग चुका है। इस कड़ी में एक नाम जानेमाने फिल्म निर्माता सुभाष घई का भी है जो अपने विशेष अंदाज के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कई यादगार फिल्में देकर अपनी विशेष पहचान बनाई। स्वदेश से बातचीत में घई ने कहा कि यहां हर व्यक्ति एक कहानीकार है, जो कहानियों को जीकर पर्दे पर उतारे वो निर्माता बन जाता है। फ़िल्मी दुनियाँ में अपनी कहानियों को जीवंत बनाने के लिए जुनून जरूरी।
देखें वीडियो -
सुभाष घई के पिता चाहते थे वे फिल्मों में हीरो बनें लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था कि उस अभिनय की आकांक्षा रखने वाली नयी पीढ़ी मास्टर क्लासेज़ फ़िल्म की बारीकियों को सीख सकती है। सुभाष घई ने फिल्म निर्माण में अभिनय के बहुतेरे रंग भरे लेकिन 2006 में सामाजिक फ़िल्म 'इकबाल' के लिए उन्हें राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया। यह उनकी यादगार फिल्मों में से एक है। कालीचरण (1976), विश्वनाथ (1978), कर्ज़ (1980), हीरो (1983), विधाता (1982), मेरी जंग (1985), कर्मा (1986), राम लखन (1989), सौदागर (1991), खलनायक (1993), परदेस (1997), और ताल (1999) । दर्शक के बीच में बतौर निर्माता सुभाष घई की कहानियाँ जब सीने स्क्रीन पर उतरती हैं तो दर्शकों पर किस कदर प्रभाव डालती हैं इसलिए इस बात से भी समझा जा सकता है कि सुभाष घई ने अब तक 18 फ़िल्में बनायीं जिनमें से 14 सुपरहिट रहीं।
फिल्म निर्माता सुभाष घई से विशेष बातचीत स्वदेश के साथ बातचीत में सुभाष घई ने कई पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। उनसे पूछा कि आप कैसे फिल्मों के लिए ढेर सारी कहानियां गढ़ लेते हैं? इस पर उन्होंने कहा कि बचपन में मैं अपनी नानी और मौसी से कहानियां सुनता था । यह कहानियां मेरे लिए प्रेरणाप्रद रहीं। भारत में दस हजार कहानियां संग्रह है, लेकिन अभी भी केवल 25 से 30 कहानियों पर ही फिल्में बनाई गई हैं लेकिन दस हजार के सामने यह कुछ भी नहीं है। अभी बहुत काम और भी करना है और जीवन से जुड़ी उन कहानियों को जीवंत करना है जिनके किरदार से मैं दिन-रात बात करता रहता हूँ। दर्शकों को सुभाष घई के छोटे से शॉट्स का इंतजार रहता था, जो सुभाष घई पर फिल्माया जाता था। ये छोटी ट्विस्ट के पीछे का क्या राज था ? इस बड़े चुलबुले अन्दाज़ में घई ने जवाब दिया कि मेरे पिताजी ने मुझे हीरो बनाने के लिए अकूत पैसा खर्च किया। मुझे आर्ट एवम ड्रामा स्कूल। में भेजा । लेकिन फिल्म उद्योग ने मुझे मौक़ा नहीं दिया और मैं हीरो नहीं बन पाया। इसलिए, मैंने अपनी ही फिल्मों में छोटे से शॉट्स गेस्ट अपियरेंस के तौर पर देना शुरू किया, ताकि मेरे पिताजी का दिल रह जाये और उनको लगे कि मुझमें हीरो वॉर भी कुछ काबिलियत है। सुभाष घई का ये अन्दाज़ भी अनूठा था जो बता रहा था कि कामयाबी पर गर्व ज़रूरी है मगर उतना ही ज़रूरी है ज़मीन से जुड़े रहना। उम्दा और जिंदादिल रहना कि जब बात मज़ाक़ की आये तो खुद से भी मज़ाक़ कर लेना।
आपने सफलता और असफलता के बीच के रास्ते कैसे तय किये? इस पर सुभाष घई का कहना है कि असफलता ही सफलता का राज है। इसको ऐसे समझिए, मेरे पास मेरे हाथ में मोबाइल है, लेकिन मेरे हाथ मजबूत नहीं होते तो मैं मोबाइल नहीं पकड़ पाता। मोबाइल का आगे का स्क्रीन जितना महत्वपूर्ण है, उतना पीछे का भी है। उन्होंने कहा, सफलता और असफलता दोनों का मजा लेना चाहिए। हमें सफलता के साथ-साथ असफलता को भी स्वीकार करना चाहिए और उसे भी वैसे ही सेलिब्रेट करना चाहिए जैसे सफलता का करते हैं। असफलता से हमेशा कुछ सीखना चाहिए और उसे जुनून बनाना चाहिए। 25 साल हो गए सुपरहिट मूवी ताल को आपका अगला प्रोजेक्ट अब कब आएगा जो सिल्वर स्क्रीन पर धूम मचाएगा। इस पर सुभाष घई ने मुस्कुराते हुए कहा कि वेट एंड वॉच, कहीं न कहीं से सूर्य निकलेगा, कहीं न कहीं चाँद निकलेगा और कहीं ना कहीं फिर ताल बजेगा।