श्रीदेवी और माधुरी के नृत्य में सरोज खान ने भर दिए थे रंग

श्रीदेवी और माधुरी के नृत्य में सरोज खान ने भर दिए थे रंग
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विवेक पाठक

दोस्तों अगर मिस्टर इंडिया फिल्म में से हवा हवाई गाना निकाल दिया जाए तो आपको कैसा लगेगा, गर एक दो तीन गाने पर माधुरी दीक्षित न थिरकीं होती तो क्या तेजाब हिट होती, क्या डोला रे डोला नृत्य के बिना देवदास फिल्म दर्शकों को मुदित कर पाती। नहीं कभी नहीं। ये तीनों सदाबहार नृत्य प्रस्तुतियां पूरी फिल्म पर भारी रहीं। बस दिवंगत हो चुकीं मशहूर नृत्य निर्देशिका सरोज खान की शख्सियत और उनका हुनर कुछ इतना ही गहरा और प्रभावपूर्ण था। हिन्दी सिनेमा में 2000 से अधिक गीतों पर रचे गए मनमोहक यादगार नृत्य हमेशा उनकी कला के धरोहर रहेंगे। वे अपने जीवनकाल में हिन्दी सिनेमा को आह्लादित करने वाले नृत्यों से धनवान कर गयीं हैं।

वास्तव में भौतिक रुप से कुछ भारी शरीर वाली मगर असल में चपल नृत्य निर्देशिका सरोज खान हिन्दी सिनेमा का ऐसा शानदार व्यक्तित्व थीं जिनके काम से उनके पेशे का सम्मान बढ़ा है। किसी फिल्म को तैयार करने में नायक नायिका और खलनायक के अलावा सैकड़ों लोगों का अनथक श्रम होता है। क्या हम गीत संगीत और नृत्य के बिना किसी भारतीय फिल्म की कल्पना भी कर सकते हैं। पहले तीन घंटे और अब भी दो से ढाई घंटे की फिल्म में तकरीबन 20 मिनिट का दृश्यांकन गानों पर समर्पित देखा जाता है। फिल्मों में गीत संगीत और नृत्य से से सजे ये पल दर्शकों के मन में तरंग छेड़ते रहे हैं। सरोज खान मध्यान्ह के इन पलों को जीवंत बना देने वाली मल्लिका थीं।

उन्होंने गरीबी के दिन देखे थे। बचपन में एक वक्त के मुश्किल खाने का दौर देखा था। इसके बाबजूद वे जन्मजात प्रतिभा थीं। फिल्मों का मंच 14 साल की उम्र से देख लिया था। कभी बैकडांसर, कभी बाल कलाकार तो आगे सह नृत्य निर्देशक के रुप में उन्होंने संघर्ष करते हुए एक एक कदम आगे बढ़ाया। वे नृत्य को आत्मा से पसंद करती थीं और उसकी यह मोहब्बत धीरे धीरे करके उनको वहां तक लेकर पहुंच ही गयी जहां के लिए वे बनीं थीं।

गीता मेरा नाम से कोरियोग्राफर के रुप में स्वतंत्र शुरुआत की तो फिर मुड़कर पीछे नहीं देखा। आज जब वे दुनिया छोड़ चुकी हैं तो उनकी काबिलियत उनसे नृत्य सीखने वाली अभिनेत्रियां नम आंखो से बता रही हैं। काजोल कहती हैं कि वह ऐसी गुरु थीं कि वे जो सिखाना चाहतीं थीं वह उनके चेहरे और हावभाव में दिखता था। उनके निधन पर अमिताभ बच्चन की सटीक प्रतिक्रिया से आप उनके हुनर की गहराइयों को समझ सकते हैं। अमिताभ ने लिखा कि सरोज जी आपने हमें और इंडस्ट्री को रिद्म, स्टायल, गति की गरिमा और किसी गीत के शब्दों को अर्थपूर्ण डांस में बदलने की कला सिखलाई। वाकई सरोज जी ने हिन्दी फिल्मों में गीत के शब्दों को अर्थपूर्ण डांस में बदलकर अनेक अभिनेत्रियों को शिखर पर पहुंचाया। श्रीदेवी का नगीना फिल्म में मैं तेरी दुश्मन, दुश्मन तू मेरा गीत पर भावपूर्ण नृत्य उनकी अमर पेशकश है। क्या गीत में श्रीदेवी का रौद्र नृत्य, उनकी आंखों का आवेश, चेहरे पर क्रोध एक साथ कदमताल करते नजर नहीं आते। जैसी गीत की धुन वैसे ही नागिन की तरह श्रीदेवी की थिरकन। वाकई सरोजजी का वैसा रचनाधर्म एक चमत्कार जैसा था। आगे उन्होंने हर फिल्म में ऐसे चमत्कार किए। माधुरी दीक्षित के नृत्य से सजे गीत माधुरी और सरोज खान की अमर जोड़ी की यादगार हैं। उन्होंने तेजाब में एक दो तीन गीत पर माधुरी को ऐसा नाचना सिखाया कि आज सालों बाद भी उस पर सिनेप्रेमी झूमना नहीं भूलते। माधुरी को धक धक गर्ल का उपमान मिला तो उसके लिए सरोज खान का धक धक नृत्य मददगार रहा। वास्तव में गाने के बोलों को आत्मसात करके हर शब्द का नाचने के लिए अर्थ निकालना सरोजजी प्रतिभा थी। उन्होंने ताल फिल्म में ऐश्वर्या राय को डांस के यादगार स्टेप्स सिखाए तो ग्रेसी सिंह को राधा कैसे न जले पर ग्रामीण युवती का इठलाते हुए नृत्य करना सिखाया। महिमा चौधरी को परदेश में तो ऐश्वर्या को हम दिल दे चुके सनम फिल्म में मनभावन नृत्य सिखाया।

यकीनन शरीर से भारी होकर भी सरोजजी की नृत्य प्रतिभा सीमाओं से पार थी। वे आंखों से, चेहरे से, पैरों से हाथों से लेकर शरीर के पोर पोर से नृत्य कराने की कला जानती थीं। वे बॉलीवुड नायिकाओं की सदाबहार मास्टरजी रहीं तो उन्होंने गोविन्दा से लेकर युवा कोरियाग्राफर रेमो डिसूजा तक को काफी कुछ सिखाया। आज कहना ही होगा कि सरोज खान जी आपने मन को मयूर कर देने वाला नृत्य हिन्दी सिनेमा में रचा । आपने हिन्दी सिनेमा को डांस से दीवाना बनाना सिखाया है।

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