कन्वर्जन के षड्यंत्रों के विरुद्ध मुखर होता जनजाति वर्ग
देश के विभिन्न हिस्सो में डिलिस्टिंग की मांग वनवासी समाज से मुखर हो रही है।एक सशक्त जनमत इस मुद्दे पर आकार ले रहा है कि संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार जो सरंक्षण औऱ आरक्षण हिन्दू जनजाति वर्ग को सुनिश्चित किया गया है उसका दुरुपयोग ईसाई और मुस्लिम मिशनरीज क्यों उठा रही हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में जनजाति आरक्षण का लगभग 70 फीसदी हिस्सा कन्वर्जन कर ईसाई या मुस्लिम बन चुके लोग उठा रहे है।यह सुखद वातावरण निर्मिति ही है कि देश में न केवल जनजाति समाज इस संवेधानिक दुरूपयोग के बिरुद्ध लामबंद हुआ बल्कि बड़ा तबका कन्वर्जन की भूल को सुधारते हुए वापिस अपने मूल मत की ओर लौट रहा है।मप्र,छत्तीसगढ़, झारखंड,ओडिसा में मतांतरित जनजाति परिवार ईसाइयत के कुचक्र को समझ कर अपनी परम्पराओं अपने आराध्य देवों के साथ खुद को जोड़ रहे हैं। जनजातीय बहुल क्षेत्रों में कन्वर्जन कर दूसरा मत अपना चुके लोगों को अनुसूचित जनजाति वर्ग से बाहर करने की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर हो रहे प्रदर्शनों के बीच कन्वर्जन का शिकार हुए लोगों की घर वापसी का सन्देशप्रद मामला छत्तीसगढ़ के मससुराम का है,।
5 वर्ष पूर्व ईसाई पादरी के बहकावे में आकर अपना मूल सनातनी मत छोड़ ईसाई मत अपनाने वाले मस्सूराम कचलाम ने अपने मूल धर्म में वापसी की है।
छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम बेनूर में आयोजित एक कार्यक्रम में मस्सूराम ने गांव के बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद के साथ अपने समाज में वापसी की है। मस्सूराम के घर-वापसी के कार्यक्रम में विधि विधान से पूजा अर्चना के उपरांत पैर धूल कर ग्रामीणों ने उनकी समाज में वापसी कराई है। इस अवसर पर मस्सूराम ने कहा कि अपने मूल धर्म में लौटकर वे बेहद प्रसन्न हैं और कन्वर्जन का शिकार हुए अपने अन्य बंधुओं से घर वापसी की अपील करते हैं, इस अवसर पर भावुक हुए मस्सूराम ने कहा कि विदेशी शक्तियां हमारी संस्कृति हमारी धार्मिक पहचान मिटाने का षड्यंत्र चला रही है ऐसे में हमें एकजुट होकर अपनी संस्कृति की रक्षा करनी होगी।
पादरी के बहकावे में आकर किया था कन्वर्जन
दरअसल 5 वर्ष पूर्व मस्सूराम एवं उनकी पत्नी बीमारी से ग्रसित हो गए थे, जिस के उपचार के दौरान ही ईसाई मिशनरियों के कहने पर वे स्थानीय पादरी के संपर्क में आए थे, बस फिर क्या था, उपचार के नाम पर पादरी ने बहला-फुसलाकर उनके और उनकी पत्नी का ईसाई मत में मतांतरण करा दिया। मस्सूराम के अनुसार धर्मांतरण के उपरांत उनका और उनके परिवार का नाता अपने समाज के लोगों से टूटने लगा और धीरे-धीरे वे सामाजिक कार्यक्रमों से दूर होते चले गए। मस्सूराम ने कहा कि ईसाई मत अपनाने के उपरांत अपने समाज, अपने भाई बंधुओं से बढ़ती हुई दूरी उन्हें भीतर ही भीतर कचोट रही थी, उन्होंने पादरी के चक्कर में आकर अपने लोगों के सुख-दुख में जाना बंद कर दिया था, समाज के लोग भी धीरे-धीरे उनसे कटकर रहने लगे थे, जिसके कारण वे आहत महसूस करते थे।
बकौल मस्सूराम, पिछले कुछ समय से अवैध धर्मांतरण को लेकर जनजातीय समुदाय में नई जागृति देखी जा रही है और समाज के लोग गांव में बैठकें आयोजित कर मिशनरियों द्वारा चलाए जा रहे षड्यंत्र पर विमर्श कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से समाज में आई इस जागृति से ही उन्हें अपने मूल धर्म में लौटने की प्रेरणा मिली और उन्होंने ग्रामीणों के समक्ष घर वापसी करने की इच्छा जताई, जिसके उपरांत मंदिर में विधि विधान से पूजा अर्चना कर उनकी घर वापसी कराई गई है।
दरअसल मिशनरियों के चक्कर में आकर अपने मूल मत का परित्याग कर ईसाई मत अपनाने वाले मस्सूराम कोई अपवाद नहीं, जनजातीय समुदाय में ऐसे हजारों लोग हैं जो अवैध कन्वर्जन के इस कृत्य का शिकार हुए हैं, हालांकि अब इस षड्यंत्र पर ग्रामीण अंचलों में रहने वाला जनजातीय समुदाय सतर्क हो चला है और उसमें अपने धार्मिक अस्मिता एवं संस्कृति को लेकर नव चेतना का संचार होता दिखाई दे रहा है, यही कारण है कि पिछले कुछ समय से जनजातीय समुदाय डीलिस्टिंग की मांग को लेकर बेहद मुखर रहा है।
जोर पकड़ रही है डीलिस्टिंग की मांग
जनजातीय बहुल क्षेत्रो में कन्वर्जन कर दूसरा मत अपना चुके लोगों को अनुसूचित जनजाति वर्ग से बाहर करने की मांग लगातार जोर पकड़ती दिखाई दे रही है, बीते कुछ दिनों में इस प्रकरण को लेकर छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश एवं झारखंड में जनजातीय समुदाय ने जोरदार प्रदर्शन भी किया है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जो लोग ईसाई मिशनरियों के लालच में अपने धर्म का परित्याग कर रहे हैं उन्हें संविधान प्रदत्त आरक्षण के अधिकारों से वंचित किया जाना चाहिए। ये लोग दोहरा लाभ ले रहे हैं और समाज में इसका गलत संदेश जा रहा है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि "कन्वर्जन के उपरांत यह लोग मिशनरियों के बहकावे में आकर हिंदू देवी देवताओं का अपमान करते हैं, उन्हें भद्दी गालियां दी जाती हैं, जनजातीय समुदाय अब इसे और बर्दाश्त नहीं करेगा, हम इसके लिए संसद से सड़क तक संघर्ष करेंगे।"
दरअसल पिछले कुछ वर्षों में जनजातीय बहुल क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों द्वारा सुनियोजित षड्यंत्र के तहत बड़े पैमाने पर अवैध कन्वर्जन को बढ़ावा दिया गया है, जिनमें से ज्यादातर लोगों को हिंदू धर्म के विषय में भ्रामक जानकारियां देकर उपचार एवं नौकरी के नाम पर लालच देकर उन्हें धर्मांतरित कराया गया है। अब इसको लेकर जनजातीय समाज खासकर युवा वर्ग में आक्रोश देखा जा रहा है, यही कारण है कि डिलिस्टिंग की मांग को लेकर समुदाय सड़को पर है।
इस मुद्दे को लेकर अभी बीते मंगलवार को ही नारायणपुर में जनजातीय समुदाय ने जिला मुख्यालय में विशाल रैली की थी, जिसमें उन्होंने सरकार से डीलिस्टिंग की प्रक्रिया को जल्द से जल्द प्रारंभ करने की मांग की थी, इसी क्रम में हाल ही में मध्यप्रदेश के,धार,बड़बनी मंडला जिलो में जनजातीय समुदाय ने विशाल जनसभा कर कन्वर्जन कर चुके जनजातीय समुदाय के लोगों को अनुसूचित वर्ग से बाहर करने की मांग की है, इससे पहले इस मुद्दे को लेकर झारखंड में भी जनजातीय समुदाय का रोष सामने आया था, समाज के लोगों का कहना है कि सरकार को इस पर प्राथमिकता से ध्यान देते हुए डीलिस्टिंग की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए ताकि धर्मांतरण कर चुके लोगों को यह स्पष्ट संदेश दिया जा सके कि अगर वे अपने मूल धर्म को छोड़कर कोई और संप्रदाय या पंथ अपनाते हैं तो उनके लिए जनजातीय समाज में कोई स्थान नहीं, समाज के वरिष्ठ लोगों का मानना है इस कदम से मस्सूराम जैसे हजारों लोगों को अपने मूल धर्म में वापसी के लिए प्रेरणा मिल सकेगी।वस्तुतः छत्तीसगढ़, झारखंड मप्र ओडिशा के जनजाति समाज में ईसाई मिशनरियों का नेटवर्क स्वतंत्रता से पहले ही स्थापित हो चुका था।वैरियर एल्विन जैसे विदेशी मानव विज्ञानियों की समझ से हमारी सरकारों ने जनजाति समाज को समझने और देखने की दृष्टि निर्मित की जबकि एल्विन जैसे लोग वस्तुतः वेटिकन के एजेंडे पर ही काम के लिए नियुक्त थे।आज वातावरण अगर बदल रहा है तो इसके पीछे वनवासी कल्याण परिषद औऱ समविचारी बीसियों संगठनों की सतत ध्येयनिष्ठ साधना भी है।आशा की जानी चाहिए कि जो गलतियां इतिहास में हुई है उन्हें मौजूदा सरकार दुरुस्त करने के लिए आगे बढ़ेगी।