अथ: बस कथा ... उनकी राजनीति की ठस्स कथा

अथ: बस कथा ... उनकी राजनीति की ठस्स कथा
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नवल गर्ग

वेबडेस्क। चुटकुले बनाने और उन्हें सभी तक पहुंचाने के लिए आजकल बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ती। इधर राजनीति के कुचक्र का पहिया घूमा उधर चुटकुलों की फैक्ट्री से फटाफट उत्पादन शुरू और माल की डिलीवरी भी। चाहे कोई भी घटनाक्रम हो, हमारे फुरसती चुटकुलेबाज तैयार रहते हैं अपनी कलाकारी दिखाने के लिए।

ऐसा ही कमाल पिछले दिनों हुआ जब पप्पू भैया की जिज्जी बाई ने सपना देखा, सपने में श्रमवीरों को, तेज धूप में पैरों में छाले लिए, हाल - बेहाल होकर अपनी माटी की ओर खिंचते देखा, सोई खिंच गई उनके होंठों पर राजनीति में डूबी मुस्कान की रेखा और .... उनके दिमाग में बसें ही बसें निकल पड़ीं। उन्हें लगा कि यह अच्छा अवसर है अपनी दिखावे की राजनीति को आगे बढ़ाने का, हींग लगे ना फिटकरी रंग चोखा जमाने का, क्या पता इसी से बिनकी पार्टी में अच्छे दिनों की खुशबू आ जाये। सो बहिन जी ने आनन फानन में खटखटा दिए फोनवा। सिपहसालार - होशियार, हो जाओ तैयार, अपनी है राजस्थान की सरकार। ले आओ बसें ही बसें उत्तर प्रदेश में। दिखा दो सबको कि हमें सबसे ज्यादा चिंता है प्रवासी मजदूरों की। उन्हें घर पहुंचाने की। फोटो वीडियो में सब अच्छा दिखना चाहिए। मैं भी अच्छे से दिखूं कई कई बार - ऐसा इंतजाम रखिए।

खैर साहब, ये सिपहसालार सब ठहरे असली कांग्रेसी। आनन फानन में एक हजार बसों की सूची कर दी जिज्जी बाई ने प्रेस के सामने भी हाजिर। कहन लागीं कि हम हैं सेवा को तैयार, हमारे ताजा ताजा उगे सेवाभाव में अड़ंगा डाल रही है यू पी सरकार। श्रमिकों को हम ले जायेंगे बसों में भरकर उनकी चौपाल तक। अब भाई योगी जी ठहरे फक्कड़ साधु! वे तो तुरतई समझ गए कि जे सब तो कोरी नाटक नौटंकी ही कर रईं हैं जिज्जी जी। बिनने अपने दूतन से रपट बुलवाई- रपट जे आई कि जिन एक हजार बसन की सूची में से काम की तो गिनती की ही हैं। इनमें नंबर जो दए हैं बिनमें आटो रिक्शा, एम्बुलेंस जैसी मुकती छोटी गाडिय़ों के रजिस्ट्रेशन नंबर भी हैं । जैसे ही जे खबर सामने आई, सोई फक्क पड़ गईं जिज्जी बाई। और उधर सोशल मीडिया पे ही नहीं अखबार और न्यूज़ चैनलन पे जो जी भर कर लानत मलामत भई है बिनकी, बेचारी गरीब की गईया बन गईं जिज्जी बाई। एक दिना तो प्रेस क्रॉन्फे्रंस करके रिरिया रईं थीं- हे जोगी जी! कुछ तो कृपा करो, थोड़ी बहुत सेवा करते हुए फोटो खिंचवाने का मौका कमा लेने दो। पर अब पोल खुली तो काहे का हाई वे और कौन सी गली- उनके सेवा भाव की खूब हवा निकली। फिर इस बात पर खूब चली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में एफ आई आर - एफ आई आर का खेल चला। पर नतीजा यही रहा कि जिज्जी बाई की सेवा दिखाने की चाल और कलाकारी नहीं चली। ब्याज में यह और हुआ कि रायबरेली की एक विधायिका ने जब जिज्जी के खिलाफ सही बात कहने के लिए अपना मुंह खोला सोई जिज्जी ने उन्हें अनुशासन की छड़ी से दिखा दिया बाहर का रास्ता। सो लब्बोलुआब यह कि वे न तो सेवा का दिखावा कर पाईं और न ही मीडिया में कवरेज ले पाईं। उल्टे पहले से ही सिकुड़ी सिमटी कांग्रेस की एक विधायक और गंवा आईं ।

दिल्ली में बड़ी अम्मां ने सभी विपक्षियों की बैठक बुलाई तो उसमें केजरिया और उत्तर प्रदेश वाली बुुआ जी नहीं आईं। आए वे ही जिनका बड़ी अम्मां की पार्टी के साथ कुछ भाईचारा है। इस बैठक में भी उन्होंने कोई बड़े पैने तीर नहीं चलाए। केवल लॉकडाउन में बंद पड़ी अपनी पुरानी गाड़ी को स्टार्ट करने के लिए मोदी को कोसने का राग अलापा, पर वह तो है बहुत पुराना स्यापा। उससे तब कुछ नहीं हुआ जब होना चाहिए था तो अब क्या होता। नतीजा बड़ा सारा शून्य और हाथ से फिसलती बागडोर।

कांग्रेस की हो या जिज्जी, बबुआ और बड़ी अम्मां सभी की वर्तमान स्थिति के लिए हिंदी साहित्य में कई कहावतें, मुहावरे भी हैं। जैसे चौबे जी छब्बे जी बनने गए और दुब्बे जी बनकर लौटे, मुल्ला जी नमाज पढऩे गए और रोज़े गले पड़ गए आदि आदि। फायदा हास्य व्यंग का हुआ कि सोशल मीडिया पर बस पुराण में बड़े चटखारे और स्वाद लेकर नई नई प्रतिभाएं प्रकट हो गईं।

ऐसा ही एक फुस्सू यह है - एक ऑटो वाला पीछे की सीट पर दो सवारी बिठाए ले जाता दिखा तो ट्रेफिक पुलिस ने रोका कि सोशल डिस्टेंसिंग की दृष्टि से आटो रिक्शा में पीछे की सीट पर एक ही सवारी होनी चाहिए। तुमने इस नियम का पालन नहीं किया, इसलिए चालान बनेगा। रिक्शा चालक बोला -साहब! यह ऑटो रिक्शा नहीं, बस है। इसलिए आप मेरा चालान नहीं कर सकते।

एक अन्य नमूना यह भी - मां ने अच्छे भले अर्थशास्त्री को गूंगा मानव बनाया तो बबुआ जी ने आलू से सोना बनाया। इधर पतिदेव ने चाहे जैसी भी हो सब जमीन को कृषि जमीन बना दिया तो खुद जिज्जी बाई ने बेचारे आटो रिक्शा और एम्बुलेंस को बड़ी सारी बस बना दिया।

वैसे भी जिन्हें केवल बातों का जमा खर्च करना हो तो उनके मन को कौन रोक सकता है भला। मन तो मन है चाहे जिज्जी बाई की श्रमिक बस सेवा हो चाहे बबुआ जी की श्रमवीरों के साथ फुटपाथी मीटिंग या बड़ी अम्मां की विपक्षी बैठक। यह सब दिखावे की कलाकारी की कलाबाजियां हैं। ये लोग कोरोना वायरस से लडऩे के लिए भी कभी गम्भीर नहीं रहे। इनका मन नये नये मनोराज्य रचता रहता है और उसमें ये परकाया प्रवेश कर मौज करते रहते हैं। मनोराज्य में विचरण करने वालों के लिए कहा भी है -

तन को सौ - सौ बंदिशें, मन को लगी न रोक ....

तन की दो गज कोठरी, मन के तीनों लोक ...

अब बिचारी कांग्रेस और उसके मुखियाओं के पास केवल मन ही बचा है। काडर जैसा तो कुछ बचा नहीं सो मन में ख्याली पुलाव बनाते हैं और जनता उन्हें ठुस्स या फुस्स कर देती है।

इधर नमो का रूतबा है चाहे कोरोना वायरस से जूझना हो चाहे भारत में आए सदी के सबसे खतरनाक अम्फान तूफान की चुनौती को स्वीकार करना -अपना सब कुछ झौंक कर लाखों लोगों के जीवन को सुरक्षित बचा कर वे सबके लिए बेमिसाल मिसाल बने रहते हैं। राज्यों में किस दल की सरकार है, संकट के समय इसका कोई महत्व नहीं रहता उनके लिए। राहत के पैकेज हों या सुरक्षा की भावना - भारतवासियों की सेवा के लिए वे सदैव एक सेवक की तरह ही खड़े नजर आते हैं सबके साथ। उनको और उनके सिपहसालारों को ऐसे ही संस्कारों से संस्कारित किया गया है उनकी मातृ संस्था द्वारा । तभी तो वे विश्व के एकमात्र नेता के रूप में उस ऊंचाई को प्राप्त कर चुके हैं जिसके आसपास भी अन्य कोई दिखाई नहीं देता। वे हरेक देशवासी को सभी चुनौतियों का डटकर सामना करने, साथ ही अपने मन की बात कहते हुए मुस्कुराने और खिलखिलाने का संदेश भी देते हैं

रुई का गद्दा बेच कर

मैंने इक दरी खरीद ली,

ख्वाहिशों को कुछ कम किया मैंने

और ख़ुशी खरीद ली।

सबने खऱीदा सोना

मैने इक सुई खरीद ली,

सपनों को बुनने जितनी

डोरी खऱीद ली ।

मेरी एक खवाहिश मुझसे

मेरे दोस्त ने खरीद ली,

फिर उसकी हंसी से मैंने

अपनी कुछ और ख़ुशी खरीद ली ।

इस ज़माने से सौदा कर

एक जि़न्दगी खरीद ली,

दिनों को बेचा और

शामें खरीद ली ।

शौक-ए-जि़न्दगी कमतर से

और कुछ कम किये,

फिऱ सस्ते में ही

सुकून-ए-जि़ंदगी खरीद ली ।

मुस्कुराया करो

जब भी करो बात

मुस्कुराया करो

जैसे भी रहो,

खिलखिलाया करो

जो भी हो दर्द,

सह जाया करो

ज्यादा हो दर्द तो

अपनों से कह जाया करो

जीवन एक नदी है,

तैरते जाया करो

ऊँच नीच होगी राह में,

बढ़ते जाया करो

अपनापन यहाँ महसूस हो तो

चले आया करो ।

बहुत सुंदर है यह संसार,

सुंदर और बनाया करो

इसलिए,जब भी करो बात यारो

मुस्कुराया करो।

( चुटकुले कविता आदि सोशल मीडिया से )

(लेखक पूर्व जिला न्यायाधीश हैं।)

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