ग्राउंड रिपोर्ट : भाजपा के दांव से मात खा गए अखिलेश
लखीमपुर खीरी लखनऊ से कोई 150 किलोमीटर की दूरी पर है । पिछले चार दिन से राजनीतिक माहौल गर्म है । देश भर की मीडिया में लखीमपुर छाया हुआ है । उप्र में कुछ महीने बाद ही चुनाव है । ऐसे में राजनीतिक बिसात बिछना लाज़मी है । उप्र में मृत प्रायः कांग्रेस में अचानक जान आ गई । पिछले चार दिन से मीडिया पर कांग्रेस और प्रियंका छाए हुए हैं । अखिलेश यादव सिरे से ग़ायब हैं । भाजपा की यह सोची समझी रणनीति का हिस्सा है ।
समाजवादी पार्टी उप्र की प्रमुख विपक्षी पार्टी है । अखिलेश यादव पूरे दम ख़म के साथ सरकार बनाने का दावा कर रहे थे । वैसे तो सूबे में बसपा का भी वजूद है लेकिन फ़िलहाल हासिए पर है । बसपा के साथ वर्तमान में दलित वर्ग के अलावा अन्य जातियाँ आती नहीं दिख रही हैं । ऐसे में माना जा रहा था कि भाजपा का सीधा मुक़ाबला सपा से होगा । सीधे मुक़ाबले में भाजपा को नुक़सान होने की आशंका रहती है । बंगाल में भाजपा यह भुगत चुकी है ।
वर्तमान हालातों। का विश्लेषण करें तो लखीमपुर काण्ड के बाद शुरूआती आक्रामकता के बाद सपा सिरे से गायब है और प्रियंका – राहुल छाये हुए हैं। ये स्वाभाविक तौर पर अचंभित करने वाला है। ख़ास तौर इस संदर्भ में जब चंद महीने बाद राज्य के चुनाव होने हैं और सपा अपने आपको सत्ता की प्रबल दावेदार जताती है। इस समय अखिलेश आउट ऑफ साइट है ।
कानपुर के मनीष गुप्ता हत्याकांड को देखें - यहाँ अखिलेश ने बाज़ी मारी । लखीमपुर में चूक गए । यहाँ किसानों की मौत के बाद प्रियंका गांधी आधी रात को ही रवाना हो जाती है । उन्हें हिरासत में लेकर गेस्ट हाउस में रखा जाता है । यह भी गौर करने लायक़ है कि किसान नेता राकेश टिकैत को लखीमपुर जाने की अनुमति मिल जाती है । यह भी सोची समझी रणनीति का हिस्सा था । पूरा समझौता राकेश टिकैत के साथ हुआ । यह भविष्य का भी संकेत है ।
इस पूरे घटनाक्रम में अखिलेश यादव देर सुबह घर से निकले । यहीं अखिलेश मात खा गए । राकेश टिकैत के साथ समझौता करके योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव की हवा निकाल दी । इतना सब होने पर भी प्रियंका को चार दिन तक रिहा नहीं किया गया । लिहाज़ा पूरा फ़ोकस कांग्रेस और प्रियंका पर हो गया । यह भाजपा की रणनीति ही है कि अखिलेश को किसी तरह का लाभ न मिले । कांग्रेस कुछ भी कर ले । ज़मीनी स्तर पर ग़ायब है । संगठन कमजोर है । कांग्रेस को ऑक्सीजन मिली । सपा से लेकिन फ़ोकस हट गया । अखिलेश आउट ऑफ साइट हो गए ।
उप्र की राजनीति में यदि मुक़ाबला सीधा अखिलेश यादव से होता है तो मुस्लिम वोट एकजुट होकर सपा को वोट करेगा । भाजपा की चिंता भी यही है । भाजपा को कांग्रेस का उभार भाता है । असुद्दीन औवेसी की ललकार हिन्दुओें को एकजुट करती है ।
प्रियंका के बाद ताजा फोकस राहुल गाँधी को लेकर है। अखिलेश और सपा के बारे में कोई चर्चा नहीं है। चुनावी राजनीति के नजरिये से देखा जाये तो जो पार्टी सबसे ज्यादा माइलेज ले सकती थी, वह किनारे कर दी गयी है, जो पार्टी लड़ाई में है नहीं , उसे भारी प्रतिद्वंद्वी बना दिया गया है। सो घटनाक्रम को करीब से देखें तो कांग्रेस बहुत बढ़िया तरीके से आगे बढ़ते हुए सपा पर राजनीतिक जीत हासिल की जा चुकी है।
फ़िलहाल तो अखिलेश बैकफ़ुट पर हैं । लखीमपुर कांड को भी उन्होंने पीछे छोड़ दिया है । वह अपना विजय रथ लेकर निकल पड़े है । मुद्दे भी अलग हैं । नारे भी अलग हैं । परिणाम भविष्य के गर्त में हैं । आगे आगे देखिए होता है क्या ….।
--