जंगल सत्याग्रह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

जंगल सत्याग्रह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
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डॉ. श्रीरंग गोडबोल

देश को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। इस संदर्भ में स्वतंत्रता संग्राम का लेखा-जोखा स्वाभाविक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी शतादी की दहलीज पर है। ऐसे में यह प्रश्न बार-बार पूछा जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम में संघ का या योगदान है? इस दृष्टि से स्वतंत्रता संग्राम के सविनय अवज्ञा आंदोलन से संघ के संबंधों का अवलोकन अत्यंत प्रासंगिक होगा। यह आलेख मुख्यतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अभिलेखागार में उपलध मूल प्रलेखों तथा तत्कालीन 'केसरी' और 'महाराष्ट्र' मराठी साप्ताहिक समाचार पत्रों में प्रकाशित सामग्री पर आधारित है।

स्वयंसेवकों का अतुलनीय योगदान

सबसे पहले इस प्रश्न का उार कि स्वतंत्रता संग्राम में संघ का या योगदान है? इसका यदि सीधा सा उार देना हो तो कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता संग्राम में संघ का योगदान लगभग शून्य है, पर संघ स्वयंसेवकों का योगदान उल्लेखनीय है। इस उार से अनेक पाठकों को आश्चर्य होगा। इस उार का मर्म जानने के लिए सबसे पहले संघ निर्माता डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और इसी संदर्भ में संघ की वैचारिक भूमिका थोड़ी विस्तार से समझनी होगी। 'स्वतंत्रता कब और कैसे मिलेगी' यह प्रश्न जब सर्वत्र पूछा जा रहा हो तब 'हम पराधीन यों हुए और हमारी स्वतंत्रता अक्षुण्ण कैसे रहे' इस प्रश्न का न केवल मूलभूत चिंतन, अपितु इसके उार हेतु भी डॉटरजी ने प्रयास आरंभ कर दिए थे। डॉ. हेडगेवार ने हमेशा 'नैमिािक' आंदोलनात्मक कार्य तथा राष्ट्र निर्माण के 'नित्य' कार्य को महत्व दिया। इस प्रकार के आंदोलन करने की आवश्यकता ही न पड़े ऐसी परिस्थिति निर्माण करना ही वास्तव में डॉटरजी का दीर्घकालिक उद्देश्य था। आग लगने पर ही आग बुझाने के लिए दमकल को भेजा जाए इस पक्ष में संघ नहीं था। हिन्दू समाज की आंतरिक शक्ति बढ़ाने पर उसका सारा जोर और ध्यान केंद्रित था। डॉ. हेडगेवार के चिंतन में एक और मूलभूत विचार था। संघ और व्यापक हिंदू समाज में किसी भी प्रकार का द्वैत उन्हें मान्य नहीं था। संघ आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, प्रार्थना समाज आदि जैसा कोई पृथक संगठन नहीं है। संघ निर्माता की सोच थी कि संघ हिंदू समाज के अंतर्गत एक संगठन न होकर हिंदू समाज का संगठन है। उनका यह अनोखा मौलिक चिंतन दो घटनाओं से स्पष्ट होता है। हैदराबाद रियासत के 85.5 प्रतिशत हिन्दुओं पर निजाम के राज में होने वाले अत्याचारों के विरोध में 1938 में निशस्त्र प्रतिकार आंदोलन शुरू किया गया। उस समय कुछ हिन्दूवादियों की अप्रसन्नता झेलकर भी डॉ. हेडगेवार ने आंदोलन में शामिल होने संबंधी अनुमति पत्र संघ शाखाओं को नहीं भेजा। पर जिन्होंने इच्छा जताई, उन्हें व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद देते हुए डॉ. हेडगेवार ने उनका अभिनंदन किया। उन्होंने कहा कि 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक, जो हिंदू समाज का ही एक घटक है, संघ में आते समय समाज की सदस्यता से त्यागपत्र देकर नहीं आता। हिंदू समाज के प्रत्येक घटक के लिए ऐसे आंदोलन हेतु जो कुछ भी आवश्यक है वह करने के लिए स्वयंसेवक भी स्वतंत्र है।'

(रा. स्व. संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, registers/Register 1DSC_0056)।

महाराष्ट्र प्रांतिक हिन्दूसभा के कार्यवाह शंकर रामचंद्र दाते इस आंदोलन से शुरुआत से जुड़े हुए थे। मई 1938 में जब डॉ. हेडगेवार हिंदू युवक परिषद हेतु पुणे आए हुए थे, उस समय श्री दाते ने उनसे भेंटकर कम से कम पांच सौ प्रतिकारक तैयार करने की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की। श्री दाते के अनुसार उस समय डॉ हेडगेवार ने कहा, 'पांच सौ लोग सत्याग्रह में सहभाग हेतु भेजने हैं। और भी भेजने पड़े तो भेजेंगे। बाकी का तंत्र आप संभालिए।' डॉ. हेडगेवार के मुंह से अत्यंत आत्मविश्वास और सह संवेदना के साथ निकले ये शरद दाते जी को ठीक से स्मरण रहे।

(संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, Dr.Hedgewar Athavani w, 000v-A to 000v-D).

डॉ. हेडगेवार का विश्वास था कि 'संघ कुछ नहीं करेगा, परन्तु देशभक्ति से संस्कारित संघ स्वयंसेवक अपने पृथक संस्थात्मक अस्तित्व की व्यवस्था न करते हुए समाजघटक के रूप में स्वाभाविक रूप से देशहित का कार्य करेंगे।' इस आंदोलन के लिए सतारा और दक्षिण महाराष्ट्र संस्थान के लिए स्थापित युद्ध मंडल के अध्यक्ष सतारा जिला संघचालक शिवराम विष्णु मोड़क थे और महाराष्ट्र प्रांत संघचालक काशीनाथ भास्कर लिमये मंडल के सदस्य थे (केसरी, 17 फरवरी, 1939)। हिंदू महासभा नेता ल. ब. भोपटकर के नेतृत्व में 200 प्रतिकारकों की टुकड़ी भेजने के लिए 22 अप्रैल, 1939 को शनिवार बाड़े में आयोजित विशाल सार्वजनिक सम्मान सभा में डॉ. हेडगेवार स्वयं व्यासपीठ पर विराजमान थे (केसरी, 25 अप्रैल, 1939)। इसके अतिरिक्त भोपटकर जी की टुकड़ी को विदा करने के लिए डॉ. हेडगेवार दूसरे दिन पुणे रेलवे स्टेशन गए थे। इस आंदोलन में सहभागी होने वाले सैंकड़ों संघ स्वयंसेवकों में स्वयं डॉ. हेडगेवार के भतीजे वामन हेडगेवार भी थे। जेल की अंधेरी कोठरी में चार दिन तक उनके साथ मारपीट की गई। (केसरी, 9 जून, 1939)।

अप्रैल 1937 में पुणे के सोन्या मारुति सत्याग्रह के समय डॉ. हेडगेवार ने यह जानकारी दी। पास में स्थित तांबोली मस्जिद की नमाज में व्यवधान उत्पन्न होने की बात कहते हुए पुणे के जिलाधिकारी ने सोन्या मारुति मंदिर के सामने वाद्य वादन बंदी घोषित कर दी थी। उस आदेश के विरोध में पुणे के हिंदुओं ने सत्याग्रह किया। उस समय पुणे आए डॉ. हेडगेवार से कुछ लोगों ने प्रश्न किया कि 'सत्याग्रह में संघ या करेगा'? इस पर डॉ. हेडगेवार ने कहा था, 'यह सत्याग्रह सभी नागरिकों का है। सैकड़ों स्वयंसेवक इसमें एक नागरिक के रूप में सहभागी हो रहे हैं। यदि संघ के स्वयंसेवक के रूप में ही पहचान आवश्यक है तो उन सभी के सिर पर सींग लगा देता हूं।' दरअसल, उसी समय डॉ. हेडगेवार ने सजावट हेतु दीवार पर टंगने वाले नील गाय के सींग नागपुर ले जाने हेतु खरीदे थे। उनका ही संदर्भ इस उार में झलकता है।

(संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, , NanaPalkar/Hedgewar notes - 5, 5_141).

डॉ. हेडगेवार ने स्वयं इस सत्याग्रह में शामिल होकर सांकेतिक गिरफ्तारी दी थी। उन्होंने एक संगठन के रूप में संघ को उस सत्याग्रह में उलझाने के लिए इनकार कर दिया था। डॉ. हेडगेवार के स्वयं के बनाए गए नियमों में एक महत्वपूर्ण अपवाद मिलता है। 'औपनिवेशिक पद' (डोमिनियन पोस्ट) की संकल्पना में घुटती हुई कांग्रेस ने दिसंबर 1929 के लाहौर अधिवेशन के समय 'स्वातंत्र्र्य' ध्येय निश्चित किया और 26 जनवरी, 1930 को 'पूर्ण स्वराज दिवस' के रूप में मनाने का आह्वान किया। आरंभ से ही 'सम्पूर्ण स्वातंत्र्र्य' के ध्येय को अपने हृदय में संजोने वाले डॉ. हेडगेवार इससे बहुत आनंदित हुए। उन्होंने उस समय सभी स्वयंसेवकों को निर्देश दिए कि, 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सभी शाखाएं 26 जनवरी, 1930 को अपने-अपने संघ स्थान पर स्वयंसेवकों की सभा आयोजित कर राष्ट्र ध्वज यानि भगवा झंडे का अभिवादन करें। व्याख्यान के माध्यम से यह बताएं कि 'स्वातंत्र्र्य' का या अर्थ है और इस ध्येय को हम बनाए रखें। साथ ही यह भी विस्तारपूर्वक बताएं कि यह किस प्रकार प्रत्येक हिंदूवासी का कर्तव्य है। इसके अतिरिक्त कांग्रेस द्वारा 'स्वातंत्र्र्य' ध्येय अपनाने के लिए अभिनंदन समारोह भी आयोजित करें'

(संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, A Patrak by Dr Hedgewar to Swayamsevaks - 21 जनवरी, 1930)।



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