कभी शान का प्रतीक रही लाठी ग्वालियर मेले में ग्राहकों का कर रही इंतजार

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ग्वालियर/स्वदेश वेब डेस्क। व्यापार मेले का जब हम नाम सुनते हैं तो बड़े शोरूम और व्यपारिक संस्थान, झूले और पापड़ हमारे ध्यान में आते हैं।मेले में लम्बे समय से लगने वाले लाठियों के बाजार के तरफ अब कुछ ही लोगो का ध्यान जाता हैं। यही कारण हैं की पिछले कुछ समय से मेले में इसका बाज़ार पहले की अपेक्षा कुछ छोटा हो गया हैं। उत्तर प्रदेश के जालौन जिले से आये व्यापारी मेहराज खान ने बताया की वह मेले में 35 सालो से लाठियों की दुकान लेकर आ रहे हैं।उन्होंने बताया की आज से पांच-सात साल पहले तक करीब 30 से 35 दुकाने आया करती थीं । लेकिन समय के साथ लाठियों का चलन युवाओ में कम हो गया हैं। जिसके कारण मेले में लाठियों के व्यापारियों की संख्या भी लगातार घटती चली गई। मेले में इस बार लाठियों की सिर्फ दो ही दुकाने आयी हैं।

उन्होंने बताया की लाठी बनाने का उनका यह व्यापार पुश्तैनी हैं। उन्होंने बताया की पहले वह अपने पिता के साथ मेले में आते थे। उस समय व्यापार मेले में गाँव के बुजुर्गो से लेकर युवाओ इसे विशेष रूप से खरीदने आते थे। लाठी उस समय के युवाओ में शान का प्रतीक होती थी। पहले के समय में गाँवो के साथ-साथ शहरों में भी लाठी प्रतियोगिताएं होती थी।जिसकी वजह से भी लाठी का प्रचलन अधिक था।

अब समय के साथ लोग आधुनिकता का ध्यान अधुनिक खेलो की और ज्यादा हो गया हैं। जिसके कारण अपने पारम्परिक खेलो से दूर होते जा रहें हैं। अब दस में से कोई एक ही लाठी खरीदने के लिए आता हैं।

ऐसे बनती है लाठी

सही बांस का चयन-

लठ्ठ अथवा लाठी को बनाने के लिए सबसे ज्यादा जरुरी हैं सही बांस का चयन करना। लठ्ठ बनाने के लिए विशेष प्रकार के बांस का प्रयोग किया जाता हैं। जिन बाँसो का प्रयोग लठ्ठ बनाने के लिए किया जाता हैं। उनका ठोस होना बेहद आवश्यक होता हैं , खोखले बांस से लाठी को तैयार नहीं किया जा सकता। इसका प्रयोग सिर्फ बल्ली एवं सीढ़ी आदि बनाने के लिए किया जाता हैं।

बांस सूखने का इंतजार -

सही बांस का चयन कर उसे खेत से काटकर लाने के बाद धुप में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता हैं। कड़ी धूप मे यह करीब चार से पांच दिन में सूख जाता हैं। बांस के सूखने के बाद इसकी घिसाई एवं सफाई की जाती हैं। इस पर लगे रेशो को हटाया जाता हैं ताकि बाद में पकड़ते समय हाथो में फांस व कांटा न लगे। इसकी दो से तीन बार घिसाई की जाती हैं जब तक की यह पूरी तरह आफ नहीं हो जाता।

गर्म कर करते हैं सीधा -

जांगल एवं खेत से काटकर लाने के समय यह बाँस कुछ टेड़े होते हैं, जिन्हें उपयोग में लाने के लिए सीधा किया जाता हैं। तेज आग में गर्म करने के बाद जब यह कुछ नरम हो जाते हैं तब बाँसो को सांचे में फंसाकर सीधा किया जाता हैं।

लोहे की जाली से बनती हैं डिजाइन -

लाठी के सीधा होने के बाद इस पर डिजाइन तैयार की जाती हैं। इस डिजाइन को तैयार करने के लिए एक विशेष प्रकार की लोहे की जाली का उपयोग किया जाता हैं। इस जाली को गरम कर बांस पर दागा जाता हैं। जिससे लाठी पर दिखने वाली सुंदर डिजाइन उभर कर आती हैं। इसके बाद लाठियों पर रंग रोगन कर इन्हें बेचने के लिए दुकान में सजाया जाता हैं।

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