अमृत महोत्सव विशेष : विंध्य के अमर शहीद 'मथानी लोहार'..!

अमृत महोत्सव विशेष : विंध्य के अमर शहीद मथानी लोहार..!
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- जयराम शुक्ल

- जिनके बारे में हमने जानने की कोशिश तक नहीं की..।

सन् अठारह सौ संतावन की क्रांति में आधिकारिक (गजेटियर व अन्य सरकारी दस्तावेजों के अनुसार) तौर पर विंध्यक्षेत्र से रणमत सिंह, श्यामशाह के बाद एक नाम जो प्रमुखता के साथ आता है वह है ..मथानी लोहार.. का। क्या कोई अमर शहीद मथानी लोहार के गाँव व उनके वंशजों के बारे में कुछ जानता है..? सन् संतावन की क्रांति में आरा(बिहार) से कुँवर सिंह ने कूँच किया रीमा राज्य की ओर, यहां के राजा से मदद की उम्मीद में। क्रांतिकारियों के अगुआ नाना साहब ने रीमा राजा रघुराज सिंह को अँग्रेजों के खिलाफ मदद देने के लिए मार्मिक पत्र लिखा था। (रीवा स्टेट गजेटियर में नानासाहेब का पत्र व रघुराज सिंह का जवाब दोनों ही वृस्तित रूप में उल्लिखित हैं)

तब अँग्रेजों के पक्के गुलाम बन चुके और अपनी 'कामलीला' के लिए सरनाम रघुराज सिंह ने नाना साहब को जवाबी पत्र लिखा कि यदि कोई बागी (क्रांतिकारी) रीमा राज्य की सीमा में घुसेगा तो उसके साथ दुश्मनों जैसा सलूक किया जाएगा(यह धमकी भी रीवा स्टेट गजेटियर में उल्लिखित है)। सूबेदारों व कारिंदों को क्रांतिकारियों से निपटने का हुक्म दे कर रघुराज सिंह अपनी सोलह रानियों व रनिवास की तमाम सेविकाओं को लेकर बाँधवगढ भाग गए( ठीक वैसे ही जैसे- अँग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी)।

उस समय बागी रणमत सिंह अजयगढ, पन्ना, बँरौधा, चित्रकूट को अपना इलाका बनाए हुए थे..और अँग्रेजों को मुँहतोड़ सबक सिखा रहे थे। रीमा राजा से बगावत करने वाले रणमत सिंह के विश्वस्त साथी मथानी लोहार और हुशमत खान ने कुँवर सिंह व उनके क्रांतिकारी साथियों को कटरा- सोहागी के पहाड़ की तराई से होते हुए डभौरा पहुंचाया। यहाँ रणजीत राय दीक्षित ने क्रांतिकारियों को अपनी गढ़ी में पनाह दी..। कुछेक दिन ठहरने के बाद क्रांतिकारी वहां से बाँदा की ओर निकल गए। इसके बाद अँग्रेजों ने रीमा राजा के सैनिकों को लेकर रणजीत राय की गढ़ी को घेरा।

कुँवर सिंह व क्रांतिकारियों की डभौरा से रवानगी के बाद वीर योद्धा मथानी लोहार.. अपने दर्जन भर साथियों सहित डभौरा में रुके रहे। देसी मुखबिरों ने अँग्रेजों को यह खबर दे दी थी। फिर यहां-- यानी कि डभौरा में अँग्रेजों( सिपाही सभी रीमा राजा के थे, सिर्फ कमांडर अँग्रेज था) और क्रांतिकारियों के बीच भीषण युद्ध हुआ। अँग्रेज वीर योद्घा मथानी लोहार को पकड़कर कुँवर सिंह व उनके क्रांतिकारी दस्ते को दी गई मदद के आरोप में दंड देना चाहते थे। रणजीत राय दीक्षित व उनके बेटे ने यहां अँग्रेजों की सेना का डटकर मोर्चा लिया.. वीर योद्धा मथानी लोहार भी अपने दर्जन भर साथियों के साथ अँग्रेजों से लड़े। रणजीत राय का एक हाथ कटकर अलग हो गया फिर भी वे वीरतापूर्वक लड़ते रहे। संभवतः मथानी लोहार यहीं शहीद हुए..। अँग्रेज इन्हें जिंदा नहीं पकड़ पाए।

बाद में अँग्रेजों के हुक्म पर उनके देसी करिंदों ने रणजीत राय दीक्षित की डभौरा की गढ़ी का नामोनिशान तक मिटा दिया। मालूम होना चाहिए कि रणजीत राय के बाद की तीन पीढ़ियों ने स्वातंत्र्य समर में भाग लिया। ठाकुर रणमत सिंह को रीमाराज्य के दीवान दीनबंधु मड़रिहा ने छलपूर्वक रीमा बुलाया और अँग्रेजों से हुई संधि के अनुरूप रघुराज सिंह ने इन्हें अँग्रेज पालटिकल एजेंट के हाथों सौंप दिया। बाद में अँग्रेजों ने रणमत सिंह को फाँसी में टँगा दिया( बाँदा ले जाकर)। बाबा श्यामशाह को बुडवा (शहडोल) के ठाकुरों ने बुलाया और फिर उनके लौटते वक्त धोखा देकर एक खेत की मेंड़ पर पत्थरों से पीट-पीटकर उन्हें मार डाला।

अँग्रेजों ने श्यामशाह की जिंदा या मुर्दा गिरफ्तारी पर आकर्षक इनाम रखा था। बाद में यह इनाम बुडवा के ठाकुरों को मिला, रीमा राजा की ओर से, और अँग्रेजों की ओर से भी। रीमा राज्य और अँग्रेजों के बीच समझौता अजीत सिंह के कार्यकाल में हुआ लेकिन सबसे ज्यादा निभाया रघुराज सिंह और व्येंकटरमन सिंह ने। अँग्रेज जिस भी किसी राजा को गुलाम बनाते थे उसे इंग्लैड की महारानी विक्टोरिया के क्राउन का रिप्लिका( हूबहू सोने का बना) देते थे। राजा की गद्दी पर यही क्राउन रखा जाता था। रीवा किला में यह क्राउन अभी भी रखा है(जाकर दर्शन कर सकते हैं)।

मजेदार बात यह कि किसी स्थानीय पत्रकार ने इस खूबसूरत मुकुट के बारे में किला स्थित म्यूजियम के क्यूरेटर से जानना चाहा तो उसने बता दिया कि महाराजा को उनके पराक्रम के लिए यह विक्टोरिया क्रास( ब्रिटेन का सर्वोच्च सम्मान) दिया गया था। यह कहानी स्थानीय अखबारों में छपी भी। बहरहाल मेरी चिंता और जिग्यासा अमरशहीद 'मथानी लोहार, हुशमत, और दयाराम के लिए है जो सन् संत्तावन के स्वातंत्र्य समर के सेनानी थे, को लेकर है। क्योंकि अन्य सेनानियों की भांति इनके गाँव का अतापता सरकारी गजेटियर में भी नहीं है। रणमत सिंह, श्यामशाह को उनकी शहादत के लिए सभी जानते हैं..। दो महाविद्यालयों के नाम ही इन्हीं पर हैं। इनसे कुछ कम ही सही लेकिन रणजीत राय दीक्षित के बारे में भी जानते हैं..।

अमर शहीद मथानी लोहार के बारे में सिर्फ स्टेट गजेटियर, सन् संतावन के अमर शहीदों की सरकारी सूची में सिर्फ नाम और उनके पराक्रम भर का जिक्र है..। किस गाँव के थे..अब उनके वंशज कहाँ हैं इसके बारे में कुछ भी पता नहीं..। संभव है अप्रसिं. विश्वविद्यालय या ठाकुर रणमतसिंह के इतिहास विभाग के विद्वानों ने कुछ पता लगाया हो..शोध, सर्वे आदि कराए हों.. लेकिन यह कभी प्रकाश में नहीं आया..।

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