शिवराज सरकार से बालिकाओं को आसमान छूने के लिए मिलते पंख
मध्य प्रदेश में शिवराज की सरकार बालिकाओं के उज्जवल भविष्य एवं वर्तमान के लिए कितने संवेदनशील हैं, यह उनकी सत्ता में आने के बाद निरंतर के कार्यकलापों से स्पष्ट हो रहा है। न केवल कन्या के महत्व को समाज जीवन में उन्होंने बार-बार अपने आदेशों एवं निर्णयों के जरिए बतलाने का प्रयास किया है, बल्कि स्वयं सपत्निक सदैव अपने आचरण से भी यह जताया है कि सशक्त बालिकाएं ही समर्थ समाज एवं राज्य के साथ शक्ति सम्पन्न राष्ट्र का निर्माण करती हैं, इसलिए सभी के मन में बालिकाओं के लिए अति आत्मीय भाव होना चाहिए। यही कारण है कि उन्होंने प्रदेश में सभी शासकीय कार्यक्रमों के लिए यह अनिवार्य कर दिया कि कोई भी आयोजन हो, वह बिना कन्या पूजन से शुरू नहीं हो सकेगा ।
वस्तुत: सीएम शिवराज को सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के अवसर पर कन्या पूजन अनिवार्य रूप से करते और अनेक निर्धन कन्याओं के विवाह में बड़े भाई की भूमिका निभाते हुए कन्यादान करते हम सभी उन्हें कई बार देख भी चुके हैं, यही कारण है कि वे अनेकों के पिता तुल्य बड़े भाई और उनकी संतानों के लिए 'मामा' हैं। प्रदेश की बच्चियों को लेकर यहां मामाजी की चिंताएं आम नहीं हैं, वह खास हैं, उन्हें राज्य की हर बेटी अपने ही घर का सदस्य नजर आती है, इसका प्रमाण एक बार फिर आज उन्होंने अपने उद्बोधन और बेटियों के हक में किए जानेवाले कार्यों व तमाम इस दिशा में की गई घोषणाओं से स्पष्ट कर दिया है ।
चौहान ने फिर दोहराया है कि उनके लिए बेटियों की सुरक्षा (प्रोटेक्शन), जागरूकता (अवेयरनेस), पोषण (न्यूट्रीशन), ज्ञान (नॉलेज) तथा स्वास्थ्य (हेल्थ) सबसे अहम है, इसके लिए ही इस अनूठे अभियान 'पंख' का शुभारंभ किया गया है। मध्यप्रदेश में बेटियों और महिलाओं के विकास की राह की सभी बाधाओं को दूर किया जाएगा। बेटियां आकाश से आगे जाकर अंतरिक्ष तक उड़ान भरें, इसके लिए पूरी ताकत से 'पंख' अभियान का संचालन मिशन मोड पर किया जाएगा। बेटियों के साथ अपराध करने वाले तत्वों को सरकार 'क्रश' कर देगी। ऐसे अपराधियों की सम्पत्ति नष्ट कर दी जाएगी। सजा भी ऐसी देंगे कि जमाना याद करेगा।
वस्तुत: राष्ट्रीय बालिका दिवस पर सीएम शिवराज के कहे ये शब्द इतना तो स्पष्ट कर देते हैं कि उनके मन में एक कसक है, दिल में दर्द है कि क्यों नहीं प्रदेश की बेटियों इस प्रकार से बन जाती ताकि हर मुश्किल का सामना वे अकेले ही कर पाएं । शायद यही वह कारण भी रहा है, जिसके चलते उन्होंने शिशु के कोख में आने से लेकर मृत्यु के बाद तक परिवार की सहायता के लिए मध्यप्रदेश में अनेक योजनाएं चला रखी हैं। सभी योजनाओं का उद्देश्य महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान लाना ही तो है।
शिवराज जब अपनी बात कहते हैं तब कई बार उन्हें भावुक होते हुए देखा गया है, उन्होंने वर्ष 1990 में विधायक बनने के बाद और वर्ष 1991 से सांसद के रूप में मित्रों के सहयोग से अभावग्रस्त कन्याओं के विवाह के लिए सहायता देने का कार्य शुरू किया था। वर्ष 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, लाड़ली लक्ष्मी योजना, प्रतिभा किरण योजना, मातृ वंदना योजना, उदिता योजना, वन स्टॉप सेंटर का संचालन, लाडो अभियान का संचालन, गांव की बेटी योजना साकर की । फिर इसमें आगे प्रदेश में महिला स्व-सहायता समूहों को सशक्त बनाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने और आर्थिक लाभ दिलवाने का कार्य हो या पुलिस बल में बेटियों की भर्ती के लिए प्रावधान कर उन्हें सशक्त बनाने की ठोस पहल । कुल मिलाकर यह सभी पहल कर और इन सभी का उद्देश्य एक ही है कि मध्य प्रदेश की बेटियां लंबी उड़ान भरें।
आशा की जानी चाहिए कि इसी दिशा में एक कदम ओर आगे बढ़कर जो 'पंख' अभियान प्रदेश में आरंभ हुआ है, वह भी मातृ शक्ति के लिए उनके जीवन में विश्वास और आगे बढ़ने का माध्यम बनेगा। यह राज्य की बालिकाओं के संरक्षण, जागरण, पोषण, ज्ञान, स्वास्थ्य, स्वच्छता का प्रतीक बन कर हम सभी के समक्ष आए और यह अभियान बालिकाओं और महिलाओं की निराशा को दूर अवश्य करे।
इसके साथ एक धन्यवाद केंद्र की मोदी सरकार को भी जाता है कि उसकी 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना किशोरियों को चहुंमुखी विकास में मदद करती है। मध्यप्रदेश में इसे नया स्वरूप दिया गया है। पंख अभियान भी इस योजना का ही हिस्सा है, जिसके अंतर्गत अगले दो महीनों की गतिविधियों का कैलेण्डर तैयार किया गया है। अभियान के अंतर्गत जिला स्तर पर विभिन्न विभागों के सहयोग से किशोरियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाएगा। किशोरियों का डाटाबेस तैयार किया जाएगा। इससे उनके विकास में सहयोग मिलेगा। जनप्रतिनिधि और अशासकीय संस्थाओं को भी अभियान से जोड़ा जाएगा।
वस्तुत: इतना ही नहीं तो बालिका जन्म को प्रोत्साहन, बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, पॉक्सो एक्ट, दहेज प्रतिषेध अधिनियम के प्रचार-प्रसार, किशोरियों और उनके अभिभावकों को कुप्रथाओं की समाप्ति के लिए जागरूक करना, किशोरियों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाना, उनके पोषण के स्तर को सुधारना, पंचायत स्तर पर वोकेशनल ट्रेनिंग देना और उनकी नेतृत्व क्षमता विकसित करना अभियान के अंग हैं।
यहां एक तरह से देखा जाए तो जब केंद्र और राज्य सरकारों की विचारधारा एवं संगठन एक हो तो निर्णय एवं क्रियान्वयन के स्तर पर किस तरह से कोई योजना शीघ्रता के साथ लाभार्थी तक पहुंचती है, वास्तव में देखा जाए तो यह 'पंख अभियान' उस नजरिए से भी आज हमारे सामने एक श्रेष्ठ उदाहरण के रूप में भी सामने है, ऐसा भी कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा।
लेखक फिल्म प्रमाणन बोर्ड के पूर्व सदस्य एवं पत्रकार हैं