"वन नेशन, वन हैल्थ" पॉलिसी की ओर बढ़ती मोदी सरकार
आज 11 दिसम्बर को देश भर के एलोपैथिक चिकित्सक काम बंद हड़ताल पर रहे है। यह हड़ताल मोदी सरकार द्वारा आयुष चिकित्सकों को कतिपय शल्य क्रिया के साथ एलोपैथिक परामर्श की अनुमति के विरोध में की गई ।इंडियन मेडिकल एशोसिएशन ने सरकार के इस निर्णय का आरम्भ से ही तीखा विरोध किया है।एशोसिएशन ने इसे " मिक्स थैरेपी " की संज्ञा देकर एक खतरनाक कदम बताया है।दूसरी तरफ मोदी सरकार इस मामले पर नीतिगत रूप से बहुत ही तेज निर्णय ले रही है ताकि 135 करोड़ नागरिकों के आरोग्य को सुनिश्चित किया जा सके।
सरकार ने देश में एकीकृत स्वास्थ्य नीति को अमल में लाने के कारवाई भी आरम्भ कर दी है।2030 तक "एक राष्ट्र एक स्वास्थ्य प्रणाली "की योजना लागू करने की दिशा में सरकार तेजी से आगे बढ़ रही है।नेशनल मेडिकल कमीशन,होम्योपैथी कमीशन और भारतीय आयुर्विज्ञान प्रणाली विधेयकों को मंजूरी दिलाने के साथ ही सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 में प्रावधित चिकित्सा शिक्षा को अमल में लाने की तैयारियां भी कर ली हैं।नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य ) डॉ वीके पॉल की अध्यक्षता में गठित एक विशेषज्ञ समिति चिकित्सा शिक्षा के साथ एकीकृत स्वास्थ्य प्रणाली के मसौदे को अंतिम रूप देने जा रही है।इस समिति के अधीन चार अलग अलग कार्यबल बनाएं गए है जो भारतीय लोकस्वास्थ्य की व्यवहारिक स्थितियों के अनुरूप चिकित्सा शिक्षा औऱ पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियों के युक्तियुक्त अनुप्रयोग की सँभावनाओं को सुनिश्चित करने वाली अनुशंसा सरकार को करेंगे। 71 शीर्ष स्वास्थ्य विशेषज्ञों वाली इन समितियों को आगामी आठ सप्ताह में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी है।डॉ पाल की अध्यक्षता वाली शीर्ष समिति को बुनियादी रूप से आयुष औऱ एलोपैथी के साझा अनुप्रयोग की देशज संभावनाओं को तलाशने का काम करना है।असल में एकीकृत स्वास्थ्य प्रणाली की अवधारणा भारत की परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों के अधिकतम अनुप्रयोग को एलोपैथी के साथ सयुंक्त करने के वैज्ञानिक धरातल की वकालत करती है।सरकार की मंशा है कि देश में एक ही छत के नीचे नागरिकों को एलोपैथी के साथ आयुष (यानी योग,प्राकृतिक चिकित्सा,यूनानी,सिद्ध औऱ होम्योपैथी) के माध्यम से भी उपचार उपलब्ध हो।यह विचार 2017 की स्वास्थ्य नीति के साथ 2020 में लाई गई नई शिक्षा नीति में प्रमुखता से रेखांकित किया गया है।वस्तुतः आयुष के महत्व को वैकल्पिक चिकित्सा के नाम से कमतर करने की कोशिश एलोपैथी लॉबी द्वारा की जाती रही है जबकि तथ्य यह है कि योग और आयुर्वेद का भी सशक्त वैज्ञानिक आधार मौजूद है।शल्य चिकित्सा की बुनियाद तो मूलतः आयुर्वेद की ही देन है और आज योग के माध्यम से जनआरोग्य की पुष्टि दुनियाभर में स्वयंसिद्ध हो चुकी है।सवाल यह है भी है कि जिन बीमारियों का उपचार एलोपैथी में नही है उनके लिए आयुष को अपनाने में आखिर बुराई क्या है?चीन,यूरोप,और अन्य राष्ट्रों में पारम्परिक एवं आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों को उपयोग में लाया जाता है तब भारतीय नागरिकों के लिए केवल एलोपैथी पर ही जोर दिया जाना क्यों आवश्यक है?
मोदी सरकार का यह कदम निःसन्देह साहसिक होने के साथ राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप है।यह भारत की समर्द्ध पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को प्रतिष्ठित करने का उपक्रम भी है। प्रस्तावित नीति के तहत आयुष चिकित्सकों को एक तरह के ब्रिज कोर्स के साथ आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ प्राथमिक उपचार की पात्रता की बात कही गई है।इसी तरह एलोपैथी चिकित्सा पाठ्यक्रम में आयुष की बुनियादी ट्रेंनिग का प्रावधान है।जाहिर है अस्पताल आने वाले मरीज को उसकी इच्छा के अनुसार भी पैथी उपलब्ध हो सकेगी।2017 की स्वास्थ्य नीति में स्पष्ट तौर पर ब्रिज कोर्स की बात थी लेकिन 2019 में पारित राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक में इस हिस्से को शामिल नही किया गया है।दूसरी तरफ हाल ही में घोषित नई चिकित्सक शिक्षा नीति स्पष्टता एलोपैथी और आयुष के युक्तियुक्त विलय की आवश्यकताओं पर जोर देती है।मोदी सरकार ने इसी को आधार बनाकर एकीकृत स्वास्थ्य प्रणाली और' वन नेशन वन हैल्थ सिस्टम' पर आगे बढ़ने का काम आरम्भ किया है।नई चिकित्सा शिक्षा नीति2020 कहती है " हमारी स्वास्थ्य शिक्षा प्रणाली का अभिप्राय यह होना चाहिए कि एलोपैथिक चिकित्सा शिक्षा के सभी छात्रों को आयुर्वेद योग और प्राकृतिक चिकित्सा,यूनानी,सिद्ध और होम्योपैथी की बुनियादी समझ होनी चाहिये और इसी तरह आयुष के छात्रों को एलोपैथी की"। एकीकृत स्वास्थ्य प्रणाली का विरोध एलोपैथी लॉबी द्वारा यह कहकर किया जा रहा है कि यह भारत में हाइब्रिड डॉक्टरों की फौज खड़ी कर देने वाली नीति है 5 नबम्बर को इंडियन मेडिकल एशोसिएशन के अध्यक्ष डॉ राजेश शर्मा ने विधिवत प्रेस कांफ्रेंस कर सरकार के इस निर्णय पर सवाल खड़े किए ।विरोध में खड़ी एलोपैथी लॉबी का कहना है कि आयुष औऱ आधुनिक चिकित्सा पद्धति के कतिपय विलय से खिचड़ी सिस्टम का जन्म होगा और अलग अलग पैथियो का वैशिष्ट्य भी खत्म हो जाएगा साथ ही मरीज को पैथी चुनने की स्वतंत्रता भी नही रहेगी।आईएमए ने इस नए सिस्टम के विरुद्ध अपनी लड़ाई तेज करने का एलान भी किया है।दूसरी तरफ मोदी सरकार एक बड़े लक्ष्य पर काम करने के लिए आगे बढ़ चुकी है वह है 2030 से देश मे " वन नेशन वन हैल्थ सिस्टम" इसके लिए सरकार चार अहम सेक्टरों में काम करेगी।मेडिकल एजुकेशन,क्लिनिकल प्रेक्टिस,मेडिकल रिसर्च औऱ चिकित्सा प्रशासन।इस नए सिस्टम में केवल एलोपैथी को आगे रखने के स्थान पर सरकार ने आयुष को भी बराबरी का दर्जा देने का बुनियादी निर्णय लिया है इसीलिए इंटीग्रेटिव हैल्थ पॉलिसी में पाठ्यक्रमों को नई शिक्षा नीति के अनुरूप डिजाइन किया जाना है।इसका फायदा यह होगा कि आयुष चिकित्सक ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एलोपैथी के कुछ मानक उपचार प्रेक्टिस में ला सकेंगे।इसी मुद्दे पर आईएमए तीखा विरोध कर रहा है। लेकिन व्यावहारिक तथ्य यह है कि भारत में चिकित्सकों की कमी (1456 नागरिकों पर एक डॉक्टर)के चलते करोड़ों लोग झोलाछाप डॉक्टरों,मेडीकल स्टोर्स,गूगल गुरु और ऑनलाइन माध्यम से एलोपैथिक इलाज कराते है। पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव शैलजा चन्द्र ने 2013 में "भारतीय चिकित्सा पद्धति औऱ लोक चिकित्सा की स्थिति"केंद्रित अपने एक शोध में स्पष्ट रूप से इस बात की वकालत की है कि आयुष संवर्ग को मैदानी स्तर पर आधुनिक पद्धति से प्रेक्टिस के सीमित औऱ अधिमान्य अवसर सुनिश्चित किये जाने चाहिये।असल में भारतीय लोकजीवन में पिछले 70 साल में चिकित्सा के नाम पर केवल एलोपैथी को ही हर स्तर पर बढ़ाबा दिया गया है आज औसतन 94 फीसदी मरीजों को एलोपैथी उपचार ही सरकारी एवं गैर सरकारी केंद्रों पर उपलब्ध कराया जाता है।सही मायनों में यह पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ घोर अन्याय कारित करने जैसा ही है जबकि भारत की परम्परागत पद्धतियां खासी वैज्ञानिक एवं शोध परक धरातल पर केंद्रित रही है।हाल ही में कोविड 19 के संक्रमण में करोड़ों नागरिकों को आयुर्वेदिक उपचारों ने बड़ी राहत और सुरक्षा उपलब्ध कराई है।ऐसे में मोदी सरकार अगर एकीकृत स्वास्थ्य प्रणाली में आयुष को उसकी प्रमाणिकता के अनुरूप स्थान देनें का नीतिगत निर्णय ले रही है तो इसे नीम हकीमी या क्षद्म विज्ञान को प्रतिष्ठित करने जैसे आरोपों की उस मानसिकता के साथ भी समझाने की आवश्यकता है जो भारतीय संस्कृति और परम्पराओं को लेकर एक स्थाई दुराग्रह का शिकार है।
नई स्वास्थ्य प्रणाली को मानकीकृत करने में मोदी सरकार केवल अपने सांस्कृतिक एजेंडे पर ही काम नही कर रही है बल्कि देश के सर्वाधिक प्रज्ञावान एलोपैथिक चिकित्सकों औऱ विषय वस्तु विशेषज्ञों को आगे रखकर काम कर रही है।डॉ वीके पॉल ,डॉ रणदीप गुलेरिया,डॉ बीएम कटोच,डॉ एसके सरीन जैसे ख्यातिनाम एलोपैथिक चिकित्सकों को एकीकृत स्वास्थ्य प्रणाली को आकार देने के काम मे लगाया गया है।आयुष मंत्रालय का गठन भी बुनियादी रूप से परम्परागत पद्वतियों के वैज्ञानिक धरातल को जनआरोग्य के लिये ही किया गया है।सरकार द्वारा होम्योपैथी और भारतीय चिकित्सा पद्धति विनियमन के साथ एनएमसी के गठन को दीर्धकालिक स्वास्थ्य सुधार की दिशा में उठाया गया कदम माना जाना चाहिये क्योंकि मौजूदा स्वास्थ्य प्रणाली के विविधतापूर्ण ढांचे ने नागरिकों के प्रति राज्य की जबाबदेही को सरकारी अजगरफ़ान्स में बुरी तरह से उलझा रखा है।
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मोदी सरकार ने 2030 से वन नेशन वन हैल्थ पॉलिसी लागू करने के लिए बुनियादी बदलाव पर जो काम शुरू किया है उसका मसौदा अगले दो महीने में सामने आने के आसार है।डॉ वीके पॉल की अध्यक्षता में गठित समिति इंटीग्रेटिव हैल्थ पॉलिसी को आकार देने वाली है डॉ पॉल नीति आयोग में सदस्य स्वास्थ्य है और अंतरराष्ट्रीय स्तर के बाल रोग विशेषज्ञ,शिक्षाविद,अनुसंधानकर्ता है वे 32 बर्षों तक एम्स नई दिल्ली में कार्यरत रहे है।उनके नेतृत्व में इस समिति में 20 अन्य विषय विशेषज्ञों को शामिल किया गया है।क्लिनिकल प्रेक्टिस के तौर तरीकों को आकार देने के लिए एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया की अध्यक्षता में कार्यबल बनाया गया है जिसमें 12 सदस्य होंगे।यह कार्यबल प्रस्तावित पॉलिसी में क्लिनिकल प्रेक्टिस के उन पहलुओं को मानकीकृत करने की सिफारिशें करेगा जो इंटीग्रेटिव मेडिसन डॉक्टर के लिए जारी होंगे।चिकित्सा शिक्षा में पाठ्यक्रम को लेकर गठित कार्यबल की कमान एमसीआई बोर्ड ऑफ गवर्नस के पूर्व अध्यक्ष डॉ एसके सरीन को सौंपी गई है।शांति स्वरूप भटनावर पुरस्कार से सम्मानित डॉ सरीन देश के प्रख्यात लिवर रोग विशेषज्ञ है।नई समावेशी चिकित्सा शिक्षा का खाका बनाने के इस काम मे डॉ सरीन के साथ 12 अन्य विषय विशेषज्ञों को भी जोड़ा गया है।चिकित्सा शिक्षा में शोध एवं विकास आर एन्ड डी की सिफारिशों के लिए डॉ वीएम कटोच की अध्यक्षता में 13 सदस्यी कार्यबल काम करेगा।डॉ कटोच आईसीएमआर के पूर्व महानिदेशक है।
इसके अलावा अतिरिक्त सचिव स्वास्थ्य चिकित्सा प्रशासन की नवीन सँभावनाओ पर काम करने वाले है।इन सभी कार्यबल को आगामी आठ सप्ताह में अपनी अंतिम रिपोर्ट डॉ वीके पॉल की समिति को सौंपनी है।इससे पूर्व 8 सितम्बर को नीति आयोग में इस आशय का विस्तृत प्रजेंटेशन प्रस्तुत किया जा चुका है।इस बैठक में एलोपैथी एवं आयुष के भारतीय परिवेश में विलय पर सैद्धान्तिक सहमति निर्मित हुई थी।समावेशी,सस्ती,साक्ष्य आधारित औऱ नागरिक लक्षित एकीकृत स्वास्थ्य प्रणाली पर भारत को आगे ले जाने की दिशा में सरकार का संकल्प जमीन पर कितना साकार होता है यह अभी देखा जाना है क्योंकि भारत में व्यवस्थागत परिवर्तन इतना आसान भी नही है।