गाँव बाचा : पॉजीटिव एनर्जी के जरिए सौर उर्जा की ताकत का संदेश
एक चित्र हजार शब्दों के बराबर होता है तो आप आप अंदाज लगा सकते हैं कि चलचित्र एक मिनिट में कितने हजार शब्दों वाली बात करोड़ों लोगों तक पहुंचा सकता है। बस चित्रपट दुनिया की इसी ताकत के साथ माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्राध्यापक लोकेन्द्र सिंह और उनके प्रोड्यूसर मित्र मनोज पटेल लघु फिल्म निर्माण में जुटे हुए हैं। उनकी फिल्म 'पॉजिटिव एनर्जी-एक पहल' इन दिनों खूब चर्चा में है। 10वें राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म उत्सव में इन फिल्मों की स्क्रीनिंग को खूब सराहा गया। ये फिल्म सौर उर्जा पर आदिवासी बहुल गांव बाचा में हुए प्रेरक कार्यों को हम सबके समक्ष प्रस्तुत करती है।
फिल्म 'पॉजिटिव एनर्जी-एक पहल' सौर ऊर्जा के महत्व को रेखांकित करती है। फि़ल्मकार मनोज पटेल और लोकेन्द्र सिंह की इस फिल्म का चयन 'फ्यूजन' श्रेणी में किया गया है। फिल्म में बताया गया है कि गाँव में परंपरागत चूल्हे पर खाना पकाने से महिलाओं को तमाम प्रकार की समस्याओं का सामना तो करना ही पड़ता है, उससे पर्यावरण को हानि भी पहुँचती है। सौर ऊर्जा के उपयोग से जीवन और हमारे परिवेश में सकारात्मक परिवर्तन आता है। सौर ऊर्जा के महत्व को समझाने के लिए बैतूल के गाँव 'बाचा' को दिखाया गया है, जो अपने नवाचारों के लिए देशभर में चर्चित है। इस गाँव के लगभग सभी घरों की रसोई में 'सोलर इंडक्शन' के माध्यम से सौर ऊर्जा का उपयोग खाना पकाने में किया जा रहा है।
फिल्म के विषय में लोकेन्द्र सिंह बताते हैं कि मैं और मनोज पटेल पिछले 5 वर्ष से लघु फिल्म, डॉक्युमेंट्री निर्माण आदि से जुड़े हुए हैं। हम पर्यावरण संरक्षण एवं वैकल्पिक उर्जा साधनों के प्रेति लोगों को जाग्रत करने के लिए फिल्म बना रहे हैं। ये फिल्में किस तरह समाज में जागरण ला सकती हैं इस प्रश्न के जवाब में लोकेन्द्र सिंह कहते हैं कि आप और हम लगातार देख रहे हैं कि भारत में डेटा कंज्यूम बढ़ गया है। वीडियो के माध्यम से विविध पक्ष अपनी बात करोड़ों लोगों तक पहुंचा रहे हैं। हमने भी बैतूल के 'बाचा' गांव में सौर ऊर्जा के घर घर में प्रयोग की बात को लोगों के लिए प्रेरक माना और इस विषय पर फिल्म बनाना तय किया। करीब दो माह में बनी यह फिल्म करीब 15 मिनिट की है इसमें जनजातीय समुदाय से बसा यह गांव वैकल्पिक ऊर्जा साधनों के प्रति कितना जिज्ञासु है यह खूबसूरती के साथ दिखाया गया है। इस गांव को नवाचार की इस राह पर लाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े सेवाभावी मोहन नागरजी की महती भूमिका रही है।
लोकेन्द्र सिंह बताते हैं कि बैतूल के 'बाचा' गांव में नवीनीकरणीय ऊर्जा साधनों के साथ बोरी बंधान एवं पर्यावरण से जुड़े कार्यों के प्रति जो जागरण दिखा है उससे इस गांव का नाम देश भर में हुआ है। इस गांव में सामाजिक जागरण एवं जनजागरुकता पर काफी लेख भी लिखे गए हैं। हमने बांचा की इस अच्छाई को देश दुनिया के सामने लाने के लिए बांचा द राइजिंग विलेज नाम से एक शार्ट फिल्म पूर्व में भी बनाई है। इसमें मनोज पटेल जी ने और मैंने मिलकर फिल्मांकन किया है। हमें प्रसन्नता है कि जनजाति समाज के बीच इस जागरण की तस्वीर को हम अपनी फिल्म के जरिए दर्शकों के सामने ला सके। इस फिल्म में बांचा गांव की स्वच्छता, सौर ऊर्जा के उपयोग से लेकर पर्यावरण से जुड़े हुए वहां के खूबसूरत पक्ष हमने प्रस्तुत किए हैं। हमारा प्रयास है कि भारत में हो रहे अच्छे नवाचारों एवं प्रयोगों को इसी तरह आमजन तक पहुंचाते रहें।