आदिवासी एकता परिषद और पालघर हादसे का सच

आदिवासी एकता परिषद और पालघर हादसे का सच
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वेबडेस्क। वामपंथी समूहों एवं चर्च के संगठन में एक समानता है - उनकी 'कार्य शैली', जिसमें वे दोनों ही मुखोटे संगठनों के जाल का प्रयोग करके अपने असली मकसद व पहचान को छुपाते है। इस जाल को समझने एवं भेदने के लिए यह जरूरी है की एक-एक धागे को खोलकर देखा जाए। उदाहरण के तौर पर पालगढ़ साधु हत्याकांड को ही ले लीजिए। हत्याकांड के पीछे की असली कहानी को छुपाने के लिए दो नकली पहलु पैदा किए गए हैं - की यह हत्याकांड बच्चों के गुर्दे की चोरी करने वाले गिरोह एवं सोशल मीडिया पर चल रही अफ़वाह (कि मुस्लमान कोरोना फैला रहे हैं ) के कारण हुआ है। भला गुर्दा भी कोई फूल है जो तोडा तो निकल गया? इन पहलुओं के पीछे क्या कोई तथ्य है? क्या कोई प्रमाण है? 'द प्रिंट ' [ लिंक 1 ]नामक मीडिया संगठन ने 'आदिवासी एकता परिषद' के किसी राजू पंधरा का ज़िक्र किया। राजू ने यह दावा किया कि, हत्याकांड के उपरांत, हर जगह यही दो पहलुओं की चर्चा हो रही है।

ग़ौरतलब है कि इतनी संवेदनशील परिस्तिथि में भी 'आदिवासी एकता परिषद' का राजू इस तरह के पहलुओं को आग दे रहा है। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा की 'आदिवासी एकता परिषद' यह पहलु फैलाना चाह रहा है। मीडिया संगठन इस परिषद को वैसे ही 'पश्चिम भारत में जमीनी स्तर पर काम करने वाली संस्था' बता रहे है और हत्याकांड की जॉंच अभी पूरी नहीं हुई है। दाल में कुछ काला है। इसलिए यह जानना आवश्यक है की इस परिषद के पीछे कौनसे संगठन व लोग हैं।

आदिवासी एकता परिषद के दो चेहरे-

अपनी वेबसाइट[लिंक 2] पर यह परिषद खुद को 'समस्त मानवता व प्रकृति' के लिए काम करने वाला संगठन बताता है। इसी साल के जनवरी में इसने, पालगढ़ में एक 'सांस्कृतिक' कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य की राज्यपाल अनुसुइया उइके [लिंक 3] भी शामिल हुई। शिवसेना पार्टी के पालगढ़ से सांसद राजेंद्र ढेडिया गावित समेत अन्य नेता भी शामिल हुए। पता चलता है की, यह परिषद , यह कार्यक्रम हर साल आयोजित करता है और लगभग 2 लाख लोग कार्यक्रम में शामिल होते हैं। परिषद का ध्यान, वर्त्तमान में, दमन और दीव व पालगढ़ समेत आस पास के क्षेत्र पर जाता है क्योंकि उसका 2019 का कार्यक्रम दादरा नगर हवेली के सिलवासा में आयोजित हुआ था।

पीछे की कहानी-

'कैथोलिक बिशप ऑफ़ इंडिया' संगठन की वेबसाइट [ लिंक 4 ] यह दावा करती है कि परिषद के 2019 कार्यक्रम में निकोलस बरला (कैथोलिक बिशप ऑफ़ इंडिया के आदिवासी कार्यों के सचिव, जो की आदिवासी एकता परिषद के आयोजक व सदस्य भी हैं ) एवं उन्ही के साथ ललिता रौशनी लाकड़ा ने भाग लिया था एवं बरला ने आदिवासी मुद्दों पर भाषण भी दिया था। इटली की 'रोमन कैथोलिक पोंटिफिकल इंस्टिट्यूट फॉर फॉरेन मिशंस' की आधिकारिक प्रेस एजेंसी asianews.it दावा करती है कि 13 -15 जनवरी को पालगढ़ में होने वाले उस कार्यक्रम का प्रायोजक कोई 'कैथोलिक बिशप कांफ्रेंस ऑफ़ इंडिया' है। यह भी कहा गया की यह सब, ईसा मसीह के संदेशों के लिए, चर्च के मिशन का हिस्सा है [ लिंक 5][चित्र 2] । बरला जी ने इस बात पर भी ख़ुशी जताई की कार्यक्रम में 'संयुक्त राष्ट्र के परमानेनेट फोरम फॉर इंडिजेनस इश्यूज ' के उपाध्यक्ष फूलमन चौधरी भी शामिल हुए।

क्या है यह संयुक्त राष्ट्र का फोरम ? यह संयुक्त राष्ट्र की एक सलाहकार निकाय है जिसमें 8 सदस्य भिन्न भिन्न सरकारें व और 8 सदस्य कुछ 'स्वदेशी' लोक-संस्थाएं चुनती हैं [लिंक 6] । यह फूलमन चौधरी नेपाल के हैं और किसी 'स्वदेशी' लोक-संस्था के द्वारा फोरम में चुने गए है। परिषद की कार्य-शैली व कार्यक्रमों को देखते हुए यह आशंका उठना लाज़मी है की क्या पता, यह सभी 'स्वदेशी' लोक-संस्थाएं चर्च संगठनों की मुखोटी संस्थाएं ही हों। संयुक्त राष्ट्र के नाम के पीछे यह संस्थाएं खुद को निष्पक्ष संस्थाओं के तौर पर पेश करती हैं[चित्र 3 ]। साथ संस्थाओं को यह अवसर भी मिल जाता है की वह दुनियाभर में 'गरीब' लोगों के लिए 'कार्य' कर सकें। यह कहना भी गलत नहीं होगा की यह निकोलस बरला 'आदिवासी एकता परिषद' को संयुक्त राष्ट्र से जोड़ने वाली कड़ी है। सोशल मीडिया पर निकोलस बरला को ये सभी लोग फादर निकोलस बरला नही लिखते [ चित्र 4] ।

कुछ स्वतंत्र लेखकों ने जब 'आदिवासी एकता परिषद' के बारे में खोज की तो कई दिलचस्प बातें निकलकर आईं। हैरी गोलबोर्न नामक लेखक ने खुद की एक किताब 'रेस एंड एथनिसिटी'[लिंक 7] में यह लिखा की यह परिषद आदिवासियों को 'हिन्दुओं के जंजाल' से 'स्वतंत्र करने' का काम करता है।

इन सभी बातों को साथ में देखें तो सवाल उठता है की क्या यह 'सोशल मीडिया की अफवाहों' वाली एवं गुर्दा चोरी गिरोह वाली बातों के पीछे असली मकसद यह तो नहीं की आदिवासियों को हिन्दुओं से अलग करके उन्हें अलग किया जाए? कहीं ये पत्थलगड़ी आंदलोन के तर्ज पर आयोजित दूसरा आंदोलन तो नहीं?

यह सब आवश्य ही कई वर्षों से हो रहा है परन्तु पालगढ़ में साधु हत्याकांड के बाद कई ज़रूरी सवाल उठते है को की इस आदिवासी एकता परिषद से पूछे जाने चाहिए।

- क्या हर साल चर्च संगठन पैसा खर्च करके लाखों लोगों ऐसे कार्यक्रम आयोजित करते है?

-क्या निकोलस बरला (कैथोलिक बिशप ऑफ़ इंडिया के आदिवासी कार्यों के सचिव) परिषद के मण्डल में भी हैं ?

-परिषद साधु हत्याकांड को सोशल मीडिया की अफवाहों के कारण हुआ काण्ड क्यूँ बता रहा है?

और, चर्च को भी इन सवालों का जवाब देना चाहिए की :

- उसका इस परिषद से क्या संबंध है?

- क्या वह पालगढ़ और आस पास के क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ने की कोशिश कर रहा है?

https://theprint.in/opinion/palghar-lynching-muslims-christians-usual-suspects-no-one-blamed-facebook-whatsapp/413557/

http://www.adivasiektaparishad.org/

https://cg24news.in/article-view.php?pathid=7476&article=4

https://www.cbci.in/detail_Slide.aspx?id=658&type=1

http://www.asianews.it/news-en/Thousands-of-tribal-people-meet-in-Maharashtra,-united-to-preserve-indigenous-traditions-49062.html

https://www.un.org/development/desa/indigenouspeoples/unpfii-sessions-2/newmembers.html

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1627382503982281&id=287026071351271

https://books.google.co.in/books?

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