ज्ञानवापी - जिसे आप तहखाना कहते हैं, वह गर्भगृह है...
अदालत द्वारा नियुक्त सर्वे टीम पर क्यों की जा रही है आपत्ति...?
वाराणसी/वेब डेस्क। एक बार महर्षि अत्रि ने महर्षि याज्ञवल्क्य से पूछा कि धरती पर अविमुक्त क्षेत्र कहां स्थित है? याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि वह वरूणा और असी नदियों के मध्य में है। वरूणा और असी के मध्य का भू खंड ही आज वाराणसी, काशी और बनारस के नाम से विख्यात है। याज्ञवल्क्य आगे कहते हैं कि वह अविमुक्त क्षेत्र देवताओं का देव स्थान और सभी प्राणियों का ब्रह्म सदन है। यहां पर स्वयं शिव विश्वेश्वर वामरूप में शक्ति की देवी मां श्रृंगार गौरी के साथ विराजते हैं। यह अद्भुत है। देवी भगवती के दाहिने ओर विराजमान होने के कारण ही मुक्ति का मार्ग केवल काशी में ही खुलता है लेकिन, शिव और शक्ति जहां विराजते थे, वह द्वार 1669 से बंद है। विश्वेश्वर का वाहन नंदी आज भी उसी द्वार के खुलने की प्रतिक्षा में कई शताब्दियों से अपने मुख को उठाए ज्ञानवापी की ओर देख रहा है, उसे विश्वास है सनातन संस्कृति पर, कि द्वार खुलेगा और शिव के साथ मां श्रृंगार गौरी शक्ति सहित प्रकट होंगी।
श्रृंगार गौरी केस भले ही 7 महीने पहले का हो, लेकिन इसकी बुनियाद 1669 से जुड़ी है। जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ने का फरमान दिया था और बाद में यहां मस्जिद बनायी गयी। आज एक बार फिर वाराणसी चर्चा में है। उसका कारण बनीं पांच महिलाएं राखी, लक्ष्मी, सीता, मंजू और रेखा। इन सभी ने 7 महीने पहले सिविल कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद में मां श्रृंगार गौरी मंदिर होने की याचिका दाखिल की थी। वहां पूजा करने की इजाजत मांगी पर नहीं मिली। सुनवाई के क्रम में आठ अप्रैल 2022 को अदालत ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया। आदेश के तहत कोर्ट कमिश्नर ने 6 मई शुक्रवार को ज्ञानवापी मस्जिद के बाहरी क्षेत्र में सर्वे किया है। हंगामे के कारण 7 मई को सर्वे का कार्य नहीं हो सका। प्रकरण में अगली सुनवाई 9 मई को होनी है। वादी ने इस मामले में विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट, जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, अंजुमन इंतजमिया मसाजिद कमेटी और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को पक्षकार बनाया है।
पहले भी उठ चुकी है मांग
ज्ञानवापी परिसर में हिन्दुओं को पूजा अधिकारी मिले यह, मामला आज नहीं बल्कि, 1991 में भी ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने के लिए काशी के 3 लोगों ने सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया। इनमें हरिहर पांडे, सोमनाथ व्यास और संपूर्णांनंद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे रामरंग शर्मा शामिल थे। अदालत में मुकदमा दायर होने के कुछ साल बाद पंडित सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा की मौत हो गई। अब हरिहर इस मामले के पक्षकार के तौर पर बचे हुए हैं।
मस्जिद के तहखाने में आज भी मौजूद है गर्भगृह
आम नागरिकों की मान्यता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। कई ऐतिहासिक दस्तावेज भी इन मान्यताओं को प्रमाणित भी करते हैं। वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार पदमपति शर्मा ने बताया कि ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतजामिया मसाजिद को श्रंगार गौरी को लेकर आपत्ति नहीं है लेकिन, वह कहते हैं कि मस्जिद के अंदर नहीं आने देंगे। वह इसलिए अंदर नहीं आने देंगे क्योंकि मस्जिद के भीतर आज भी विश्वनाथ जी का पूरा गर्भगृह मौजूद है, जिसे तहखाना बोला जाता है। पदमपति शर्मा बताते हैं कि मंदिर के सेवायत पुजारी सोमनाथ व्यास के परिवार ने मस्जिद की बेरीकेटिंग से पूर्व सब देख रखा हैै। आज श्रंगार गौरी को बेरीकेटिंग से बाहर कर दिया है। जिसकी बसंत नवरात्रि में पूजन की अनुमति मिलती है। विश्वनाथ मंदिर में नंदी की प्रतिमा के सामने दीवार को देखकर अंधा भी कह देगा कि यह मस्जिद नहीं मंदिर हैै। आज भी मस्जिद की बुनियाद पर प्राचीन मंदिर के अवशेषों को देखा जा सकता है और मस्जिद बनाने वालों ने यह अवशेष केवल हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए छोड़ दिए थे।
ज्ञानवापी के पास टीला में मौजूद हैं मंदिर के भग्नावेश
पदमपति शर्मा बताते हैं कि उनका घर ज्ञानवापी मस्जिद से 50 मी. दूरी पर है। वहां सरस्वती का मंदिर है, जिसे उन्होंने विश्वनाथ काॅरीडोर निर्माण के समय दान कर दिया था। वह कहते हैं कि ज्ञानवापी मैदान के पास ही उनका क्रिकेट परवान चढ़ा था। आज जो गेट पर मजार मौजूद हैं, वह नकली हैं, वहां किसी को दफन नहीं किया गया था। उसके पास एक टीला है, जहां पर विश्वनाथ मंदिर के प्राचीन भग्नावेश मौजूद हैं। टीले से सटी दीवार में ही मां श्रृंगार गौरी की मूर्तियां थीं, जिनके दर्शन 1998 के बाद से बंद हो गए थे। 2007 में आदेश मिला कि नवरात्रि में पूजन कर सकते हैं।
दो हजार वर्ष पुराना है काशी विश्वनाथ मंदिर
पदमपति शर्मा कहते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर दो हजार वर्ष पुराना है। राजा विक्रमादित्य ने इसका जीर्णोद्धार कराया था। ज्ञानवापी परिसर के 9130, 9131, 9132 रकबा नं. एक बीघा 9 बिस्वा लगभग जमीन है। उक्त जमीन पर मंदिर का अवशेष है। 14वीं शताब्दी के मंदिर में प्रथमतल में ढांचा और भूतल में तहखाना है। बाद में मंदिर का 1780 में अहिल्यावाई होलकर ने जीर्णोद्धार कराया था। पदमपति शर्मा ने कहा कि विश्वनाथ मंदिर का निर्माण गंगा अवतरण से पूर्व का माना जाता है। कब बना, इसकी ठीक तिथि किसी को पता नहीं। उन्होंने बताया कि काशी विन्ध्य पर्वत की तीन छोटी चोटियों विश्वेश, केदार व आंेकार पर स्थित है। उन्होंने कहा कि संस्था अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के संयुक्त सचिव सैयद एम यासीन गलत बयानी कर रहे हैं, संविधान क्या आपको सुविधा के अनुसार चाहिए? न्यायालय का सम्मान सभी को करना चाहिए। क्या छिपा रहे हो? यह छिपाने की चीज नहीं हैं, सब जानते हैं कि शांति के इन मसीहाओं ने क्या नहीं किया, किस मंदिर को इन्होंने नहीं तोड़ा।
पहले भी हो चुका है विवादित परिसर का सर्वेक्षण
अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री दंडी स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती जी ने बताया कि ऐसा नहीं है कि विवादित परिसर का सर्वेक्षण पहली बार हो रहा है। वर्ष 1937 में दो इतिहासकारों ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर, उसके नीचे स्थित तहखाने और पश्चिमी दीवार में प्राचीन मंदिर के भग्नावशेषों का विस्तार से सर्वेक्षण और अध्ययन किया था। दोनों इतिहासकारों की गवाही पर मुस्लिम पक्ष ने उस समय आपत्ति जताई थी। कहा था कि यदि विशेषज्ञों की आवश्यकता है तो सरकार की बजाय अदालत अपनी तरफ से नियुक्त कर सकती है। उस समय यह स्वीकार्य था तो अब अदालत द्वारा नियुक्त सर्वे टीम पर आपत्ति क्यों की जा रही है...?
'मा-असीर-ए-आलमगीरी' में मौजूद है विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का फरमान
दंडी स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती जी ने स्वदेश को 1669 में औरंगजेब द्वारा जारी फरमान का चित्र देते हुए कहा कि इस फरमान में काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया गया है। जीतेंद्रानंद जी कहते हैं कि विश्वनाथ मंदिर के सम्बन्ध में कई पुस्तकें प्रमाण के तौर पर उपलब्ध हैं लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण प्रमाण 'मा-असीर-ए-आलमगीरी' नाम की पुस्तक है। यह पुस्तक औरंगजेब के दरबारी लेखक सकी मुस्तईद खान ने 1710 में लिख कर पूरी की थी। इसी पुस्तक में उस फरमान का उल्लेख है, जिसमें औरंगजेब ने विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था। जीतेंद्रानंद जी ने बताया कि 1936 के मुकदमे की बात है। अदालत में दोनों पक्षों के द्वारा सबूत पेश किए जा रहे थे। 'मा-असीर-ए-आलमगीरी' और औरंगजेब के फरमान की चर्चा हुई। मुसलमानों ने उर्दू में लिखी 'मा-असीर-ए-आलमगीरी' पेश की जिसमें विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने और औरंगजेब के ऐसे किसी फरमान का जिक्र नहीं था। हिन्दू पक्ष निराश हो गया। हिन्दू पक्षकारों के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी लेकिन, कुछ ही दिनों के अन्दर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहासकार डॉ. परमात्मा शरण ने फारसी में लिखी और 1871 में बंगाल एशियाटिक सोसाइटी के द्वारा प्रकाशित असली 'मा-असीर-ए-आलमगीरी' अदालत के समक्ष प्रस्तुत कर दी। जिसकी पृष्ठ संख्या 88 पर औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ मन्दिर को तोड़े जाने का जिक्र है। तब जाकर उस साजिश का पर्दाफाश हुआ जो उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद में रची गई थी। इसी यूनिवर्सिटी ने 'मा-असीर-ए-आलमगीरी' का 1932 में उर्दू अनुवाद प्रकाशित किया था। जिसमें से षडयंत्रपूर्वक श्रीकाशी विश्वनाथ के इतिहास वाले पन्नों को निकाल दिया गया था। जीतेंद्रानंद जी कहते हैं कि आने वाले दिनों में वह ऐसे कई प्रमाण न्यायलय और राष्ट्र के सामने रखने वाले हैं।
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