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बताइए राजा साहब ! अब हम किस पर अपना गुस्सा निकालें ?
गुना। बात चाहे विधानसभा चुनाव की हो या लोकसभा चुनाव की, मंडी की या पंचायत चुनाव की। या फिर कांग्रेसी राजनीति के महत्वपूर्ण विषय हो। एक नाम हमेशा कांग्रेस में सुर्खियों में रहता है। यह नाम है प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह का, और यह सिलसिला अभी भी टूटा नहीं है।
प्रसंग इस बार नगरीय निकाय चुनाव का है। चुनाव के दौरान भी प्रचार में अपनी उल्लेखनीय सक्रियता नहीं होने की वजह से श्री सिंह चर्चाओं में थे तो अब जब चुनावी नतीजों में कांग्रेस का भाजपा की अंदरुनी कलह और स्वाभाविक रूप से सत्ता विरोधी लहर से उपजीं तमाम अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद खराब प्रदर्शन सामने आया है तो भी कांग्रेस के यह राजा साहब चर्चाओं में हैं। दरअसल कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का ठीकरा पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता श्री सिंह के सिर पर ही फोड़ रहे है। वह सीधे तौर पर भले ही कांग्रेसी हार के तमाम कारण गिना रहे हों पर दबी जबान में उनके निशाने पर दिग्विजय सिंह ही हैं।
गौरतलब है कि नगरीय निकाय चुनाव में दिग्विजय सिंह की चुनाव में सीधे तौर पर भलें ही सक्रियता बहुत ज्यादा सामने नहीं आई हो, किन्तु पर्दे के पीछे रहकर चुनाव की पूरी कमान उन्होनें ही संभाल रखी थी। बात चाहें, टिकट वितरण की हो या चुनावी रणनीति बनाने की या फिर असंतुष्टों को मनाने की? दिग्विजय सिंह की सभी में भरपूर चली थी। चेहरा भलें ही पूर्व मुयमंत्री कमलनाथ का सामने हो और प्रचार अभियान में भी कमलनाथ ही अपनी टीम के साथ लगे रहे, किन्तु मोर्चा दिग्विजय सिंह ने ही संभाल रखा था। यहां तक की कमलनाथ के प्रचार अभियान की दिशा भी दिग्विजय सिंह ही पर्दे के पीछे रहकर तय कर रहे थे।
श्री सिंह ने अपनी इस किंगमेकर बनने के प्रयास वाली भूमिका को छिपाने की कोई कोशिश भी नहीं की, बल्कि पूरी रणनीति के तहत इसे प्रचारित भी कराया। चुनाव के दौरान की अखबार की कतरनें और वीडियो क्लिप भी उनकी की इस रणनीति की गवाह बन सकती है। भोपाल की बैठक में टिकट वितरण को लेकर उनके द्वारा यह कहना कि टिकट बांटना सबसे खराब काम है। 1985 से मैं टिकिट वितरण में मौजूद रहा, टिकट वितरण का काम पार्टी करती है और रूठों का मनाने का काम मैं करता हूं। जिसका टिकट कटा वो ये माने की मैंने काटा और जिसको मिले वो ये समझे कि कमलनाथ ने दिया है।
अगर किसी को गुस्सा निकालना है तो मुझ पर निकालें, यह भी उनकी इसी रणनीति का हिस्सा था। दरअसल दिग्विजय सिंह का मानना था कि चुनाव में कांग्रेस शानदार प्रदर्शन करने जा रही है। जैसा की लग भी रहा था। इसी का श्रेय वह लेना चाहते थे, किन्तु हुआ इसके उलट। शानदार प्रदर्शन तो छोडि़ए, कांग्रेस चुनाव में उल्लेखनीय प्रदर्शन भी नहीं कर पाई। तीन महापौर भलें ही उसके बन गए हों, किन्तु परिषद में अधिकांश जगह वह बुरी तरह पिछड़ी है। यहां 90 और 10 का अंतर सामने आ रहा है। जिस भोपाल में दिग्विजय सिंह ने अपनी समर्थक पूर्व महापौर को अड़कर टिकट दिलाया था और बजरिए सुरेश पचौरी और पीसी शर्मा ने अपनी ताकत झोंकी थी। वहां कांग्रेस 98 हजार से ज्यादा मतों से हारी है, जबकि विभा पटेल और मालती राय में राजनीतिक अनुभव के लिहाज से जमीन-आसमान का अंतर था।
विभा पटेल एक बार महापौर रह चुकी हैं, वह महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी रहीं तो उनके पति भुवनेश पटेल कर्मचारियों के नेता हैं। उनके देवर राजकुमार पटेल कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इसके विपरीत मालती राय ने तीन बार पार्षद का चुनाव लड़ा है, जिसमें दो बार हारीं और एक बार जीतीं, वहीं दिग्विजय सिंह के खुद के गढ़ राजगढ़ जिले में कांग्रेस का लगभग सूपड़ा साफ हुआ है। पहले चरण के 63 वार्डों के चुनाव परिणामों में से भाजपा को 40 सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस को 18 सीटें मिली हैं व पांच उमीदवार निर्दलीय चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। उनके गृह जिले गुना नगर पालिका में पिछले चुनाव के मुकाबले कांग्रेस को एक सीट का घाटा हुआ है। तब कांग्रेस ने 37 में से 13 वार्ड जीते थे, इस बार हिस्से में 12 आए है। भाजपा 19 वार्ड जीतकर यहां बहुमत में है।
ऐसा तब, जब यहां भाजपा के तमाम बागी चुनाव लड़े थे और पार्टी ने जमकर भीतरघात का सामना किया था। इतना ही नहीं, खुद दिग्विजय सिंह ने यहां प्रचार के अंतिम दिन बरसते पानी में चुनावी सभा ली थीं तो उनके पुत्र पूर्व मंत्री एवं राघौगढ़ विधायक जयवर्धन सिंह ने कांग्रेस की जीत के लिए एड़ी से लेकर चोटी तक का जोर लगाया था। इससे भी आगे गुना के पड़ोसी जिले अशोकनगर में तो कांग्रेस की हालत और भी ज्यादा खराब हुई। यहां कांग्रेस से ज्यादा निर्दलीय एवं अन्य उमीदवार जीते। नपा के कुल 22 वार्ड में से भाजपा ने 12 जीते तो 6 पर अन्यों ने कजा जमाया। कांग्रेस के हिस्से में सिर्फ 4 वार्ड आए। इसी जिले की शाढ़ौरा नगर परिषद के 15 में से 9 वार्डों में भाजपा ने जीत दर्ज कराई, वहीं कांग्रेस सिर्फ 4 वार्डों पर सिमटकर रह गई। 2 वार्ड निर्दलीयों ने जीते। इन नतीजों से हताश कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ता अब अपने राजा साहब के भोपाल बैठक में दिए गए बयान को रेंखाकित करते हुए उनसे सवाल कर रहे है कि बताइए, राजा साहब अब हम अपना गुस्सा किस पर निकालें? हालांकि कांग्रेस के बजाए दिग्विजय निष्ठ कांग्रेसी अपने हुकूम का बचाव यह कहकर करने की कोशिश कर रहे हैं कि दरबार ने तो पहले ही कहा था कि टिकट कमलनाथ ने बांटे हैं तो जीत-हार का जिमा भी सीधे तौर पर उनका है।