Loksabha Election: कहीं घातक न हो जाए यह आत्मविश्वास

Loksabha Election: कहीं घातक न हो जाए यह आत्मविश्वास
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प्रसंगवश - अतुल तारे

आज सुबह-सुबह मंडी में सब्जी खरीदते समय मैं रीवा में वरिष्ठ पत्रकार एवम् राजनीतिक विश्लेषक जयराम शुक्ला जी से मोबाइल पर बात कर रहा था। विषय छिंदवाड़ा में कम मतदान को लेकर था। साथ ही मात्र 18 दिन में महापौर विक्रम के हृदय परिवर्तन को लेकर थी। सब्जी वाला जिसका नाम महेंद्र है, यह बात सुन रहा था ।जयराम जी ने जो कहा, उसकी चर्चा आगे। पर महेंद्र ने जो कहा उसे मैं अक्षरश: रख रहा हूँ।

महेंद्र ने कहा बाबूजी! हम कभी-कभी मजबूरी में बासी सब्जी रखते हैं पर उनको ताजी सब्जी में मिलाते नहीं हैं। आलू और प्याज अलग रखते हैं। इनका जल्दी सडऩे का खतरा रहता है। जब यह बात सब्जी पर लागू है तो भाजपा जिसके पास आज उसके कामों की इतनी ताजगी है तो वह कांग्रेस का बासी अपने में मिला ही क्यों रही है? संभव है बासी सब्जी वाले की याने कांग्रेस का फड़ बंद हो जाए पर भाजपा का फड़ भी जल्दी ही बदबू मारने लगे। महेंद्र ज़्यादा पढ़ा लिखा आज की परिभाषा में नहीं है। पर भारतीय राजनीति का इतना सरल और सटीक विश्लेषण अच्छे-अच्छे पंडित भी शायद ही कर सकें।

छिन्दवाड़ा में महापौर विक्रम अहाके का तीन सप्ताह के भीतर फिर कांग्रेस में जाना एक सामान्य घटना नहीं है। एक अति सामान्य पृष्ठभूमि से आए विक्रम ने कहा कि उन्हें डर था कि पार्षद चले गए, कहीं कुर्सी न चली जाए तो वह भाजपा में आ गए। पर उन्हें घुटन होने लगी। खबर यह भी है कि विक्रम को घर से भी काफ़ी दबाव था। प्रश्न विक्रम के निर्णय का नहीं है। उसकी अंतरात्मा वो जाने? वह पहले दबाव में था या अब? प्रश्न सीधा-सीधा भाजपा के उन नीति निर्धारक समूह से है कि आखिर किस मजबूरी में बक़ौल प्रदेश के मंत्री प्रह्लाद पटेल गीला और सूखा कचरा बीन रहे हैं ?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यशस्वी नेतृत्व, भारत की वैश्विक उड़ान, आतंकवाद पर कठोर प्रहार का साहस, उन्नत अर्थ व्यवस्था, सुकून देती आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था, सांस्कृतिक अभ्युदय, कश्मीर में बदलता मौसम, पूर्वोत्तर भारत का शेष भारत से जुड़ाव लंबी सूची है । विधानसभा में शानदार प्रदर्शन। यह समय था। माफ़ करें। फिर वह महेंद्र याद आ गया। उसी की भाषा में यह समय था कि हम अपने फड़ को और सजाते। अपने घर को ही और बेहतर करते। अपने ही कार्यकर्ताओं को और बड़ी जवाबदारी देते। जात-पात से ऊपर उठते। यह समय था कि नेतृत्व साहसिक निर्णय करता। परंपरागत राजनीतिक तरीकों से परहेज़ करता। जो भाजपा ने 2014 के बाद किया भी था। यह एक नये ‘आदर्श’ की स्थापना का समय था। पर भाजपा ने ‘आदर्श घोटाले’ में शामिल महाराष्ट्र के नेता को शामिल कर उन्हें राज्यसभा में भेजने का निकृष्ट उदाहरण दिया। यह सिर्फ एक प्रतीक है। छिन्दवाड़ा से ही दीपक सक्सेना जिस दिन भाजपा में आते हैं उसी दिन वह यह बयान भी जारी करते हैं कि उनका बैर नकुलनाथ से है। कमलनाथ से नहीं। कमलनाथ चुनाव लड़ेंगे तो वह उनका काम करेंगे । दीपक सक्सेना की साफग़ोई की प्रशंसा। पर भाजपा की क्या मजबूरी है ?

कमलनाथ या नकुलनाथ को भाजपा में लाने की पटकथा लिखी किसने ?

कमलनाथ अपराजेय नहीं हैं। और उनको या नकुलनाथ को भाजपा में लाने की पटकथा लिखी किसने ? क्यों लिखी ? अब वह संभव नहीं हुआ तो उनको हराने के लिए भाजपा के पास अपने काम हैं। कमलनाथ यूँ भी राजनीतिक विश्वसनीयता खो चुके थे । भाजपा की तोडफ़ोड़ से क्यों उन्हें सहानुभूति का पात्र बनाया गया ? नतीजे 4 जून को आयेंगे । पर कम मतदान हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने का लक्ष्य छिंदवाड़ा में ही क्यों असफल हुआ ? जबलपुर में श्री मोदी के ऐतिहासिक रोड शो के बावजूद मतदान का प्रतिशत 9 फ़ीसदी गिरना क्या संकेत देता है ? 400 पार का नारा देने वाली भाजपा को पहले चरण के मतदान के बाद यह सोचना ही होगा कि 2019 के बाद मतदान का प्रतिशत 7.5 प्रतिशत घटना अच्छे संकेत नहीं है ।

विचार करना होगा कि क्या कार्यकर्ता अति आत्मविश्वास में है ? या वह भी किसी अव्यक्त घुटन में है ? सामूहिक नेतृत्व की पक्षधर भाजपा आज मोदी की गारंटी और मोदी का परिवार बन रही है। बेशक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारतीय राजनीति के ही नहीं, वैश्विक राजनीति के असाधारण नायक हैं। पर संगठन को यह विचार करना होगा कि एक सीमा से अधिक व्यक्ति केंद्रित रणनीति संभव है कभी-कभी तात्कालिक लाभ दे दे, पर दीर्घकालीन उसके नुक़सान ही हैं। साथ ही एक साथ जो भी आना चाहे । उसकी बिना किसी पृष्ठभूमि की परवाह किए भाजपा में शामिल करने की दिशाहीन लालसा कांग्रेस का कितना नुक़सान करेगी, पता नहीं, पर भाजपा के आंतरिक शुचिता का स्वास्थ्य बेशक खराब कर रही है।

प्रसंगवश, राजनीतिक शोधार्थी ध्यान दें। श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बड़े नेता, उनके साथ 22 विधायक आते हैं। सरकार भाजपा की बन जाती है । पर क्या कांग्रेस का वोट शेयर इतने बड़े राजननीतिक परिवर्तन के बाद कम हुआ ? नहीं हुआ। तात्पर्य बड़े नाम आ जाएंगे।उनके हित भी साध लिए जाएंगे। पर भाजपा ज़मीन पर इस से मजबूत होगी, शक है।

और अंत में-

अभी छ: चरण शेष हैं। शंकर जी के अभिषेक के लिए एक लोटे दूध का आग्रह की कहानी सबने सुनी है। चिंता करनी होगी। प्रत्येक कार्यकर्ता के पास लोटा है या नहीं। है तो उसमें पानी है या दूध ? और वह दूध लेकर जाए। अभिषेक करे। तभी एक भारत और समर्थ भारत का स्वप्न पूर्ण होगा। विजय समीप है, यह सच है पर शिथिलता आत्मघाती भी हो सकती है।

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