श्राद्ध पक्ष में ढूंढने पर भी नहीं मिल रहे कौवे ? पितरों के तर्पण के लिए लोग खोज रहे विकल्प
श्राद्ध पक्ष में ढूंढने पर भी नहीं मिल रहे कौवे
नईदिल्ली। श्राद्ध पक्ष कल शुक्रवार से शुरू हो गए है। सनातन धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्तव माना जाता है। इन दिनों में लोग अपने पूर्वजों का तर्पण कर श्राद्ध करते है। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त भोजन बनाकर कौए, गाय और ब्राह्मण को देने से पितृ प्रसन्न होकर परिवार पर कृपा बनाएं रखते हैं। क्या अपने कभी सोचा है कि आखिर गाय, कुत्ता और कौवे को ही क्यों पितरों के रूप में भोजन कराया जाता है। यदि आपके मन में भी ऐसे सवाल आते है तो आज हम आपको इसकी जानकारी देंगे।
शास्त्रों के अनुसार गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास माना जाता है। इसलिए वह अत्यंत पवित्र और पूजनीय होती हैं।इसीलिए पितृ पक्ष में उसका ग्रास या भाग निकालने का विधान है, माना जाता है कि गाय को भोजन देने से पितृ देवता प्रसन्न होते है। इसके अलावा कुत्ते और कौवे को भी भोजन देने का विधान है। श्वान और कौए को पितर का रूप माना जाता है। इसीलिए उनका भाग निकला जाता है। गरुण पुराण के अनुसार, कौए को यमराज का संदेश वाहक बताया जाता है।यमराज ने कौए को वरदान दिया था कि तुम्हें दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा, तब से ही पितरों के निमित्त कौए को भोजन दिया जाने लगा।
कौवो का खोज रहे विकल्प -
आज के दौर में पितृ पक्ष में गाय और कुत्ते तो आसानी से मिल जाते है लेकिन कौवे ढूंढने से भी नहीं मिलते है, पिछले कुछ सालों में कौए की संख्या में कमी आने से लोगों के सामने उन्हें भोजन देने की समस्या होने लगी है। ग्रामीण अंचल में तो कहीं-कहीं कौवे नजर आ जाते हैं। लेकिन शहरों में लाख कोशिशों के बाद भी एक कौवा दिखाई नहीं पड़ता। ऐसे में लोग मजबूरन अन्य पक्षियों और जीवों को कौवों के स्थान पर भोजन करा रहे है। यदि आज से पंद्रह से बीस साल पहले की बात करे तो सुबह-शाम के समय घरों की छतों-मुंडेरों पर कौवे बैठे हुए दिख जाते थे। श्राद्ध पक्ष के समय बगीचों- पीपल के पेड़ों के पास कौवे आसानी से मिल जाते थे। लोगों को उन्हें ढूंढने के लिए परेशान नहीं होना पड़ता था।
कौवों के लुप्त होने का कारण -
जानकारों की माने तो शहरों में मकानों के बढ़ने और पेड़ों की घटती संख्या कौवों की संख्या में कमी आने का बड़ा कारण है। इसके अलावा खेतों में पेस्टीसाइड का बढ़ता इस्तेमाल एवं मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली रेडियो धर्मी किरणों और शहरों में खतरनाक प्रदूषण भी कौवों के विलुप्त होने के पीछे बड़ा कारण है। दरअसल, खेतों में हम फसल उगाने के लिए जिस पेस्टीसाइड का प्रयोग करते है, उन्हें खाने वाले पक्षी और जानवर जल्दी मर जाते है। पेस्टीसाइड भोजन खाने वाले जीवों के मरने के बाद जब इस जीव को कौवा आदि खाते हैं तो वो भी मरने लगे हैं। इससे हमारा पूरा इकोसिस्टम बिगड़ गया है।
दूसरी ओर मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली रेडियो धर्मी किरणें मनुष्य समेत सभी जीवों के लिए बेहद हानिकारक मानी जाती है। पक्षी इन टॉवरों पर जाकर या इनके नजदीक अपने घोसले बनाते है। उन पर ज्यादा असर होता है। परिणाम स्वरूप तेजी से पक्षियों की मौत हो रही है एवं उनके प्रजनन में भी कमी आई है। इसी के चलते गौरैया, कौवे आदि पक्षी विलुप्त प्रजातियों में शामिल हो गए है।