कच्चाथीवू द्वीप पर विदेश मंत्री का बयान, जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा ने बिना विरोध को श्रीलंका को सौंपा

कच्चाथीवू द्वीप पर विदेश मंत्री का बयान, जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा ने बिना विरोध को श्रीलंका को सौंपा
तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखा था, 'मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता और मुझे इस पर अपना दावा छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी।

नईदिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहले कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा लगातार गर्म हो रहा है। सोमवार को भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे पर विपक्षी दलों पर जमकर हमला बोलते हुए इसके लिए कांग्रेस पार्टी और डीएमके को जिम्मेदार ठहराया।

सोमवार को कच्चातिवु मुद्दे पर संवाददाता सम्मेलन में विदेश मंत्री और भाजपा नेता डॉ. एस जयशंकर ने कहा आज जनता के लिए यह जानना जरूरी है कि कच्चातिवु द्वीप के मुद्दे को जनता से बहुत लंबे समय तक छिपाया गया। 1974 में भारत और श्रीलंका ने एक समझौता किया जहां उन्होंने एक समुद्री सीमा खींची और समुद्री सीमा खींचने में कच्चातिवु को श्रीलंका की ओर रखा गया था। यानी कच्चातिवु को श्रीलंका को दे दिया गया।

उन्होंने कहा कि मई 1961 में तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखा था, 'मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता और मुझे इस पर अपना दावा छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी।' उनका रवैया ऐसा था कि जितना जल्दी कच्चाथीवू को श्रीलंका को दे दिया जाए, उतना बेहतर होगा। यही नजरिया इंदिरा गांधी का भी था।

जयशंकर ने कहा कि 1976 में मछुआरों का अधिकार कैसे समाप्त किया गया, यह सभी जानते हैं। इसके लिए कौन जिम्मेदार है, यह भी सभी जानते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 20 सालों में 6184 मछुआरों को श्रीलंका ने हिरासत में लिया और 1175 नौकाओं को जब्त किया है। तमिलनाडु के सत्ताधारी दल डीएमके पर भी हमला बोलते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि मछुआरों के पकड़े जाने का मुद्दा बार-बार पार्टी संसद में उठाती है लेकिन यह समझौता डीएमके की जानकारी में किया गया। उन्होंने कहा कि मछुआरों को आज भी हिरासत में लिया जा रहा है, नौकाओं को अभी भी पकड़ा जा रहा है और मुद्दा अभी भी संसद में उठाया जा रहा है। इसे संसद में दो दलों द्वारा उठाया जा रहा है, जिन्होंने ऐसा किया।

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