चांद के सफर पर निकला 'चंद्रयान', जानिए कब पूरी होगी यात्रा, क्या होंगे लाभ ?
नईदिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शुक्रवार को अपने तीसरे चंद्र मिशन-‘चंद्रयान-3’ का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एलवीएम3-एम4 रॉकेट के जरिए इसे लॉन्च किया गया। शुक्रवार को इसरो अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-3 को एक अगस्त से चंद्रमा की कक्षा में स्थापित करने की योजना है। इसके बाद 23 अगस्त को शाम पांच बजकर 47 मिनट पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग किए जाने की योजना है।
श्रीहरिकोटा में संवाददाता सम्मेलन में इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान 3 एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है। चंद्रयान-3 के इस बार चांद के सतह पर लैंडिंग करना बहुत महत्वपूर्ण है। जब तक आप नहीं उतरते, आप नमूने नहीं ले सकते, आप इंसानों को नहीं उतार सकते, तब तक चंद्रमा पर आप आधार नहीं बना सकते। इसलिए, लैंडिंग आगे की खोज के लिए महत्वपूर्ण कदम।
क्या है मिशन चंद्रयान-3
चंद्रयान -3 एक तरह का यान है जिसे चन्द्रमा पर पहुंचने के लिए तैयार किया गया है। ये मिशन विफल हुए पिछले चंद्रयान -2 मिशन का फॉलोअप है। जिसका उद्देश्य चांद पर सुरक्षित लैंडिंग और सतह से जुड़ी तमाम वैज्ञानिक जानकारियां जुटाना है।
चंद्रयान के 3 भाग -
- लैंडर मॉड्यूल (एलएम),
- प्रोपल्शन मॉड्यूल (पीएम)
- रोवर
पहला भाग प्रोपल्शन मॉड्यूल का है जो लैंडर को चंद्रमा की कक्षा तक लेकर जायेगा। दूसरा भाग लैंडर मॉड्यूल का है, जिसके भीतर रोवर रखा जायेगा. लैंडर मॉड्यूल का आकार चौकोर है और इसके चारों कोनों पर एक-एक पैर जैसी आकृति लगी है।
चंद्रयान मिशन का उद्देश्य -
- चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग कर इस क्लब में शामिल होना।
- रोवर को चंद्रमा की सतह पर पर चलते हुए दिखाना।
- लैंडर और रोवर के माध्यम से चंद्रमा की सतह का वैज्ञानिक अध्ययन करना।
ये होंगे लाभ -
यदि चंद्रयान-3 का लैंडर चांद की सतह पर सुरक्षित लैंड कर जाता है तो ऐसा करने वाला भारत चौथा देश होगा। इससे पहले रूस, चीन और अमेरिका ऐसा कर चुके है। भारत की कोशिश चांद के दक्षिण ध्रुव पर उतरना है। धरती की तरह यहां भी बर्फ ज्यादा है,ऐसे में माना जा रहा है की इस क्षेत्र में पानी हो सकता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में दुर्लभ खनिजों के होने का अनुमान है। यदि भारत इस मिशन में सफल हो जाता है तो चांद की सतह और वहां खनिज आदि की जानकारी जुटाने में सफलता मिलेगी। जोकि भविष्य की दृष्टि से बहुत अहम है क्योंकि वर्तमान समय में कई निजी क्षेत्र की कंपनियां अंतरिक्ष के क्षेत्र में निवेश करना चाहती है। ऐसे में भारत उनके लिए मून इकॉनॉमी में निवेश लिए नया विकल्प होगा।