क्या है नाथ संप्रदाय ? जिससे उप्र के योगी आदित्यनाथ और राजस्थान के बाबा बालकनाथ आते है
जयपुर। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की जीत के बाद बाबा बालकनाथ का नाम मुख्यमंत्री पद का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है। इसी के साथ नाथ संप्रदाय पर बातचीत होने लगी है। इसी संत संप्रदाय से उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भी संबंध रखते है।
नाथ संप्रदाय भारत का प्राचीन और योगियों का संप्रदाय है। नाथ' शब्द का प्रचलन हिन्दू, बौद्ध और जैन संतों के बीच विद्यमान है। 'नाथ' शब्द का अर्थ होता है स्वामी। वैष्णवों में स्वामी और शैवों में 'नाथ' शब्द का महत्व है। आपने अमरनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि कई तीर्थस्थलों के नाम सुने होंगे।आदिनाथ शंकर से जुड़े इस संप्रदाय की जड़ें भारत और नेपाल दोनों देशों में फैली हुई है। इसके वर्तमान स्वरूप का गठन गोरक्षनाथ यानि योगी गोरखनाथ ने किया, उन्हें भगवान शंकर का अवतार भी माना जाता है। बाबा गोरखनाथ को नेपाल का राजवंश भी पहला गुरु मानता है ।
मठ के पीठाधीश्वर -
देशभर में इस संप्रदाय के कई मठ हैं। इनका प्रमुख मठ गोरखपुर मठ है, इस मठ का पीठाधीश्वर ही नाथ संप्रदाय का प्रमुख होता है। वर्तमान में योगी आदित्यनाथ इसी मठ के पीठाधीश्वर है।
क्या है नाथ संप्रदाय -
सनातन संस्कृति में 4 संप्रदाय है- जिसमें मुख्य रूप से वैष्णव, वैदिक, शैव और स्मार्त शामिल है। नाथ संप्रदाय शैव संप्रदाय की शाखा है। भगवान शंकर को इस संप्रदाय को शुरू करने वाला माना जाता है। भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष , शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसी परंपरा में आगे चलकर भगवान दत्तात्रेय और गोरखनाथ हुए। दत्तात्रेय को महाराष्ट्र में नाथ परंपरा का विकास करने का श्रेय जाता है, वहीँ गुरु गोरखनाथ को उत्तर भारत में इस संप्रदाय को आगे बढ़ाने के लिए जाना जाता है।
गोरखनाथ के संप्रदाय की मुख्य 12 शाखाएं-
1. भुज के कंठरनाथ,
2. पागलनाथ,
3. रावल,
4. पंख या पंक,
5. वन,
6. गोपाल या राम,
7. चांदनाथ कपिलानी,
8. हेठनाथ,
9. आई पंथ,
10. वेराग पंथ,
11. जैपुर के पावनाथ
12. घजनाथ।
योगी बनने के नियम -
नाथ संप्रदाय में किसी भी प्रकार का भेद-भाव आदि काल से नहीं रहा है। इस संप्रदाय में सभी जाति के लोग आ सकते है। इस संप्रदाय में शामिल होने वके बाद योगी बनने के लिए 12 साल एकांत में कठोर तपस्या करनी होती है। इसके बाद कर्णछेदन किया जाता है, जिसकी शुरुआत गुरु गोरख नाथ ने की थी। ये साधारण नहीं बल्कि परीक्षा की तरह होता है, कर्णछेदन के दौरान पीड़ा होने पर इलाज नहीं दिया जाता। इससे शिष्य में सहनशक्ति की परिक्षा ली जाती है।
अभिवादन का तरीका -
नाथ लोग अलख शब्द से अपने इष्ट देव का ध्यान करते हैं। जबकि अन्य योगी या नाथ संत से मिलने पर आदिश शब्द बोलते है। अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या परम पुरुष होता है जिसका वर्णन वेद और उपनिषद आदि में किया गया है।
तंत्र विद्या के जनक -
नाथ संप्रदाय का तंत्र विद्या से गहरा रिश्ता है। नाथ संप्रदाय को ही तंत्र शास्त्र का जनक माना जाता है। शाबर तंत्र में कपालिकों के 12 आचार्यों की चर्चा है- आदिनाथ, अनादि, काल, वीरनाथ, महाकाल आदि, ये सभी नाथ मार्ग के प्रधान आचार्य माने जाते हैं. इन्हीं ने तंत्र ग्रन्थ की रचना की है।
जीवित समाधि -
सबसे खास बात ये है कि हिंदू होने के बावजूद इसमें मृत्यु के बाद दाह संस्कार नहीं होता, बल्कि जीवित या मृत समाधि दे दी जाती है. मृत शरीर को मिट्टी में दफना दिया जाता है।
कौन है बाबा बालकनाथ -
अब एक नजर बाबा बालकनाथ पर डाल लेते है, बाबा बालकनाथ का जन्म 16 अप्रैल 1984 को अलवर जिले कोहराना गांव एक यादव परिवार में हुआ था। 6 साल की उम्र में में बालकनाथ महंत चांदनाथ के साथ हनुमानगढ़ मठ चले गए और उनसे आध्यात्म की शिक्षादीक्षा ली। वर्तमान में बाबा बालकनाथ हरियाणा के रोहतक में मस्तनाथ मठ के महंत है। वह बाबा मस्तनाथ विश्व विद्यालय के चांसलर भी हैं। बाबा बालकनाथ अलवर से सांसद है और यहां की तिजारा सीट से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे है। उनका नाम राजस्थान के सीएम पद की रेस में शामिल है। उन्हें भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा रहा है।