क्या है जातिगत जनगणना ? आखिर चुनाव से पहले क्यों उठने लगती है मांग, ये...है राजनीतिक लाभ और नुकसान

क्या है जातिगत जनगणना ? आखिर चुनाव से पहले क्यों उठने लगती है मांग, ये...है राजनीतिक लाभ और नुकसान
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जातिगत जनगणना का मुद्दा नया नहीं है, बल्कि लंबे समय से इसकी मांग हो रही है। लेकिन चुनाव के नजदीक आते ही इसकी मांग जोर पकड़ने लगती है। विपक्ष में जो भी दल होता है, वह जातिगत जनगणना की मांग उठाता है।

नईदिल्ली। बिहार में आज जातिगत जनगणना का सर्वे जारी हो गया है। बिहार जरिगत सर्वे जारी करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। बिहार के बाद अब देश भर में इसकी मांग में तेजी आई है। देश के सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस ने भी संसद में इस मुद्दे को उठाया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने महिला आरक्षण बिल पर बात रखते हुए जातिगत जनगणना की मांग को उठाया है। उन्होंने यहां तक ऐलान कर दिया है कि 2024 में यदि कांग्रेस की सरकार बनने पर जातिगत जनगणना कराई जाएगी। इससे पहले राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इसे लेकर प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है। इसमें उन्होंने लिखा है कि बिना आंकड़ों के सामाजिक न्याय के कार्यक्रम अधूरे हैं।

कांग्रेस की इस मांग को विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A के दलों का साथ मिल रहा है। आप सांसद संजय सिंह ने कहा कि सभी विपक्षी पार्टियां जाति जनगणना की मांग कर रहीं हैं, इसलिए इसे कराया जाना चाहिए। इससे पहले बिहार की जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल भी इसका समर्थन कर चुकी है।वहीँ उप्र की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी भी इसके समर्थन में है।

चुनाव आते ही मांग में तेजी


बता दें कि जातिगत जनगणना का मुद्दा नया नहीं है, बल्कि लंबे समय से इसकी मांग हो रही है। लेकिन चुनाव के नजदीक आते ही इसकी मांग जोर पकड़ने लगती है। विपक्ष में जो भी दल होता है, वह जातिगत जनगणना की मांग उठाता है। इस संबंध में इसके समर्थकों का तर्क है कि जातिगत जनगणना होने से नीतियां बनाने में मदद मिलेगी. वहीं, इसके विरोधियों का तर्क है कि ये समाज को बांटने वाला कदम है। अब जानते है कि आखिर भारत में जातिगत जनगणना की मांग क्यों उठती है, इससे राजनीति पर क्या असर पड़ेगा ?

क्या होती है जातिगत जनगणना ?


सबसे पहले समझते है की आखिर ये जातिगत जनगणना क्या होती है, जिसकी मांग की जा रही है। हर दस साल बाद जनगणना कराई जाती है, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर सरकार को विकास योजनाएं तैयार करने में मदद मिलती है। जातिगत जनगणना के तहत इस दौरान लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाती है। इससे पता चलता है कि देश में किस जाति के कितने लोग रहते है।सीधे शब्दों में कहें तो जाति के आधार पर लोगों की गणना करना ही जातीय जनगणना होता है।

जनगणना का इतिहास-

  • भारत में पहली बार जनगणना साल 1881 में हुई थी। उस समय भारत की आबादी 25.38 करोड़ थी। इसके बाद से हर 10 साल में जनगणना होती है।
  • साल 1881 से 1931 तक अंग्रेजों ने जातिगत जनगणना कराई गई थी।1941 में भी जातिगत जनगणना हुई, लेकिन इसके आंकड़े पेश नहीं किए गए थे।
  • अगली जनगणना 1951 में हुई लेकिन तब तक देश आजाद हो चुका था और आजादी के बाद इस जनगणना में सिर्फ अनुसूचित जातियों और जनजातियों को ही गिना गया।
  • इसके बाद से ही साल 2011 तक सिर्फ एससी और एसटी के आंकड़े जारी किए जाते है।

अब क्यों है जातिगत जनगणना की जरूरत -

  • देश में आखिरी बार साल 1931 में पिछड़ा वर्ग के लोगों के आंकड़े जारी किए गए थे।
  • उस समय देश में पिछड़े वर्ग के लोगों की संख्या 52 फीसदी थी।
  • वर्तमान समय में भी सरकार उसी आंकड़े के आधार पर पिछड़े वर्ग के लिए नीतियां बनाती है।
  • जानकारों का कहना है साल 1951 के बाद से ओबीसी का आंकड़ा जारी ना होने के कारण उनकी सही आबादी का अनुमान लगाना मुश्किल है।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि एससी और एसटी को जो आरक्षण मिलता है, उसका आधार उनकी आबादी है लेकिन ओबीसी के आरक्षण का कोई आधार नहीं है।

विपक्ष का एजेंडा -


अब बात करते है कि आखिर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल क्यों इसकी मांग कर रहे है ? इन दलों को जातिगत जनगणना से क्या लाभ होगा।दरअसल, विपक्ष का एजेंडा ओबीसी समुदाय को लुभाना है की वे इस समुदाय को बताना चाहते है की हम आपके लाभ के लिए जातिगत जनगणना की मांग कर रहे है। जबकि असल एजेंडा जातिगत जनगणना के सहारे सत्ता हासिल करना है। विपक्षी दल जातिगत जनगणना के आंकड़ों के आधार पर आरक्षण की मांग कर विपक्ष दलितों और पिछड़ों के बड़े वोट को अपने पक्ष में लाना चाहता है।आंकड़े सामने आने के बाद जिन जातियों की संख्या ज्यादा होगी। उन वर्ग के लोगों को लुभाने और अपने पक्ष में लाने में आसानी होगी । इसीलिए विपक्ष बार-बार जातिगत जनगणना की मांग कर रहा है।

भाजपा का तर्क -


दूसरी ओर भाजपा समेत एनडीए में शामिल दल इसका विरोध कर रहे है। जिसका बड़ा कारण समाज में समावेशी की भावना को बनाए रखना है। भाजपा का तर्क है कि जातिगत जनगणना कराने से समाज के अंदर फूट पड़ने की संभावना बढ़ जाएगी। यदि पिछड़ी जातियों की संख्या अधिक निकली तो वे अपने लिए अधिक आरक्षण की मांग करेंगी। ऐसे में समाज में जातियों के बीच टकराव की संभावना बढ़ जाएगी।

कांग्रेस का दोहरा रवैया -


बता दें कि जो कांग्रेस आज संसद में जातिगत जनगणना की मांग कर रही है। ओबीसी के आंकड़े जारी करने की बात कर रही, उसी कांग्रेस ने कर्नाटक में सत्ता में रहते हुए साल 2015 में जातिगत जनगणना कराई थी लेकिन जातिगत जनगणना के आंकड़े आज तक जारी नहीं किए है। इससे पहले देश में आखिरी बार जनगणना भी साल 2011 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के कार्यकाल में हुई थी लेकिन इसके बाद तीन साल तक सत्ता में रहने के बावजूद आंकड़े जारी नहीं किए थे। अब विपक्ष में रहते हुए इसकी मांग एक बार फिर अपने स्वार्थ के लिए शुरू कर दी है।

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