अमरुल्ला सालेह ने तालिबान को दी चुनौती, खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया

अमरुल्ला सालेह ने तालिबान को दी चुनौती, खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया
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काबुल। अफगानिस्तान पर तालिबानी आतंकवादियों के कब्जे को चुनौती देने के लिए पंजशीर घाटी में प्रतिरोधी गठबंधन आकार ले रहा है। इसकी अगुवाई अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह और पंजशीर घाटी के शेर के रूप में प्रसिद्ध महरूम अहमद शाह मसूद के पुत्र अहमद मसूद कर रहे हैं। उपराष्ट्रपति सालेह ने स्वयं को अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर दिया है और वह पंजशीर घाटी में मसूद के साथ मिलकर विभिन्न प्रतिरोधी संगठनों को एक मंच पर साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं। सालेह ने भारतीय मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि अफगानिस्तान में युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है। वह देश को तालिबानी कब्जे मुक्त कराने के लिए अफगानिस्तान के आवाम के साथ खड़े हैं।

सालेह ने अफगानिस्तान के संविधान का हवाला देते हुए कहा कि राष्ट्रपति के निधन, उनकी गैर मौजूदगी, त्यागपत्र अथवा देश छोड़ देने की स्थिति में प्रथम उपराष्ट्रपति को कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया जाता है। संविधान के प्रावधान के अनुसार वह इस समय अफगानिस्तान के वैधानिक कार्यवाहक राष्ट्रपति है। उन्होंने कहा कि वह तालिबान विरोधी मोर्चा बनाने के लिए विभिन्न गुटों और नेताओं के संपर्क में है।

पाकिस्तान पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की जनता पाकिस्तान की शह पर काबिज क्रूर तानाशाही को अस्वीकार करती है। इस बीच अफगानिस्तान के जलालाबाद और नंगहार में तालिबान विरोधी प्रदर्शन हुए हैं। जलालाबाद में प्रदर्शनकारियों ने नगर के बीच में लगे तालिबान के झंडे को उतारकर अफगानिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया। तालिबान आतंकवादियों ने लोगों को तीतर-बीतर करने के लिए अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें कम से कम 3 नागरिक मारे गए और अनेक घायल हो गए।

कार्यवाहक राष्ट्रपति की इस घोषणा के बाद तजाकिस्तान की राजधानी दुशांबे में अफगानिस्तान के दूतावास में भगोड़े राष्ट्रपति अशरफ गनी का चित्र उतारकर अमरुल्ला सालेह का चित्र लगा दिया गया है। उनके साथ ही अहमद शाह मसूद का चित्र भी लगाया गया है। उल्लेखनीय है कि तालिबान के अफगानिस्तान पर पहले के कब्जे के दौरान अहमद शाह मसूद ने नोर्दन अलायंस के जरिए जबरदस्त प्रतिरोध किया था। तालिबान के कब्जे से अनेक इलाकों को मुक्त करा लिया गया था। मसूद को भारत का मित्र माना जाता था। इस बात के संकेत हैं कि पंचशीर घाटी एक बार फिर प्रतिरोध का केन्द्र बन सकता है। तालिबान विरोधी दो गुटों के नेता अब्दुल रशीद दोस्तम और मोहम्मद अट्टा मजार-ए-शरीफ पर तालिबान के कब्जे के बाद उज्बेकिस्तान चले गए हैं। कार्यवाहक राष्ट्रपति तालिबान विरोधी सभी संगठनों का एक मोर्चा बनाकर देश को तलिबान के कब्जे से आजाद कराने का इरादा रखते हैं।

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