एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान को चीन-सऊदी अरब ने दिया 'धोखा', तुर्की की नापाक साजिश को शिकस्त
नई दिल्ली। फाइनैंशल एक्शन टाक्स फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को एक बार फिर ग्रे लिस्ट में बरकरार रखा है। इमरान खान को एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से मुक्ति नहीं मिलने को लेकर तो झटका लगा ही, लेकिन साथ में फजीहत इस बात को लेकर भी हुई कि 39 सदस्य देशों में से केवल तुर्की ने पाक को ग्रे लिस्ट से बाहर निकाले जाने की वकालत की।
पाकिस्तान और तुर्की के बीच बेहतर समीकरण के पीछे असल में नए कट्टर इस्लामिक धुरी के विकास का प्रयास है, जो इस्लामिक दुनिया में सऊदी अरब से नेतृत्वकारी स्थान लेना चाहता है। रेसप तैयप एर्दोगन के नेतृत्व में तुर्की तुर्क साम्राज्य की विरासत को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहा है।
पेरिस और ब्रसेल्स में मौजूद कूटनीतिज्ञों के मुताबिक, तुर्की के अलावा सभी देश पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में बरकरार रखने के पक्ष में थे, क्योंकि सभी समयसीमा खत्म हो जाने के बावजूद पाकिस्तान ने एक्शन प्लान को पूरी तरह लागू नहीं किया है। पाकिस्तान ने अधूरे मन से 27 में से 21 एक्शन पॉइंट पर काम किया, लेकिन छह अहम कदमों की उसने अनदेखी की। अब एक बार फिर फरवरी 2021 में पाकिस्तान की परीक्षा होगी।
प्लेनरी से पहले इंटरनेशनल कोऑपरेशन रिव्यू ग्रुप (ICRG) की बैठक में तुर्की, चीन और सऊदी अरब ने टेक्निकल ग्राउंड्स पर पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर निकालने की वकालत की, लेकिन FATF की प्लेनरी बैठक में केवल तुर्की ने ही पाकिस्तान की वकालत की।
मध्य-पूर्व पर नजर रखने वाले एक जानकार ने कहा, ''इराक, सीरिया से लेकर लीबिया और अजरबैजान तक, तुर्की हर जगह मुश्किलें पैदा कर रहा है। तुर्की पाकिस्तान के साथ, आईएसआई, आतंकवाद और इस्लामी विद्रोहियों को संगठित करके दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हिंसा, अस्थिरता और अशांति उत्पन्न कर रहा है।''
पाकिस्तान की तरह तुर्की भी अछूत राज्य है, जिसका रूस के साथ सीरिया और अर्मेनिया-अजरबेजान को लेकर रिश्ते ठीक नहीं हैं तो अमेरिका से रूसी हथियार खरीदने की वजह से और यूरोपीय यूनियन से प्रवासियों और भारत से जम्मू-कश्मीर को लेकर हस्तक्षेप की वजह से टकराव है। पूर्व में बड़ा व्यापारिक ताकत होने के बावजूद इस्तांबुल के बीजिंग से मुश्किल से कोई रिश्ता है। पाकिस्तान रक्षा सहयोग और भारत के खिलाफ जम्मू-कश्मीर पर बयानबाजी को लेकर तुर्की पर निर्भर है।