भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारी सैन्य तैनाती नहीं हो : विदेश मंत्रालय

भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारी सैन्य तैनाती नहीं हो : विदेश मंत्रालय
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नई दिल्ली/वेब डेस्क। भारत ने अमेरिका की एक संसदीय संस्था द्वारा चीन के आक्रामक रवैये पर जारी वार्षिक रिपोर्ट पर सीधी टिप्पणी करने से बचते हुए कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति और सामान्य स्थिति कायम करने के लिए जरूरी है कि उस क्षेत्र में बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती न की जाए। विदेश मंत्रालय ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति और सामान्य स्थिति बनाए रखने के लिए जरूरी है कि दोनों पक्ष वर्ष 1993 और वर्ष 1996 में हुए समझौतों और तौर-तरीकों का कड़ाई से पालन करें।

दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा का पालन और सम्मान करें तथा किसी एक तरफा कार्रवाई से परहेज करें। अमेरिकी रिपोर्ट पर भारत की प्रतिक्रिया के बारे में पूछे जाने पर प्रवक्ता ने विदेश मंत्रालय के पूर्व में दिए बयान का हवाला दिया। यह केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा के हालात से संबंधित था। बयान में विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच गत 17 जून को हुई बातचीत का ब्यौरा था। यह बातचीत पूर्वी लद्दाख के गालवान घाटी क्षेत्र में हुई सैन्य झड़प के तुरंत बाद आयोजित हुई थी। गलवान घाटी में देश की संप्रभूता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करते हुए 20 भारतीय जवानों ने शहादत दी थी।

उल्लेखनीय है कि अमेरिका की आर्थिक और सुरक्षा समीक्षा आयोग ने वहां की संसद को सौंपी गई वर्ष 2020 की रिपोर्ट में कहा था कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने गलवान घाटी में सैन्य कार्रवाई की साजिश रची थी। रिपोर्ट में चीन के अधिकारियों और मीडिया के हवाला देते हुए कहा गया था कि चीन ने गलवान घाटी में सैन्य कार्रवाई के संदर्भ में सैनिकों के हताहत होने की संभावना भी जताई थी।

चीन की इस कार्रवाई का उद्देश्य शांति काल में पड़ोसी देश के खिलाफ बाध्यकारी हथकंड़ों का इस्तेमाल करने की रणनीति थी। रिपोर्ट में पूर्वी लद्दाख के साथ ही ताइवान और दक्षिणी चीन सागर में चीन की आक्रामक गतिविधियों का उल्लेख किया गया। इस रिपोर्ट पर भारत की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई।

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