भारत का बड़ा प्रश्न, यूएन क्या भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के बोझ तले दब गया है
- एक बार फिर भारत ने संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर उठाए सवाल
संयुक्त राष्ट्र । संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की प्रासंगिकता पर भारत ने एक बार फिर सवाल उठाए हैं। संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि प्रतीक माथुर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंग खासतौर पर सुरक्षा परिषद 21वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के बोझ तले दब गई है। भारत ने लगातार इस दृष्टिकोण की वकालत की है कि महासभा को तभी पुनर्जीवित किया जा सकता है जब संयुक्त राष्ट्र के मुख्य विचार-विमर्श, नीति-निर्धारण और प्रतिनिधि अंग के रूप में इसकी स्थिति का अक्षरशः और आत्मा दोनों में सम्मान किया जाए।
महासभा अपनी प्रतिष्ठा तभी प्राप्त कर सकता है जब करेगी वह ये काम
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को बहुपक्षवाद के जरिये अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को सुलझा कर अपनी प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही इसे नकारने वालों को सुधार में बाधा बनने से रोकना होगा। भारत संयुक्त राष्ट्र महासभा में लगातार इसकी प्रासंगिकता की वकालत करता रहा है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी आयोग में काउंसलर प्रतीक माथुर ने कहा कि महासभा अपनी प्रतिष्ठा तभी प्राप्त कर सकता है जब यह मुख्य विचारक, नीति निर्माता की अपनी भूमिका को पुनर्स्थापित करे।
उन्होंने कहा कि हमें स्वीकार करना चाहिए कि सामूहिक होने के बावजूद इसकी प्रासंगिकता को कम करने की अनुमति देने के लिए कुछ दोष महासभा और उसके सदस्य देशों का है। उनके ऐसा कहने पर कई देशों ने इस मामले में अपना दोष स्वीकार्य किया । उन्होंने कहा कि यह धारणा बढ़ती जा रही है कि महासभा ने धीरे-धीरे अपनी मूलभूत जिम्मेदारियों से संपर्क खो दिया है और प्रक्रियाओं से अभिभूत हो गई है। इसके अलावा, सुरक्षा परिषद में विषयगत मुद्दों पर चर्चा करने के प्रयासों ने जनरल की भूमिका और अधिकार को भी कमजोर कर दिया है।
हमें करना होगा कुछ देशों के जूठ का पर्दाफाश
माथुर ने कहा, भारत का मानना है कि बहुपक्षवाद, पुनर्संतुलन, निष्पक्ष वैश्वीकरण और सुधारित बहुपक्षवाद को लंबे समय तक स्थगित नहीं रखा जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र की बैठक में 'महासभा के कार्य का पुररुद्धार' विषय पर बोलते हुए माथुर ने कहा कि हमें कुछ देशों के झूठ का पर्दाफाश करते हुए सदस्य देशों को इनके खिलाफ सामूहिक आवाज उठानी चाहिए। किसी को भी इसकी प्रक्रिया को बाधित करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि महासभा के बारे में एक अवधारणा बनती जा रही है कि यह अपने मूल कर्तव्यों से भटक गई है, अब इसकी प्रक्रियाओं में व्यापक सुधार की जरूरत है। भारत निष्पक्ष वैश्वीकरण, पुनर्संतुलन व बहुपक्षवाद में सुधार का हिमायती है। इसे लंबे समय तक टाला नहीं जा सकता। महासभा को बहुपक्षवाद पर ध्यान केंद्रित करते हुए वैश्विक एजेंडा तय करना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने सभी देशों से बहुपक्षवाद में सुधार का समर्थन करने की अपील की।
यूएनएससी सुधारों पर एक तय समय में ठोस परिणाम देनेवाली संस्था बने
भारत ने इस बात पर जोर दिया कि 193 सदस्यीय महासभा की प्रधानता और वैधता इसकी सदस्यता की समावेशी प्रकृति और इसके सभी घटकों की संप्रभु समानता के सिद्धांत से आती है। भारत ने जोर देकर कहा कि यह सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि 14 साल पहले शुरू हुई यूएनएससी सुधारों पर आईजीएन प्रक्रिया एक निश्चित समय सीमा के भीतर पाठ-आधारित प्रक्रिया के माध्यम से ठोस परिणाम दे। समय बीतने के साथ, ऐसे कई मौके आए हैं जब महासभा ने वैश्विक एजेंडा तय करते समय आगे बढ़कर नेतृत्व किया है।
उन्होंने कहा कि 2015 में सतत विकास शिखर सम्मेलन, उसके बाद सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा को अपनाना और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज पर उच्च स्तरीय बैठक इस बात के उदाहरण हैं कि महासभा कैसे वैश्विक एजेंडा निर्धारित कर सकती है और वैश्विक समुदाय को समाधान के लिए प्रेरित कर सकती है। उन्होंने कहा, हमें उम्मीद और उम्मीद है कि अगले साल होने वाले भविष्य के शिखर सम्मेलन के संबंध में चल रहे विचार-विमर्श के परिणाम भी ऐसे ही रहेंगे। संयुक्त राष्ट्र ने अगले साल सितंबर में होने वाले भविष्य के शिखर सम्मेलन को पीढ़ी में एक बार मिलने वाला अवसर करार दिया है।
उल्लेखनीय है कि भारत लगातार परिषद की स्थायी सदस्यता में अफ़्रीका के प्रतिनिधित्व की कमी का मुद्दा उठाता रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद पांच स्थायी सदस्यों चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका और 10 निर्वाचित गैर-स्थायी सदस्यों से बनी है, जिनका कार्यकाल दो साल का होता है। भारत ने पिछले साल दिसंबर में परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया है ।