केरल से आई एक खबर ने पूरे देश को चौंकाया
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बदन झुलसा जाए रे, केरल की गरमी...
होली की छुट्टियों के बाद केरल से आई एक खबर ने पूरे देश को चौंका दिया। गुरुवार और शुक्रवार को कई चैनलों और वेबसाइट पर यह खबर खूब चली कि केरल में गरमी आने से पहले ही तापमान 54 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। खबर पढऩे वाले भी हैरान थे कि केरल में आखिर तापमान इतना अधिक कैसे हो सकता है और तापमान यदि इतना अधिक है तो वहां लोग जी कैसे रहे हैं? सवाल इसलिए भी उठा क्योंकि मौसम विभाग के रिकार्ड के अनुसार भारत में अब तक का सबसे अधिक तापमान 51 डिग्री सेल्सियस 19 मई 2016 को राजस्थान के फलौदी में नापा गया था। इस मामले को समझने के लिए कुछ बातों की तह में जाना जरूरी है। सबसे पहले खबर की दुनिया वालों की ही बात कर लें।
हम नासमझी के लिए केवल सोशल मीडिया को ही कोसते हैं, पर ऐसा नहीं है कि मुय मीडिया में भी सब समझदार ही बैठे हों। ऐसा मैंने इसलिए कहा क्योंकि ऐसे कई मीडिया माध्यमों ने सीधे-सीधे यह खबर परोसी कि केरल के कुछ स्थानों पर तापमान 54 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। जबकि ठीक-ठीक ऐसा नहीं है। दरअसल केरल में जो हुआ है उसे मौसम विज्ञान की भाषा में ताप सूचकांक (हीट इंडेक्स) कहते हैं। इसे तापमान और हवा में नमी के मेल से पैदा होने वाली स्थिति को मानव शरीर पर महसूस होने वाली गरमी के आधार पर नापा जाता है। यह अनुपात जितना अधिक होगा महसूस होने वाली गरमी भी उतनी ही अधिक होगी। उदाहरण के लिए तापमान भले ही 40 डिग्री सेल्सियस हो, लेकिन उसके समानांतर यदि नमी (सापेक्षिक आर्द्रता) 50 प्रतिशत है तो लोगों को 55 डिग्री सेल्सियस के तापमान वाली गरमी महसूस होगी। केरल में यही हो रहा है। इस स्थिति में थर्मामीटर में तापमान भले ही 40 डिग्री सेल्सियस दिखाई दे पर मानव शरीर के लिए वह बहुत खतरनाक होगा क्योंकि हम पर उसका असर 55 डिग्री सेल्सियस के जैसा होगा। इसलिए केरल में लोगों से कहा गया है कि वे घर से बाहर न निकलें। देखा जाए तो यह गरमी नहीं, नमी का खेल है। जब हमारा शरीर गरम होता है तो हमें पसीना आता है। पसीना आना शरीर को ठंडा करने वाली प्रक्रिया है। जब पसीना भाप बनकर उड जाता है तो शरीर ठंडा हो जाता है। पर वातावरण की नमी के कारण यदि पसीना सूख न पाए तो शरीर ठंडा नहीं हो पाता और हमें गरमी ज्यादा महसूस होती है। तो जब-जब भी हवा के तापमान और सापेक्षिक आर्द्रता में कमी या बढोतरी होती है, गर्मी सूचकांक यानी महसूस होने वाली गरमी का असर बढ़ता या घटता है। ठीक यही बात दूसरे तरीके से हम ठंड में भी अनुभव करते हैं। ठंड में हमारे शरीर की गरमी से आसपास की हवा गरम हो जाती है और उस गरम कवच के चलते हमें ठंड कम महसूस होती है। लेकिन तेज हवा चलने पर यह कवच बिखर जाता है इसलिए तापमान में कमी के बावजूद कई बार हमें उतनी ठंड नहीं लगती जितनी उस समय लगती है जब ठंड के साथ तेज हवा भी चल रही हो।
मौसम विज्ञान की भाषा में इसे शीत लहर या विंड चिल कहते हैं। इसका असर तापमान और हवा की गति पर निर्भर करता है। जैसे यदि तापमान 4.5 डिग्री सेल्सियस है और उसके साथ हवा 15 मील प्रति घंटे की गति से बह रही है तो हमें शून्य डिग्री सेल्सियस के तापमान वाली ठंड महसूस होगी। तो सारा खेल महसूस होने का है, भले ही गरमी हो या सरदी। इसलिए बेहतर है मौसम से पंगा न लें... बच कर रहें, उसी में भलाई है।