अनहोनी को होनी में बदल देती है अहोई अष्टमी व्रत
- निःसंतान गृहस्थ के लिए इस बार बन रहा गुरू पुष्य अमृत सिद्धि योग
- डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी विभागाध्यक्ष ज्योतिष श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय चित्तौड़गढ़ राजस्थान
वेबडेस्क। भारतीय सनातन पञ्चांग में प्रत्येक वर्ष करवाचौथ के ठीक चार दिन बाद यानि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का पर्व मनाया जाता है । 28 अक्तूबर गुरुवार के दिन अहोई माता का व्रत इस बार होगा । अहोई का अर्थ ही है जो नहीं होना हो, अर्थात जो भाग्य में नहीं हो वह भी इस व्रत से हो जाता है । अहोई देवी माता पार्वती के स्वरूप को ही माना गया है । करवाचौथ के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए तो वहीं अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं अपने संतान की खुशी व लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं । सनातन धर्म में इस व्रत को विशेष महत्व है ।
इस खास अवसर पर हम आपको एक ऐसे जगह के दर्शन करवाने वाले हैं, जहां अगर कोई निसंतान दंपत्ति दर्शन करती हैं, व वहां स्थित कुंड में श्रद्धा विश्वास से स्नान करती है तो उन्हें निश्चित ही संतान की प्राप्ति होती है । वस्तुतः जिस कुंड की हम बात कर रहे हैं वो और कहीं नहीं बज्र में स्थित है । जी हां, मथुरा से लगभग 26 कि.मी दूर एक कुंड स्थित है जिस राधाकुंड के नाम से जाना जाता है । बताया जाता है ये कुंड का धार्मिक और पौराणिक दोनों ही दृष्टि से महत्व रखता है। कहां जाता है इस कुंड में इतनी शक्ति है कि केवल यहां डुबकी लगाने मात्र से दंपत्ति को संतान प्राप्त हो सकती है । विशेष तौर पर यहां अहोई अष्टमी की रात 12 बजे स्नान करने का मान्यता प्रचलित है कि कोई इस समय यहां स्नान करता है तो उसे पुत्र रत्न प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष अहोई अष्टमी पर यहां महास्नान का आयोजन होता है, जिसमें हज़ारों की तादाद में लोग पहुंचते हैं । यहां श्री कृष्ण ने दिया था राधा रानी को वरदान, इस कुंड से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक बार अरिष्टासुर ने गाय के बछड़े का रूप धारण कर श्रीकृष्ण पर हमला किया, जिसका श्री कृष्ण ने वध कर दिया था। इसके बाद जब श्री कृष्ण राधा रानी के पास गए तो राधारानी ने उन्हें बताया कि जब अरिष्टासुर का वध किया तब वह गौवंश के रूप में था, जिस कारण उन पर गौवंश हत्या का पाप लग गया है।
श्याम कुंड की कथा -
ऐसी कथाएं हैं कि इस पाप से मुक्ति का उपाय करने के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड जिसका नाम श्याम कुंड था, उसे खोदा व उसमें स्नान किया। इसके उपरांत ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी राधा रानी ने भी श्याम कुंड के बगल में अपने कंगन मात्र से एक और कुंड खोदा, जिसे आज के समय में राधा कुंड के नाम से जाना जाता है। जिसमें श्री कृष्ण ने स्नान भी किया। ऐसा कहा जाता है कि यहां स्नान करने के बाद राधा जी और श्रीकृष्ण ने वहां महारास रचाया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने राधा को वरदान मांगने को कहा। तब राधा रानी जी उन्हें कहा कि जो भी इस तिथि को राधा कुंड में स्नान करे, उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो, ऐसा वरदान दें। जिस कारण अहोई अष्टमी के दिन यहां स्नान करने की परंपरा प्रचलित हुई है। ठीक ऐसी ही कथा बद्रीधाम स्थित शीतल कुंड के लिए भी है इस दिन बद्रीधाम के शीतल कुंड की भी मान्यता अधिक है।
शिव और मां पार्वती की पूजा
अहोई अष्टमी व्रत के साथ ही इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है । अहोई अष्टमी का व्रत संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता है। मान्यता ये भी है कि इस दिन व्रत रखने से अहाई माता प्रसन्न होती हैं और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। जिनकी संतान दीर्घायु न हो रही हो या फिर गर्भ में ही मृत्यु हो रही हो उन महिलाओं के लिए भी अहोई अष्टमी का व्रत काफी शुभ माना जाता है । ये उपवास आयुकारक और सौभाग्यकारक होता है ।
पूजा विधि -
प्रातः स्नान करके अहोई की पूजा का संकल्प लें । अहोई माता की आकृति, गेरू या लाल रंग से दीवार पर बनाएं । सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर पूजन आरम्भ करें । पूजा की सामग्री में एक चांदी या सफेद धातु की अहोई, चांदी की मोती की माला, जल से भरा हुआ कलश, दूध-भात, हलवा और पुष्प, दीप आदि रखें । पहले अहोई माता की रोली, पुष्प, दीप से पूजा करें और उन्हें दूध भात अर्पित करें । फिर हाथ में गेंहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा (बयाना) लेकर अहोई की कथा सुनें।
पौराणिक कथा -
अहोई अष्टमी कथा के अनुसार एक शहर में एक साहूकार के 7 लड़के रहते थे । साहूकार की पत्नी दिवाली पर घर लीपने के लिए अष्टमी के दिन मिट्टी लेने गई । जैसे ही मिट्टी खोदने के लिए उसने कुदाल चलाई वह साही की मांद में जा लगी, जिससे कि साही का बच्चा मर गया। साहूकार की पत्नी को इसे लेकर काफी पश्चाताप हुआ, इसके कुछ दिन बाद ही उसके एक बेटे की मौत हो गई। इसके बाद एक-एक करके उसके सातों बेटों की मौत हो गई। इस कारण साहूकार की पत्नी शोक में रहने लगी।
एक दिन साहूकार की पत्नी ने अपनी पड़ोसी औरतों को रोते हुए अपना दुख की कथा सुनाई, जिस पर औरतों ने उसे सलाह दी कि यह बात साझा करने से तुम्हारा आधा पाप कट गया है। अब तुम अष्टमी के दिन साही और उसके बच्चों का चित्र बनाकर मां भगवती की पूजा करो और क्षमा याचना करो। भगवान की कृपा हुई तो तुम्हारे पाप नष्ट हो जाएंगे। ऐसा सुनकर साहूकार की पत्नी हर साल कार्तिक मास की अष्टमी को मां अहोई की पूजा व व्रत करने लगी। माता रानी कृपा से साहूकार की पत्नी फिर से गर्भवती हो गई और उसके कई साल बाद उसके फिर से सात बेटे हुए। तभी से अहोई अष्टमी का व्रत चला आ रहा है।कथा के बाद माला गले में पहन लें और गेंहू के दाने तथा बयाना सासु मां को देकर उनका आशीर्वाद लें । अब तारों को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करें।
संतान का सुख पाने के लिए -
संतान का सुख पाने के लिए इस दिन अहोई माता और शिव जी को दूध भात का भोग लगाएं । चांदी की नौ मोतियां लेकर लाल धागे में पिरो कर माला बनायें । अहोई माता को माला अर्पित करें और संतान को संतान प्राप्ति की प्रार्थना करें । ध्यान रहे चांदी के अभाव में आप रुई की करमाला भी बना सकते है । पूजा के उपरान्त अपनी संतान और उसके जीवन साथी को दूध भात खिलाएं । अगर बेटे को संतान नहीं हो रही हो तो बहू को, और बेटी को संतान नहीं हो पा रही हो तो बेटी को माला धारण करवाएं ।
बन रहा अमृत सिद्ध योग -
इस दिन सुबह 9 बजकर 42 मिनट से गुरु पुष्य नक्षत्र लग जाएगा, जो पूजा के लिए अत्यंत शुभ होता है । अमृत सिद्ध योग सुबह 9 बजकर 42 मिनट से शुरू होगा, जो 29 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 25 मिनट तक रहेगा । अमृत सिद्ध योग में किया गया कोई भी शुभ कार्य सफल होता है । साफ शब्दों में कहें तो इस योग में किया गया पूजन कार्य का शुभ फल आने वाले समय में निश्चित ही मिलता है ।
शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि 28 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार को दोपहर 12 बजकर 51 मिनट से शुरू हो रही है, जो अगले दिन 29 अक्टूबर सुबह 02 बजकर 10 मिनट तक रहेगी । इस दिन पूजा का शुभ समय शाम 6 बजकर 40 मिनट से 8 बजकर 35 मिनट तक रहेगा ।