लद्दाख सीमा पर वायुसेना अब रात में भी उड़ा सकेगी मिग-29
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एलएसी पर अब किसी भी परिस्थिति का मुकाबला करने में वायुसैनिकों की भूमिका 'गेम-चेंजर' वाली होगी
नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत-चीन की सेनाओं के पीछे जाने की प्रक्रिया के बीच भी वायुसेना अलर्ट है। एयरफोर्स ने अब अपने अस्थाई लेह बेस से रात के समय भी मिग-29 लड़ाकू विमानों को उड़ाने की क्षमता हासिल कर ली है। इसलिए एलएसी पर किसी भी परिस्थिति का मुकाबला करने में वायुसैनिकों की भूमिका 'गेम-चेंजर' वाली हो सकती हैै।
वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि लेह बेस पर तैनात लड़ाकू विमान मिग-29 को एविओनिक्स सिस्टम से अपग्रेड किया गया है। एवियोनिक्स इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों और उपकरणों की एक श्रेणी है, जो विशेष रूप से विमानन में उपयोग के लिए डिज़ाइन की गई हैं। वाणिज्यिक एयरलाइनर, हेलीकॉप्टर, सैन्य लड़ाकू जेट, मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी), बिजनेस जेट, और अंतरिक्ष यान सभी एवियोनिक्स का उपयोग करते हैं। ऐवियोनिकी शब्द का अर्थ है उड़ान में प्रयुक्त होने वाली इलेक्ट्रॉनिक्स प्रणाली, जिसमें मुख्यतः संचार, नेविगेशन, नियंत्रण और डिजिटल प्रदर्शन से सम्बंधित हार्डवेयर एवं साफ्टवेयर का निर्माण और संचालन सम्मिलित होता है। इस सॉफ्टवेयर से लैस हो जाने पर अब मिग-29 रात के ऑपरेशन में भी उड़ान भर सकते हैं।
वैसे तो वायुसेना ने पहले ही पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर नजर रखने के लिए लड़ाकू विमान मल्टी रोल कम्बैक्ट, मिराज-2000, सुखोई-30 एस एमकेआई और जगुआर तैनात कर रखे हैं जो रात में भी ऑपरेशन कर सकते हैं। भारत ने 14 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर किसी भी ऑपरेशन को करने के लिए अपाचे हेलीकॉप्टर, सुखोई लड़ाकू जेट और टैंक को एलएसी के साथ जोड़ा है। अमेरिकी अपाचे हेलीकॉप्टरों को उन क्षेत्रों के करीब तैनात किया गया है, जहां जमीनी सैनिक तैनात हैंं।अपाचे और चिनूक हेलीकॉप्टर भी रात के समय संचालन करते हैं लेकिन अब मिग-29 के भी अपग्रेड हो जाने से उनका भी 'नाइट ऑपरेशन' में इस्तेमाल किया जा सकेगा।
दूसरी तरफ चीनी एयरफोर्स ने अपने एयरबेस गरगांसा में चार से पांच जे-11 लड़ाकू विमानों को तैनात किया है जो एलएसी से लगभग 60-80 किमी. दूर है। इसके अलावा चीन ने कई जे-11 और जे-8 लड़ाकू विमानों को एयरबेस हॉटन और काशगर में तैनात कर रखा है। वायुसेना के एक रिटायर्ड विंग कमांडर के मुताबिक भारत के लिए यह इसलिए चिंता की बात नहीं है, क्योंकि जब चीनी लड़ाकू विमान एलएसी के पास उड़ान भरते हैं तो भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान भी ऐसा ही करते हैं। इसके अलावा चीनी जेट विमानों की हथियार और ईंधन-वहन की क्षमता उनके हवाई अड्डों के उच्च ऊंचाई पर स्थित होने के कारण काफी सीमित है। इसी का फायदा उठाकर भारतीय वायुसेना आसानी के साथ अपने मुख्य ठिकानों से पूरे भारत-तिब्बत सीमा से सटे हवाई क्षेत्र के लक्ष्यों तक पहुंच सकती है।
अब सवाल यह उठता है कि अधिकांश ऑपरेशन रात में ही क्यों किए जाते हैं, जिसके जवाब में भारतीय वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारी दो कारण बताते हैं। पहला कारण यह है कि रात के दौरान दुश्मन की तुलना में कम सतर्कता बरतनी पड़ती और दूसरे, विमान की सही लोकेशन पता लगाने की कम संभावना रहती है। एक अधिकारी ने बताया कि एलएसी क्षेत्र में चीनी हवाई क्षेत्र लेह की तुलना में अधिक ऊंचाई पर है। इसलिए चीन की भार वहन क्षमता कम है, जबकि लेह एयरबेस से चलने वाले लड़ाकू विमानों में भार-वहन क्षमता अधिक होती है। इसी वजह से भारत को दिन और रात दोनों में उड़ान भरने का रणनीतिक लाभ मिलता है।