शगुन परिहार: आतंकवाद के साए से उठकर सियासत में जीत की मिसाल

आतंकवाद के साए से उठकर सियासत में जीत की मिसाल
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29 वर्षीय शगुन परिहार ने जम्मू-कश्मीर की किश्तवाड़ विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार के रूप में 521 वोटों के अंतर से चुनाव जीतकर इतिहास रचा है। उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री सज्जाद अहमद किचलू को हराकर सबको चौंका दिया।

लेकिन शगुन की कहानी सिर्फ एक चुनावी जीत की नहीं है, बल्कि यह उस साहसी महिला की कहानी है जिसने अपने परिवार के सदस्यों को आतंकवाद में खोने के बाद भी हार नहीं मानी और मजबूत इरादों के साथ अपने क्षेत्र की सेवा के लिए राजनीति में कदम रखा।

आतंकवाद का दर्द और संघर्ष

शगुन परिहार का जीवन कभी सामान्य नहीं रहा। नवंबर 2018 में, जब उनके पिता अजित परिहार और चाचा अनिल परिहार की आतंकवादियों ने हत्या कर दी, तो उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उनके पिता उस समय भाजपा के राज्य सचिव थे, और उनकी हत्या से किश्तवाड़ में तनाव का माहौल बन गया था। इस घटना ने किश्तवाड़ के लोगों को गहरे सदमे में डाल दिया, और इलाके में कर्फ्यू तक लगाना पड़ा।

शगुन का परिवार लंबे समय से आतंकवाद के काले साये का सामना कर रहा था। उनके चाचा अनिल परिहार, जो किश्तवाड़ में भाजपा की एक अहम और उदारवादी आवाज़ थे, ने आतंकवाद के चरम समय में भी राजनीतिक सक्रियता बनाए रखी थी। वह 1990 के दशक में भाजपा के "डोडा बचाओ आंदोलन" में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे, जो आतंकवाद के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन था।

शगुन परिहार का सियासी सफर


शगुन परिहार के राजनीतिक सफर की शुरुआत असामान्य परिस्थितियों में हुई। 2018 की त्रासदी के बाद, शगुन राजनीति में आने का विचार नहीं कर रही थीं, लेकिन 26 अगस्त 2024 को जब भाजपा ने उन्हें किश्तवाड़ से उम्मीदवार घोषित किया, तब उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया।

शगुन ने अपने पहले चुनाव प्रचार में ही यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी लड़ाई सिर्फ वोटों के लिए नहीं है, बल्कि उन लोगों के बीच है जिन्होंने आतंकवाद और अन्याय का सामना किया है। उन्होंने खुद को "शांति, सुरक्षा और समृद्धि" लाने के लिए समर्पित बताया और अपने पिता व चाचा की विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।

शगुन की शिक्षा और उपलब्धियां

शगुन परिहार न सिर्फ एक प्रभावी नेता हैं, बल्कि उनकी शैक्षिक योग्यता भी प्रभावशाली है। उन्होंने विद्युत शक्ति प्रणालियों (Electrical Power Systems) में एमटेक की डिग्री हासिल की है और वर्तमान में पीएचडी कर रही हैं। साथ ही, वह जम्मू-कश्मीर लोक सेवा आयोग की परीक्षा की भी तैयारी कर रही हैं। यह दर्शाता है कि शगुन न केवल राजनीति में सक्रिय हैं, बल्कि अपनी शिक्षा और ज्ञान से भी समाज की सेवा के लिए तत्पर हैं।

चुनाव में जीत और भविष्य की उम्मीदें

किश्तवाड़ की यह सीट पारंपरिक रूप से नेशनल कॉन्फ्रेंस का गढ़ रही है, लेकिन 2014 में भाजपा ने पहली बार यहां जीत दर्ज की थी। इस बार शगुन ने अपनी जीत से दिखा दिया कि किश्तवाड़ की जनता ने उन्हें अपना समर्थन दिया है, खासकर उस इलाके में जहां 1990 के दशक से लेकर 2000 के दशक तक आतंकवाद का बोलबाला था।

भाजपा ने शगुन को चुनावी मैदान में उतारकर मुस्लिम और हिंदू समुदायों दोनों को आकर्षित करने की कोशिश की, और इस रणनीति में उन्हें सफलता भी मिली। शगुन के चाचा अनिल परिहार, जिन्हें मुस्लिम समुदाय में भी समर्थन हासिल था, ने शगुन की जीत की नींव रखी।

शगुन परिहार की कहानी हमें यह सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत और हौसला बनाए रखने से बड़ी से बड़ी चुनौतियों को पार किया जा सकता है। आतंकवाद ने उनके परिवार को प्रभावित किया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने क्षेत्र की सेवा के लिए राजनीति में कदम रखा।

शगुन का यह कदम न केवल उनके परिवार के लिए गर्व का विषय है, बल्कि उन सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है जो समाज में बदलाव लाने के लिए समर्पित हैं। उनका साहस, शिक्षा, और राजनीति में प्रवेश यह बताता है कि नई पीढ़ी का नेतृत्व न केवल समाज की समस्याओं को समझता है, बल्कि उनके समाधान के लिए भी प्रतिबद्ध है।

शगुन परिहार का यह सफर अभी शुरू हुआ है, और उनकी जीत से यह साबित होता है कि उनके पास जनता के भरोसे का बल है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वे अपने इस विश्वास को कैसे राजनीति में सार्थक बदलावों में बदलती हैं।

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