खुलासा: भीमा कोरेगांव हिंसा से अराजकता फैलाकर देश की सत्ता पर काबिज होना का था षड़यंत्र
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पुणे/वेब डेस्क। 2017 के अंत की रात और 2018 की सुबह जब पूरा देश नए साल का स्वागत कर रहा था। उस समय कुछ संगठन और उनके साथी हिंसा और अराजकता फैलाकर सत्ता में पहुंचने की राह तलाश रहे थे। भीमा कोरेगांव में 31 दिसंबर 2017 की रात हुई हिंसा मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। जिसके अनुसार माओवादी संगठनों की सीधी तौर पर भूमिका सामने आई है।
दरअसल, 31 दिसम्बर 2017 की शाम महाराष्ट्र के पुणे में एल्गार परिषद द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। जिसमें आयोजकों द्वारा भड़काऊ भाषण देकर लोगों को हिंसा करने के लिए उकसाया गया। उनकी यह योजना दो दिन बाद यानि 2 जनवरी 2018 को सफल हुई। भीमा कोरेगांव में जहाँ आयोजित कार्यक्रम में जुटी भीड़ ने अचानक हिंसक रूप धारण कर लिया।
देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की योजना -
भीमा कोरेगांव और एलगार परिषद से जुड़े इस मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा विशेष न्यायालय के समक्ष पेश की गई चार्ज शीट कल सार्वजनिक कर दी गई, इस चार्जशीट में एनआईए ने एलगार परिषद से जुड़े कई खुलासे किए हैं। भीमा कोरेगांव हिंसा में एलगार परिषद और माओवादियों के बीच संबंध को लेकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने इस चार्जशीट में कहा है कि, आरोपित अपनी सरकार बनाना चाहते थे और देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की योजना में थे।
सत्ता हथियाने के लिए क्रांति-
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने चार्जशीट में कहा है कि, आरोपितों का हिंसक गतिविधियों के पीछे मुख्य उद्देश्य राज्य से सत्ता हथियाने के लिए क्रांति और सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से 'जनता सरकार' स्थापित करना था और आरोपित शहरी माओवादियों का मंशा हिंसा को उकसाना तथा कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष फैलाना, साजिश करना, अव्यवस्था पैदा करना था, ताकि भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को खतरा हो।
भारत सरकार को निशाना बनाने की योजना -
इस आरोप पत्र का मूल बिंदु जो सबसे अधिक चौंकाने वाला है वह यह कि एलगार परिषद और माओवादी देश की जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को अस्थिर कर खुद सत्ता में आना चाहते थे इसके लिए उन्होंने भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार को निशाना बनाने की योजना तैयार की थी। इस चार्जशीट में यह भी आरोप लगाए गए हैं कि, शहरी माओवादी एल्गार परिषद बैठक के दौरान पुणे में भड़काऊ गाने चलाने के साथ-साथ लघु नाटक प्रस्तुत कर रहे थे और नक्सलियों के समर्थन में साहित्य भी वितरित रहे थे।
जेएनयू की भूमिका -
इसके अलावा, राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने वामपंथी गतिविधियों के लिए पहले ही बदनाम रहे दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और मुंबई स्थित टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) का भी वर्णन किया है। इस चार्जशीट में एनआईए की ओर से कहा गया है कि, इन दोनों ही शैक्षिक संस्थानों के छात्रों को माओवादी गतिविधियों के लिए भीमा-कोरेगाँव के आरोपित शहरी माओवादियों ने सम्मिलित किया था। इन्हीं छात्रों ने माओवादी गतिविधियों के लिए फंड भी एकत्रित किया था साथ ही इन छात्रों को आतंकी गतिविधियों में आगे किया गया था ताकि हिंसा के बाद इन्हें अंतरराष्ट्रीय संगठनों व बुद्धिजीवियों का समर्थन प्राप्त हो सके।
इन धाराओं में आरोप -
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने भीमा कोरेगांव हिंसा के लिए जिम्मेदार शहरी माओवादियों पर आरोपितों पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 120-बी (साजिश), 115 (अपराध के लिए उकसाना), 121, 121-ए (देश के खिलाफ युद्ध छेड़ना), 124-ए (राजद्रोह), 153-ए (जुलूस में हथियार), 505 (1) (बी) (अपराध को बढ़ावा देने वाले बयान) और 34 (साझा इरादे) के तहत आरोप लगाए गए हैं। उन पर यूएपीए की धाराओं 13, 16, 17, 18, 18ए, 18बी, 20 (आतंकवादी गतिविधियों के लिए सजा), 38, 39 और 40 (आतंकवादी संगठन का हिस्सा होने की सजा) के तहत आरोप लगाए हैं।