बायो रेमेडिएशन पद्धति से गंगा में शैवाल को करेंगे नष्ट, जानिये क्या है ये ?
वाराणसी/वेब डेस्क। गंगा में शैवाल की समस्या का समाधान जर्मनी की तकनीक से निकालने की कोशिश की जा रही है। दिल्ली से नमामि गंगे के विशेषज्ञों के निर्देश पर रविवार को बायो रेमेडिएशन पद्धति से गंगा में दो बार रसायन का छिड़काव किया गया। दशाश्वमेध घाट के आसपास 100 मीटर क्षेत्र में छिड़काव हुआ। चार नावों पर 10 सफाईकर्मियों ने गंगा में करीब एक घंटे तक मानमंदिर घाट, दरभंगा घाट, चौसट्टी घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट तक छिड़काव किया गया। टीम का दावा है कि घाटों के किनारे रविवार सुबह छिड़काव के कुछ घंटों में असर दिखा और पानी का रंग हल्का हरा हो गया। इस संबंध में भी पानी की जांच करके रिपोर्ट दी जाएगी। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय की टीम ने दशाश्वमेध घाट पर गंगाजल का सैंपल लिया है। टीम दो से तीन दिन बनारस में रहेगी और रोजाना दो बार रसायन का छिड़काव कराया जाएगा। सोमवार को अस्सी समेत अन्य घाटों पर छिड़काव होगा। नमामि गंगे के रिसर्च ऑफिसर नीरज गहलावत ने बताया कि जर्मनी की एल्गी ब्लूम ट्रीटमेंट प्रणाली के तहत गंगा में बायो रेमेडिएशन से तैयार घोल का छिड़काव कराया गया है। अब तक की रिपोर्ट के अनुसार पानी में ऑक्सीजन की मात्रा सामान्य है। जिससे जलीय जीवों को खतरा नहीं है। इस दौरान क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण नियंत्रण अधिकारी कालिका सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एनपी सिंह, एसके पाण्डेय आदि रहे।
क्या है बायो रेमेडिएशन
पानी, मिट्टी में प्रदूषक तत्वों को नष्ट करने के लिए सूक्ष्मजीवों या एंजाइम से तैयार घोल बनाया जाता है। इस पद्धति से तैयार रसायन से मिट्टी के सूक्ष्मजीवों या जलीय जीवों को नुकसान नहीं होता है इसलिए इसे बायो रेमेडिएशन कहा जाता है।