ब्लैक फंगस संक्रामक रोग नहीं, डायबिटीज के मरीज या स्टेरॉइड्स का सेवन करने वालों को खतरा

ब्लैक फंगस संक्रामक रोग नहीं, डायबिटीज के मरीज या स्टेरॉइड्स का सेवन करने वालों को खतरा
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नईदिल्ली। देश में म्यूकर माइकोसिस के मरीजों की संख्या बढ़ जरूर रही है, लेकिन कोरोना की तरह यह संक्रामक नहीं है। एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने सोमवार को प्रेसवार्ता में बताया कि म्यूकर माइकोसिस को रंगों के हिसाब से नाम देना गलत है। ब्लैक फंगस बीमारी किसी और फंगस से होती है।उन्होंने कहा कि म्यूकर माइकोसिस के फंगस में काले रंग के धब्बे होने के कारण इसे ब्लैक फंगस का नाम दिया जा रहा है जो कि गलत है। उन्होंने बताया कि म्यूकर माइकोसिस संक्रामक नहीं है। यह उन्हीं लोगों में होती है जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है । इसके साथ शुगर के मरीजों और ज्यादा स्टेरॉयड का सेवन करने वाले मरीजों को यह हो रही है। 90-95 प्रतिशत म्यूकरमाईकोसिस के मरीजों की संख्या इन्हीं लोगों की है।

उन्होंने बताया कि फंगल इंफेक्शन को उनके रंगों के बजाय म्यूकर माइकोसिस, कैंडिडा, एस्परगिलोसिस के नाम से चिह्नित किया जाना चाहिए। यह सारे इंफेक्शन कम प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को होते हैं। कोरोना से संक्रमित लोगों में यह देखा जा रहा है क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम हो गई होती है। खासकर डायबिटीज और स्टेरॉयड लेने वाले मरीजों में इसके होने संभावना अधिक है। इसके इलाज में काफी लंबा वक्त लगता है। जितनी जल्दी इसकी पहचान हो जाए उतनी जल्दी इसका इलाज संभव होता है।

कर माइकोसिस के लक्षण : -

  • चेहरे के एक हिस्से में सूजन होना,
  • सिर दर्द होना,
  • नाक व साइनस में भारीपन या बंद जैसा महसूस होना,
  • बुखार आना,
  • मुंह के अंदर काले रंग के धब्बे आना ।

कैंडिस इंफेक्शन में सफेद दाग -

कैंडिडा फंगल इन्फेक्शन में मुंह व जीभ में सफेद रंग के धब्बे देखे जाते हैं। यह फंगस शरीर के निजी अंग को भी संक्रमित कर सकता है। ज्यादा गंभीर होने पर यह फंगस खून में भी जा कर मिल सकता है। वहीं, एस्परगिलोसिस फंगस फेफड़ों पर असर डालता है । फेफड़ों में यह जगह बना लेता है। यह फंगस बेहद कम देखने को मिलता है।कोरोना के मरीजों में ज्यादातर म्यूकर माइकोसिस देखा जा रहा है।

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