ज्ञानवापी केस में नहीं होगी शिवलिंग की कार्बन डेटिंग, जानिए क्या होती है, क्यों उठ रही मांग ?
वाराणसी। ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग मामले में शुक्रवार को जिला जज डाॅ अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने कार्बन डेटिंग की मांग को खारिज कर दिया है। अब कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की जांच नहीं होगी। न्यायालय ने हिंदू और मुस्लिम पक्ष से जुड़े पक्षकार, उनके पैरोकार और अधिवक्ताओं की मौजूदगी में फैसला सुनाया।
इसके पहले अदालत ने न्यायालय परिसर में दोनों पक्षों से कुल 62 लोगों को प्रवेश की अनुमति मिली। इसके पूर्व दोनों पक्षों को सुनने और आपत्ति दाखिल करने के लिए समय देने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में प्रतिवादी पक्ष अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता मुमताज अहमद और एखलाक अहमद ने अदालत में तर्क दिया था कि 16 मई को सर्वे के दौरान मिली आकृति के बाबत दी गई आपत्ति का निस्तारण नहीं किया गया और मुकदमा सिर्फ शृंगार गौरी की पूजा और दर्शन के लिए दाखिल किया गया है। 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मिली आकृति को सुरक्षित व संरक्षित करने का आदेश दिया है। वैज्ञानिक जांच में केमिकल के प्रयोग से आकृति का क्षरण सम्भव है। कार्बन डेटिंग जीव व जन्तु की होती है, पत्थर की नहीं हो सकती, क्योंकि पत्थर कार्बन को एडाप्ट नहीं कर सकता।
प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ताओं का कहना था कि कार्बन डेटिंग वाद की मजबूती व साक्ष्य संकलित करने के लिए कराई जा रही है, ऐसे में कार्बन डेटिंग का आवेदन खारिज होने योग्य है। उधर,वादी पक्ष के अधिवक्ता ने न्यायालय में दलील दिया कि सर्वे के दौरान मस्जिद के वजूखाने से पानी निकाले जाने पर अदृश्य आकृति दृश्य रूप में दिखाई दी। ऐसे में अब वह मुकदमे का हिस्सा है। उस आकृति को नुकसान पहुंचाए बगैर उसकी और उसके आसपास के एरिया की वैज्ञानिक पद्धति से जांच एएसआई की विशेषज्ञ टीम से कराया जाना जरूरी है।
क्यों उठ रही मांग -
जांच से आकृति की आयु, उसकी लंबाई-चौड़ाई और गहराई का तथ्यात्मक रूप से पता लग सकेगा। अदालत में वादिनी राखी सिंह के अधिवक्ता मानबहादुर सिंह ने प्रतिउत्तर में दलील देने से इनकार कर दिया था। बताते चलें कि अगस्त 2021 में विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह विसेन के नेतृत्व में दिल्ली की राखी सिंह और वाराणसी की सीता साहू, मंजू व्यास, रेखा पाठक व लक्ष्मी देवी ने सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया था। पांचों महिलाओं ने मांग की थी कि ज्ञानवापी परिसर स्थित मां शृंगार गौरी के मंदिर में नियमित दर्शन-पूजन की अनुमति मिले। इसके साथ ही ज्ञानवापी परिसर स्थित अन्य देवी-देवताओं के विग्रहों की सुरक्षा के लिए मुकम्मल इंतजाम हो।
क्या होती है कार्बन डेटिंग -
कार्बन डेटिंग वो वैज्ञानिक जांच प्रक्रिया है, जिसके जरिए 50,000 साल पुराने अवशेष का पता लगाया जा सकता है। विज्ञान की भाषा में समझें तो अन्य दो आइसोटोप वायुमंडल में कार्बन-14 से अधिक आम हैं लेकिन जीवाश्म ईंधन के जलने के साथ उन्हें अध्ययन के लिए कम विश्वसनीय माना जाता है. कार्बन -14 भी बढ़ता है, लेकिन इसकी सापेक्ष दुर्लभता का मतलब है कि इसकी वृद्धि नगण्य है।
कार्बन-14 द्वारा कालनिर्धारण की विधि का प्रयोग पुरातत्व-जीव विज्ञान में जंतुओं एवं पौधों के प्राप्त अवशेषों के आधार पर जीवन काल, समय चक्र का निर्धारण करने में किया जाता है. इसमें कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच अनुपात निकाला जाता है. वैज्ञानिक निष्कर्षों में साबित हो चुका है कि कार्बन 14 का एक निर्धारित मात्रा का नमूना 5730 वर्षों के बाद आधी मात्रा का हो जाता है. ऐसा रेडियोधर्मिता क्षय के कारण होता है।