Champai Soren Story: कभी कहलाते थे हेमंत सोरेन के गुरुजी, आज हो गए बागी, जानिए 'कोल्हान टाइगर' चंपई सोरेन की पूरी कहानी

कभी कहलाते थे हेमंत सोरेन के गुरुजी, आज हो गए बागी, जानिए कोल्हान टाइगर चंपई सोरेन की पूरी कहानी

Champai Soren Story

Kolhan Tiger Champai Soren Story : झारखंड। जो व्यक्ति हेमंत सोरेन का सबसे ज्यादा विश्वसनीय था वह आज दिल्ली में विकल्प की तलाश कर रहा है। इस व्यक्ति का औहदा जानना हो तो इतना जान लीजिए कि, सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कई मौकों पर इनके पैर छूते नजर आए थे। झारखंड राज्य की मांग से लेकर आदिवासी, पिछड़े और मजदूरों के हक़ की लड़ाई में चंपई सोरेन ने अग्रणी भूमिका निभाई थी। आज झारखंड में परिस्थिति बदल गई है। भविष्य में क्या होने वाला है इसका जवाब तो समय देगा लेकिन आज हम आपको बताएंगे चंपई सोरेन की कहानी और झारखंड की राजनीति में आए इस उथल - पुथल की इनसाइड स्टोरी...विस्तार से।

झारखंड के मौजूदा हालातों पर चर्चा से पहले चंपई सोरेन के बारे में जान लेना बेहतर होगा।

67 वर्षीय चंपई सोरेन का जन्म सरायकेला-खरसावां जिले के जिलिंगगोड़ा गांव में हुआ। अब ये जगह झारखंड में आती है। चंपई सोरेन के पिता किसान थे। बहुत गरीब परिवार से आने वाले चंपई सोरेन एक सेल्फ मेड मैन हैं। जब वे स्कूल में थे तब झारखंड राज्य की मांग जोर - शोर से उठाई जा रही थी। वे भी आंदोलन में शामिल होना चाहते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि, वे कक्षा 10 वीं तक ही पढ़ाई कर पाए। इसके बाद उन्होंने झारखंड राज्य की मांग के लिए चलाए जा रहे आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लेना शुरू कर दिया।

झामुगो के गठन के बाद अहम भूमिका :

झारखंड की मांग के लिए शिबू सोरेन ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर 1973 में जब झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया तो चंपई सोरेन भी उनके साथ हो लिए। जेएमएम या झामुगो में युवाओं की भागीदारी के लिए उन्होंने जमीनी स्तर पर काफी काम किया। झारखंड राज्य की मांग के आंदोलन उनके लिए राजनीति की पाठशाला थी। झारखंड राज्य के गठन होते तक वे राजनीति में पारंगत हो गए।

कोल्हन टाइगर का ये किस्सा भी मशहूर :

जब झारखंड राज्य की मांग चरम पर थी तब चंपई सोरेन जमीनी स्तर पर काम कर रहे थे। 90 के दशक में असंगठित क्षेत्र के मजदूर अपनी मांगों को लेकर टाटा स्टील प्लांट के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। इस प्रदर्शन में चंपई सोरेन इन मजदूरों की आवाज बने। उन्होंने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए मजदूरों की मांग को प्रखर रूप से सबके सामने रखा। इसके बाद वे मजदुर वर्ग के बीच भी खासा पॉपुलर हो गए।

एक्सप्लोजिव एक्ट के तहत भी मामला हुआ था दर्ज :

साल 1993 में चंपई सोरेन के खिलाफ विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। 2019 के चुनाव आयोग के हलफनामे में उन्होंने इस मामले को "राजनीतिक" बताया था। उन्होंने कहा था कि, "यह मामला आर्थिक नाकेबंदी को सफल बनाने के लिए जेएमएम आंदोलन के दौरान एक राजनीतिक मामला है। यह मामला रेलवे की संपत्ति को नष्ट करने और बम विस्फोट करने के प्रयास से संबंधित था।"

राजनीति में कैसे आए चंपई सोरेन :

चंपई सोरेन के राजनीतिक जीवन की शुरुआत सरायकेला विधानसभा सीट से हुई। उन्होंने इस सीट पर हुए उप चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था। इस सीट से वे बस एक बार हारे थे वो भी भाजपा नेता से। तब से लेकर 2019 तक वे इस सीट से लगातार जीतते आए हैं। सरायकेला विधानसभा सीट से चंपई सोरेन 5 बार के विधायक हैं। कोल्हान क्षेत्र में इनका विशेष प्रभाव है।

अब बात करेंगे झारखंड के मौजूदा राजनीतिक हालात की...।

झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार थी, 31 जनवरी 2024 तक सबकुछ ठीक भी था। चंपई सोरेन अपने कार्यों में लगे थे हेमंत सोरेन अपने। फिर सीन में एंट्री हुई ईडी की। दरअसल, प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी जमीन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच कर रहे थे। सीएम हेमंत सोरेन को कई समन जारी हुए। इसके बाद 31 जनवरी की शाम को जब ईडी सीएम के आवास तक पहुंच गई तो लास्ट ऑप्शन था इस्तीफा।

हेमंत सोरेन के इस्तीफे के बाद चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बना दिया गया। उनके नाम से पहले कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा थी। खैर हेमंत सोरेन ने सीएम की कुर्सी संभालने के लिए चंपई सोरेन को चुना। अपने पिता, शिबू सोरेन के सबसे करीबी व्यक्ति से ज्यादा विश्वसनीय हेमंत के लिए और कौन हो सकता था।

चंपई सोरेन ने सीएम पद की शपथ ली और मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया। यहां तक भी सब कुछ ठीक था। फिर 5 महीने बाद हेमंत सोरेन अदालत के आदेश के बाद जेल से बाहर आ गए। अब असली खेला शुरू हुआ। खैर इन पांच महीनों में चंपई सोरेन को टेम्प्ररी सीएम का टैग मिला था। बावजूद इसके उन्होंने जी जान से काम किया। हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आते ही चर्चा होने लगी - चंपई सोरेन की विदाई की।

इस बारे में चंपई सोरेन ने खुद विस्तार से बताया कि, 'हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था। पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते।

'क्या लोकतंत्र में इस से अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, उधर से साफ इंकार कर दिया गया।'

बस यही वो टर्निंग पॉइंट था जब चंपई सोरेन और हेमंत सोरेन एक दूसरे के विपरीत हो गए। विधायक दल की बैठक में चंपई सोरेन से इस्तीफा मांगा गया। हेमंत सोरेन ने इसके तुरंत बाद सीएम पद की शपथ ले ली और चंपई सोरेन ने तय कर लिया कि, "अब जीवन का नया अध्याय शुरू करेंगे।"

स्थिति यह है कि, हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन के सबसे करीब और जेएमएम का एक वरिष्ठ नेता तिरस्कृत होकर दिल्ली पहुंचा है। कहा जा रहा है कि, वे भाजपा में शामिल हो सकते हैं। एनडीए के साथी दलों ने तो उनके स्वागत के लिए एक्स पर पोस्ट तक कर दिया है वहीं जेएमएम के नेता चंपई सोरेन के निर्णय और एक्स पोस्ट के बाद हैरान हैं।

अब झारखंड में आगे क्या होगा ?

चंपई सोरेन अभी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं लेकिन झारखंड में बड़ा राजनीतिक उथल पुथल मच गई है। चंपई सोरेन के साथ कुछ विधायक भी दिल्ली में मौजूद हैं। वे भी जेएमएम को छोड़ सकते हैं। यहां बता दें कि, 81 सीट (80 निर्वाचित, 1 मनोनीत) वाली झारखंड विधानसभा में इंडिया गठबंधन ठीक - ठाक बहुमत में है।

यहां देखिए किसके पास कितनी सीट :

जेएमएम के - 27

कांग्रेस - 18

भाकपा-माले -1

राजद - 1

विपक्ष :

भाजपा - 24

आजसू - 3

NCP (UP) - 1

निर्दलीय - 1

वर्तमान में स्थिति :

सीता सोरेन के इस्तीफे और 4 विधायकों के सांसद बन जाने से विधानसभा में कुल 77 विधायक रह गए । इससे बहुमत आंकड़ा 39 हो गया।

सरकार गिरेगी या नहीं :

अगर चंपाई सोरेन समेत 6 से 7 विधायक JMM छोड़कर BJP में आते हैं तो संभावना है कि, दलबदल कानून के तहत ये अयोग्य घोषित हो जाएं। अयोग्य घोषित होने के बाद झारखंड विधानसभा में 70 विधायक रह जाएंगे। फिर बहुमत का आंकड़ा 36 हो जाएगा। कुल मिलाकर सरकार नहीं गिरेगी लेकिन किरकिरी बहुत होगी।

चंपई सोरेन के जेएमएम से बगावत से इन्हें होगा फायदा :

हेमंत सोरेन के खिलाफ भाजपा परिवारवाद के मुद्द्दे को उठती रही है। अब जब चंपई सोरेन खुद कह रहे हैं कि, उन्हें इस्तीफ़ा दिलवाया गया, तो इससे नेगेटिव इमेज हेमंत सोरेन की बनी है।

चंपई सोरेन की बगावत के बाद भाजपा कितनी मजबूत होगी इस पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा लेकिन झामुगो कमजोर होगी यह बात तय है। चंपई सोरेन से सहानुभूति रखने वाले विधायक और नेता पार्टी के अंदर रहते हुए भी हेमंत सोरेन के नेतृत्व पर सवाल उठाएंगे।

इस पूरे प्रकरण के बाद जेएमएम के लिए इंडिया गठबंधन के तहत सीट शेयरिंग पर नेगोसिएशन थोड़ा मुश्किल भरा हो सकता है। इससे विधानसभा चुनाव की पूरी तस्वीर की बदल जाएगी।

कहां चूक गए हेमंत :

पार्टी के वरिष्ठ नेता से उसकी मर्जी के बिना विधायक दल की बैठक में इस्तीफा मांगना हेमंत सोरेन के लिए एक सेल्फ गोल साबित हुआ। जानकारों का कहना था कि, अगर हेमंत सोरेन जेल से बाहर आने के बाद विधानसभा चुनाव की तैयारी और पार्टी को मजबूत करने पर विचार करते तो ज्यादा बेहतर होता। इस तरह सत्ता के लिए ललायित होकर एक सीनियर लीडर को साइडलाइन कर देना राजनीति में अच्छा नहीं माना जाता।

जो होना था वह हो चुका है, सबकी निगाहें दिल्ली के झारखंड भवन पर हैं जहां चंपई सोरेन मौजूद हैं। उन्होंने क्या निर्णय लिया है ये सिर्फ वही जानते हैं। दिल्ली में होने वाले घटनाक्रम अब सीधे रांची को प्रभावित करेंगे यह तय है...।

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