छठ पर्व: प्रकृति और सूर्य के प्रति आस्था, श्रद्धा और कृतज्ञता का महापर्व...
गुरमीत सिंह: इस जगत की समस्त चल अचल रचनाओं के मूल में सूर्य ही प्रमुख कारक है। पृथ्वी की उत्पति ही सूर्य से हुई है। हमारे सौर मंडल के समस्त गृह उपग्रह इत्यादि मूलतः सूर्य से ही उत्पन्न हुए हैं। इसीलिए प्राचीन भारतीय ऋषियों तथा मुनियों ने अपने विभिन्न ग्रंथों में सूर्य को पिता की संज्ञा दी है। सूर्य है तो हम हैं,परम पिता के द्वारा स्वयं के अंश को सूर्य के माध्यम से ही पृथ्वी पर जीवन के रूप में रूपांतरित किया है।सनातन दर्शन के कर्णधारों तथा विचारकों के द्वारा सूर्य को आत्मा तथा चंद्रमा को मन के रूप में व्यक्त किया है।यह दर्शन ही संसार में मानवता की उत्तरोत्तर प्रगति तथा द्वंदों को परिचायक है। प्रात:काल सूर्य की उपासना तथा सूर्य नमस्कार की क्रिया वस्तुत: सूर्य के प्रति हमारी कृतज्ञता के ज्ञापन का प्रतीक है,तथा साथ ही प्रभात बेला में सूर्य की रश्मियों से ऊर्जा प्राप्त करने का अभिनव प्रकल्प है।
छठ पर्व का इतिहास
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की छठवीं तिथि को आस्था तथा श्रद्धा पूर्वक,सूर्य को नमन करने का पर्व,प्राचीन काल से ही छठ पूजा के रूप में मनाया जाता है।देश में सूर्योपासना ऋग्वेद कल से होती आ रही है। यह चर्चा विष्णु पुराण,भागवत पुराण,ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गई है।मध्य काल तक,छठ पर्व व्यवस्थित रूप से प्रतिष्ठित हो गया था।सृष्टि के विकास तथा पालन की दिव्य ऊर्जा के कारण,सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ साथ अलग अलग स्थानों पर विभिन्न पद्धतियों के रूप में प्रारंभ हो गई थी। भारत ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में अलग अलग स्थानीय नामों से सूर्य की आराधना की जाती रही है। वर्तमान इटली की राजधानी रोम में सूर्य को सोल के रूप में प्राचीन काल से पूजा जा रहा है।आंग्ल भाषा में सोल का अर्थ आत्मा से ही है।
सूर्य देव की वंदना
हमारे देश में सूर्य की देवता के रूप में वंदना का उल्लेख पहली बार ऋग्वेद में मिलता है।इसके बाद अन्य वेदों तथा पुराणों तथा उपनिषद आदि वैदिक ग्रंथों में सूर्य की उपासना तथा पर्व के रूप में चर्चा प्रमुखता से की गई है।वैदिक काल के अंतिम काल खंड में सूर्य देवता को मानवीय रूप में अभिकल्पित कर,जीवन आस्तित्व के प्रमुख स्त्रोत मानकर, पूर्ण आस्था भक्ति के साथ विभिन्न स्वरूपों में तथा पद्धतियों में आराधना की जाने लगी व पूरे देश में सूर्योपासना छठ के पर्व के रूप में अत्यंत श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है।
छठ पर्व आस्था का एक अनुपम रूपांकन
इस पर्व पर पंचतत्वों की वाहक प्रकृति की बहन को छठ देवी के पावन स्वरूप की आराधना की जाती है।छठ देवी की उपासना, प्रकृति के छठवें तत्व के रूप में निर्मल जल स्त्रोतों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर की जाती है।वस्तुत: सूर्य देव की अग्नि तथा प्रकाश से ही सूर्यांश पृथ्वी पर जल तथा वायुमंडल की स्थापना हुई।इन चारों तत्वों को दिव्य आकाशीय जीवन ऊर्जा के सानिध्य से पंचतत्व अर्थात प्रकृति का निर्माण हुआ।प्राचीन भारतीय सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति तथा पुरुष जो स्वयं परमेश्वरीय ऊर्जा का ही रूप है के, सानिध्य से ही इस धरा पर जीवन की उत्पति हुई है। अत: छठ पर्व की अभिकल्पना वास्तव में प्रकृति,सूर्य व परमेश्वर की समावेशित आराधना का उत्कृष्ट रूपांकन है।
ऊषा तथा प्रत्यूषा का अर्घ्य
छठ देवी के साथ ही सूर्य की शक्तियों के मुख्य स्त्रोत के रूप में उनकी दो अर्धांगिनियों क्रमशः ऊषा तथा प्रत्यूषा को संकल्पित किया गया है।सूर्य की पहली किरण को उषा तथा संध्या बेला में अंतिम किरण को प्रत्यूषा की संज्ञा दी गई है।इस प्रकार इस पावन पर्व पर सूर्य की पहली तथा अंतिम किरण को अर्घ्य देकर नमन किया जाता है।संपूर्ण देश विशेषकर पूर्वांचल में छठ पर्व अत्यंत उत्साह तथा श्रद्धा के साथ मनाया जाता है,इस अवसर पर देश भर से पूर्वांचल के वासी अपने निवास स्थान पर पहुंच कर,श्रद्धापूर्वक छठ माता तथा सूर्यदेव के प्रति अपनी अनन्य आस्था व उत्साह के साथ कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
परमेश्वर का आभार
वास्तव में जिन दिव्य शक्तियों के प्रताप से मानवता गतिमान है,उनके सदा आभारी रहना हमारा परम कर्तव्य है। सृष्टिकर्ता द्वारा निर्मित पंचतत्वों तथा निसर्ग के प्रति कृतज्ञता तथा आभार व्यक्त करना वास्तव में परमेश्वर के प्रति ही हमारी आस्था का प्रतीक है।इस पावन पर्व पर आस्तित्व तथा प्रकृति का आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी आत्मा को सूर्य के प्रकाश से आलोकित करें तथा अपने जीवन के मूल उद्देश्य आत्मिक आनंद की प्राप्ति करें।समस्त पाठकों को छठ पर्व की अनन्त शुभकामनाएं।