चीन को सता रहा दुनिया की सबसे ऊंची एयरस्ट्रिप का खौफ
डीबीओ तक सड़क निर्माण लगभग दो दशकों के बाद वर्ष 2020 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद
नई दिल्ली। सन 62 के युद्ध की बात और थी लेकिन पिछले 20 सालों में जिस तरह पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर सड़कों, पुलों और एयर स्ट्रिप तक का विकास हुआ है, उससे चीन का परेशान होना स्वाभाविक है। एलएसी के ऊपरी हिस्से दौलतबेग ओल्डी में एयरफोर्स और नीचे गलवान घाटी में भारतीय सेना की मौजूदगी ने ड्रैगन का पसीना छुड़ा दिया है। चीन को सबसे ज्यादा खौफ दौलत बेग ओल्डी स्थित दुनिया की सबसे ऊंची एयरस्ट्रिप से सता रहा है।
दरअसल जब सन 62 में चीन से भारत का युद्ध हुआ था तो उस समय के रिटायर्ड सेना के अधिकारी बताते हैं कि तब की परिस्थितियां विपरीत थीं। चाहे वह हथियारों के नजरिये से हो या आवाजाही के संसाधनों की कमी की वजह से। सड़कों, पुलों का विकास न होने से भारत-चीन युद्ध कठोर परिस्थितियों में हुई लड़ाई के लिए जाना जाता है। महज एक माह (20 अक्टूबर 1962 से 20 नवम्बर 1962) चले इस युद्ध में ज्यादातर लड़ाई 4250 मीटर (14,000 फीट) से अधिक ऊंचाई पर लड़ी गयी। चीनी सेना का उच्चतम चोटी क्षेत्रों पर कब्जा था, इसलिए वह इलाके का लाभ उठाने में सक्षम था। ऊंचाई और ठंड की स्थिति में भारत के तमाम सैनिक जमा देने वाली ठण्ड से ही युद्ध भूमि में शहीद हो गए। कुल मिलाकर 1962 का युद्ध भारतीयों द्वारा एक सैन्य पराजय और एक राजनीतिक आपदा के संयोजन के रूप में देखा गया। युद्ध के बाद भारतीय सेना में व्यापक बदलाव आये और भविष्य में इसी तरह के संघर्ष के लिए तैयार रहने की जरूरत महसूस की गई।
पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) का नक्शा बदलने की शुरुआत सही मायने में स्व. अटल बिहारी बाजपेई की सरकार से हुई। उस समय रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को लगा कि चीन का सीमा क्षेत्र अभी सेना के लिए अच्छी तरह तैयार नहीं है। इस कमी को दूर करने के लिए उन्होंने कुल 61 सामरिक स्थानों को चिन्हित किया और फैसला लिया गया कि पूरे लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर स्ट्रेटेजिक सड़कें बनाई जाएंंगी। भारत ने अपनी स्ट्रेटेजिक पहुंंच मजबूत करने के लिए कश्मीर से दौलतबेग ओल्डी तक सड़क बनाने का फैसला लिया। बाजपेई सरकार मेंं सड़क बनाने के लिए गए फैसले के मुताबिक सड़कें बनाने का कार्य तेजी से मोदी सरकार में शुरू हुआ।
दरअसल चीन को पहले लग रहा था कि भारत दौलतबेग ओल्डी (डीबीओ) तक सड़क नहीं बना पायेगा क्योंकि पहाड़ों को काटना और स्ट्रेटेजिक सड़क बनाना आसान नहीं होगा लेकिन चीन का माथा तब ठनका जब सड़क बनकर लगभग 80 प्रतिशत तैयार हो गयी। दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क का निर्माण कार्य लगभग दो दशकों के बाद वर्ष 2020 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है। यह सड़क दारबुक से अंतिम भारतीय ग्राम श्योक तक लगभग 255 किलोमीटर लम्बी है। यह सड़क भारत-चीन की सीमा एलएसी के लगभग समानांतर है जो 13,000 फुट से 16,000 फुट के बीच की विभिन्न बीच ऊंचाई से होकर गुजरती है। यह सड़क लेह को काराकोरम दर्रे से जोड़ती है तथा चीन के शिनजियांग प्रांत से लद्दाख को अलग करती है।
दौलतबेग ओल्डी सियाचिन के ठीक नीचे है और इसका सामरिक महत्व इसलिए ज्यादा है कि सियाचिन ग्लेशियर पूरी दुनिया का सबसे बड़ा मिलिट्री अड्डा है। दौलतबेग ओल्डी दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित हवाई पट्टी थी, जिसे चीन से 1962 के युद्ध के दौरान बनाया गया था लेकिन वर्ष 2008 तक इसका रखरखाव नहीं किया गया। 20O8 में भारतीय वायु सेना ने इसे दोबारा शुरू किया ताकि एलएसी के पास इसका उन्नत लैंडिंग ग्राउंड्स के रूप में उपयोग किया जा सके। वर्ष 2008 में एएन-32 सैन्य विमान तथा अगस्त 2013 में परिवहन विमान सी-130 जे-30 की यहां लैंडिंग कराई गई। इतना ही नहीं भारत के दौलतबेग ओल्डी की एयर स्ट्रिप पर सी-17 ग्लोबमास्टर और हरक्यूलिस एयरक्राफ्ट को उतारने से भी चीन को बहुत बड़ा झटका लगा है। चीन का असली डर दौलतबेग ओल्डी में भारतीय एयरफोर्स का मौजूद होना ही है क्योंकि भारत दुनिया की सबसे ऊंची एयरस्ट्रिप से चीन को भारत तुरंत पीट सकता है लेकिन चीन का वहां तक पहुंचना आसान नहीं है। इसके साथ ही गलवान घाटी हमेशा एयरफोर्स की नजर में रहती है और ऊपर से सेना मौजूद है। यानी सियाचिन में सेना और दौलतबेग ओल्डी में एयरफोर्स मिलकर चीन को हर समय करारा जवाब देने के लिए हमेशा तैयार है।
इस समय चीन से भारत के हिस्से में आने वाली जिस गलवान घाटी को लेकर विवाद मचा हुआ है, वह दौलतबेग ओल्डी से लगभग 10 किलोमीटर नीचे ही है। गलवान घाटी को जोड़ने के लिए 10 किलोमीटर की लिंक रोड बहुत तेजी से बन रही है। इस लिंक रोड के बनने पर भारतीय सेना सिर्फ आधे घंटे में गलवान घाटी पहुंच सकती है जिसमें अभी लगभग 8 घंटे लगते हैं। इसीलिए चीन इस सड़क का काम बंद करने के लिए भारत पर दबाव बना रहा है। इसके साथ ही भारत ने दर्बुक श्योक नदी पर 2019 में सुपर ब्रिज भी बना दिया है।