पटाखों का खतरनाक खेल: अतीत और वर्तमान की तुलना, पटाखों के बदलते स्वरूप और प्रभाव…

अतीत और वर्तमान की तुलना, पटाखों के बदलते स्वरूप और प्रभाव…
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डॉ. अंजना सिंह सेंगर: भारत में दीपावली, होली, और अन्य त्योहारों पर पटाखे जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है। ये पटाखे न केवल खुशियों और उत्सव का प्रतीक होते हैं, बल्कि यह परिवारों और समाज के मेलजोल का भी संकेत देते हैं। समय के साथ, पटाखों का उपयोग और प्रभाव बदलता गया है, जो आज एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और आधुनिकता के साथ पटाखों के उपयोग के कारण उत्पन्न समस्याएँ और भी जटिल हो गई हैं। वातावरण और स्वास्थ्य पर पटाखों के प्रतिकूल प्रभाव और उनके उपयोग को कम करने के वैकल्पिक उपाय क्या हो सकते हैं, आइये जानते हैं:—

अतीत और वर्तमान की तुलना

पटाखों का इतिहास देखें तो एक समय था जब उनका उपयोग सीमित और साधारण था:

पुराने समय में, पटाखों का प्रयोग गाँवों और छोटे कस्बों में होता था। इन क्षेत्रों में हरे-भरे पेड़, खुले स्थान और कम आबादी के कारण पटाखों का धुआँ जल्दी ही फैल जाता था और प्रदूषण का स्तर काफी कम रहता था। लोग सीमित आर्थिक साधनों के कारण छोटे और कम संख्या में पटाखों का उपयोग करते थे, जिससे उनका नकारात्मक प्रभाव भी सीमित होता था। जब कि वर्तमान परिदृश्य में स्थिति बिलकुल भिन्न है। शहरीकरण और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में पटाखों का उपयोग न केवल वायु और ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाता है, बल्कि यह जन-स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा बन गया है। पटाखों का धुआँ बंद और संकरी गलियों में जमा होकर श्वसन संबंधी बीमारियों को बढ़ावा देता है।

पटाखों के बदलते स्वरूप और प्रभाव:—

चुनौती पूर्ण बदलाव : समय के साथ पटाखों के आकार, ताकत और रंग-रूप में बड़े बदलाव आए हैं। आजकल के पटाखों में ऐसे रसायनों का उपयोग किया जाता है जो जलने पर विषाक्त धुआँ और हानिकारक धातुओं के कण छोड़ते हैं। बेरियम, सीसा, पोटेशियम नाइट्रेट जैसे रसायनों के कारण वायुमंडल में जहरीले कण फैलते हैं।

ध्वनि और वायु प्रदूषण :- आज के पटाखों में ध्वनि की तीव्रता पहले की तुलना में कहीं अधिक होती है। इनकी तेज आवाज से कानों के पर्दों पर बुरा असर पड़ सकता है, जिससे अस्थायी या स्थायी बहरेपन की समस्या हो सकती है। दूसरी ओर, पटाखों के जलने से उत्पन्न धुआँ श्वसन संबंधी रोगों का कारण बनता है, जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और एलर्जी।

प्रतिस्पर्धा और सामाजिक मानसिकता :—

सामाजिक प्रतिस्पर्धा की समस्या: वर्तमान में पटाखों का उपयोग केवल त्योहार मनाने तक सीमित नहीं रहा। लोग अब इसे दिखावे और प्रतिस्पर्धा का माध्यम मानते हैं। पड़ोसियों के बीच यह होड़ लगती है कि किसके घर से अधिक और बड़े पटाखे छूट रहे हैं। यह प्रवृत्ति समाज में तनाव और असंतोष बढ़ाती है।

स्वास्थ्य पर असर: तेज आवाज और वायु प्रदूषण से बच्चों और बुजुर्गों में शारीरिक और मानसिक समस्याएँ बढ़ रही हैं। बच्चों को ध्वनि से डर और नींद की कमी की समस्या होती है, जबकि बुजुर्गों को उच्च रक्तचाप और दिल की धड़कन की समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, पालतू जानवर भी पटाखों की आवाज से डर जाते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।

पर्यावरण पर प्रभाव —

वायुमंडल में जहरीले कण: पटाखों के जलने से निकलने वाला धुआँ वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसे हानिकारक गैसों की मात्रा को बढ़ाता है। ये गैसें वायु की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं और लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल बना देती हैं।

प्राकृतिक संसाधनों पर प्रभाव: पटाखों में उपयोग किए जाने वाले रसायन जलने के बाद मृदा और जल स्रोतों में मिल जाते हैं। इससे मिट्टी और पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे खेती और जल स्रोतों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप वनस्पतियों और वन्य जीवों के जीवन चक्र में बदलाव आता है।

वैकल्पिक समाधान :—

इस समस्या के समाधान के लिए जरूरी है कि हम पटाखों के स्थान पर वैकल्पिक और पर्यावरण-अनुकूल तरीकों को अपनाएँ:

1. सुरक्षित और रचनात्मक उत्सव: बिना पटाखों के त्योहार मनाने की पहल की जा रही है। लोग अब संगीत, रंगोली, दीपक जलाने और पारंपरिक नृत्य के माध्यम से त्योहारों का आनंद लेते हैं। इससे न केवल प्रदूषण कम होता है, बल्कि त्योहारों में खुशियाँ और शांति भी बरकरार रहती है।

2. जन-जागरूकता अभियान: पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाना जरूरी है। स्कूलों, कॉलेजों, और समाजिक संगठनों के माध्यम से लोगों को शिक्षित किया जा सकता है कि कैसे पटाखों का उपयोग उनके स्वास्थ्य और पर्यावरण को प्रभावित करता है।

3. सामूहिक गतिविधियाँ और आयोजनों की पहल: सामाजिक और सामूहिक रूप से त्योहार मनाने से पटाखों की जरूरत को कम किया जा सकता है। समूह में मनाए गए उत्सव न केवल अधिक आनंददायक होते हैं, बल्कि वे सामुदायिक संबंधों को भी मजबूत करते हैं।

4. इको-फ्रेंडली पटाखों का उपयोग: सरकार और समाज की ओर से पर्यावरण-अनुकूल पटाखों को बढ़ावा देना चाहिए। ऐसे पटाखे कम धुआँ और ध्वनि उत्पन्न करते हैं, जिससे पर्यावरण पर असर कम पड़ता है।

पटाखों का उपयोग आज एक गंभीर चुनौती बन चुका है, जो हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण, और समाज पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। हमें अपनी पारंपरिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें नए और सुरक्षित तरीके से मनाने की दिशा में प्रयास करना चाहिए।

एक जागरूक और जिम्मेदार समाज के रूप में, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी खुशियाँ दूसरों के लिए परेशानी का कारण न बनें। त्योहारों का असली उद्देश्य खुशियों का साझा करना और समाज में एकता को मजबूत करना है। हमें पटाखों के स्थान पर वैकल्पिक तरीकों से अपने उत्सवों को और भी खूबसूरत बनाने पर जोर देना चाहिए, ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण तैयार कर सकें। पटाखों के बिना भी उत्सव उतना ही रचनात्मक और आनंददायक हो सकता है, अगर हम उसे प्रेम और सौहार्द के साथ मनाने का संकल्प लें।

डॉ. अंजना सिंह सेंगर, लेखिका, साहित्यकार हैं….



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