मध्यप्रदेश में सत्ता वापसी की कांग्रेस की तमन्ना अब दिवास्वप्न

मध्यप्रदेश में सत्ता वापसी की कांग्रेस की तमन्ना अब दिवास्वप्न
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भोपाल। मध्य प्रदेश में उपचुनाव जीतकर सत्ता वापसी की कांग्रेस की तमन्ना अब उसके लिए दिवास्वप्न होती जा रही है। प्रदेश में विधानसभा के 27 क्षेत्रों के उपचुनाव के लिए उम्मीदवारों की तलाश कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है। पार्टी को ऐसे सक्षम और जनाधार वाले उम्मीदवारों की तलाश है, जो किसी भी कीमत पर चुनाव जीत जाएं। इसके लिए वह लगातार भाजपा के किले में सेंध लगाने की कोशिश में है। यह अलग बात है कि अब तक उसे इस मंसूबे में आंशिक कामयाबी भी नहीं मिल पाई है। आसन्न उपचुनाव के चलते प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गईं हैं लेकिन कांग्रेस की बड़ी परेशानी यह है कि उसका संगठन अभी भी अपनी मांद में ही बैठा नजर आ रहा है। जो जिताउ प्रत्याशी थे, वे सिंधिया संग भाजपा में चले गए हैं।

विधानसभा उप-चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे कांग्रेस की सांसें फूलने लगी हैं। उसे अभी भी इस बात का डर है कि कहीं उसके पाले से एक-दो विधायक और पाला न बदल लें। अगर ऐसा होता है तो वह रसातल में चली जाएगी। इसीलिए पार्टी विधानसभा वार जातीय समीकरण साधने में जुटी हुई है। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ जिताउ उम्मीदवारों की सूची तैयार करवाने में लगे हैं। उनकी निगाह भाजपा के असंतुष्ट नेताओं पर है।

कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि उपचुनाव में पार्टी का लक्ष्य जीत होगा और वह उसी व्यक्ति को उम्मीदवार बनाएगी जिसका जनाधार सबसे बेहतर होगा, भले ही वह भारतीय जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आने वाला नेता ही क्यों न हो। उम्मीदवार चयन के लिए पार्टी की एक्सरसाइज लगातार जारी है और क्षेत्रीय नेताओं से प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ लगातार संवाद और संपर्क भी कर रहे हैं।

कांग्रेस के प्रवक्ता अजय सिंह यादव ने कहा कि उम्मीदवार चयन को लेकर सर्वेक्षण पूरा हो चुका है। लेकिन अभी सूची को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि विधानसभा के उप-चुनाव राज्य की राजनीति में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं। उपचुनाव कांग्रेस के दलबदल करने वाले नेताओं के कारण हो रहे हैं। कांग्रेस दलबदल को ही मुद्दा भी बना रही है। उसके सामने सक्षम उम्मीदवार का चयन बहुत आसान नहीं है, क्योंकि जो जनाधार वाले नेता थे वे भाजपा में जा चुके हैं, फि र भी ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास अभी जनाधार वाले नेताओं की कमी है, हां उसे चयन सोच समझकर जरुर करना होगा।

गौरतलब है कि मार्च माह में पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 22 तत्कालीन विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर कमलनाथ सरकार गिरा दी थी। इसके बाद कांग्रेस के अंदरूनी झगड़े से आजिज आकर तीन और विधायकों ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। दो विधायकों के निधन के कारण कुल 27 सीटें रिक्त हुई हैं जिन पर उपचुनाव होना है। 230 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 116 विधायकों का समर्थन आवश्यक है। वर्तमान में भाजपाके पास 107 विधायक हैं जबकि कांग्रेस के 89 विधायक हैं, सपा, बसपा व निर्दलीय विधायक मिलाकर सात विधायक हैं। भाजपा को 27 स्थानों में से सिर्फ नौ स्थानों पर ही जीत मिलने पर पूर्ण बहुमत का आंकड़ा हासिल हो जाएगा। संख्या बल के हिसाब से फिलहाल कांग्रेस बहुत पीछे है, ऐसे में सत्ता वापसी का स्वप्न उउसके लिए दिवास्वप्न ही कहा जाएगा।

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