खड़गे जीते या थरूर, करनी पड़ेगी जी-हुजूर
- मधुकर चतुर्वेदी
गांधी परिवार की छाया में सम्पन्न हुए चुनाव में कांग्रेस को मिलेगा अध्यक्ष
नईदिल्ली /वेबडेस्क। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए सोमवार को वोटिंग संपन्न हो गयी। कल वोटों की गिनती के बाद तय हो जाएगा कि खड़गे जीते या थरूर। कांग्रेस को भले ही दीपावली से पहले अपना नया अध्यक्ष मिल जाए, पर इतना तो तय है कि पार्टी में अंतिम फैसला लेने का अधिकार गांधी परिवार के पास ही रहेगा और निर्वाचित अध्यक्ष को संगठन चलाने की जिम्मेदारी ही मिलेगी। कांग्रेस के 137 सालों के इतिहास में छठी बार अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ है। इस चुनाव के साथ ही अब 22 सालों के बाद ये पहला मौका होगा जब गांधी परिवार के बाहर का कोई व्यक्ति कांग्रेस का अध्यक्ष बनेगा। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर में टक्कर हुई। खड़गे की स्थिति मतदान से पूर्व ही मजबूत मानी जा रही थी, क्योंकि वह गांधी परिवार के काफी करीब हैं।
ऐसे में उनका ही कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय है। दूसरी ओर थरूर ने भी मजबूती से कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा, उन्हें पार्टी में बदलाव की इच्छा रखने वालों का समर्थन मिला, पर उसकी संख्या बहुत कम रही। प्रचार के दौरान खुद थरूर ने खड़गे को गांधी परिवार का फेवरेट तक बता दिया। कांग्रेस का अध्यक्ष खड़गे बनें या थरूर, इतना तो तय है कि भविष्य में भी कांग्रेस गांधी परिवार की छाया से निकल नहीं पाएगी। क्योंकि कांग्रेसी नेताओं को जी-हुजूरी की आदत एक परंपरा का रूप ले चुकी है। देश ने देखा भी था कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव से पूर्व सात राज्यों से प्रदेश इकाई ने राहुल गांधी को ही अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पारित कर जी-हुजूरी की परंपरा को और भी हवा दी थी। दरअसल कांग्रेस में जी-हुजूरी की पंरपरा को हमेशा से ही गांधी परिवार ने एक आदर्श माना है। गांधी परिवार का मानना रहा है कि सत्ता रहे या न रहे, जी-हुजूरी का सुरक्षा कवच उन्हें बचाए रखेगा और इसी जी-हुजूरी की परंपरा के नीचे वह सर्वशक्तिमान बने रहेंगे। गांधी परिवार पार्टी को मजबूत और सशक्त नेतृत्व तो देना चाहता है, पर इसका श्रेय वह किसी और देना भी नहीं चाहता है।
1885 में बनी कांग्रेस पार्टी के अब तक 88 अध्यक्ष रह चुके हैं। 73 सालों में से 38 साल नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य ही पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं। आजादी के बाद से अब तक गैर गांधी परिवार से आने वाले 13 अध्यक्ष बने हैं। इन 13 अध्यक्षों ने 35 साल कांग्रेस की कमान संभाली है। इतिहास पर दृष्टि डालें तो ध्यान में आएगा कि जिन्होंने जी-हुजूरी नहीं की, वह किनारे हो गए। गांधी परिवार और नरसिंह राव के रिश्ते सभी को पता हैं। सीताराम केसरी को किसी तरह से अपमानित कर हटाया गया, यह भी सबने देखा था। उसके बाद से पार्टी की कमान सोनिया गांधी के पास है। सिर्फ दो साल के लिए राहुल गांधी ने जिम्मेदारी संभाली थी। इस जी-हुजूरी के चलते कांग्रेस 20 से ज्यादा बार टूट चुकी है। कांग्रेस से टूटकर बनीं पार्टियां बाद में या तो कांग्रेस में ही मिल गयी या कांग्रेस के साथ गठबंधन कर बैठीं।
खैर कांग्रेस को अपना नया अध्यक्ष मिलने जा रहा है। नए अध्यक्ष को जी-हुजूरी को भूलकर गुलाम नबी आजाद के उन वक्तव्यों को स्मरण रखना पड़ेगा, जिसमें उन्होंने पार्टी छोड़ते समय कहा था कि बीमार कांग्रेस डॉक्टर की जगह कंपाउंडर से दवा ले रही है। फिलहाल आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि बदलाव की कवायद से कांग्रेस देश में राजनीतिक लाभ उठाएगी या जी-हुजूरी के रिमोट के साथ पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनावों में अपनों को ही कंट्रोल करती दिखेगी।