समय के साथ ही युद्ध के खतरों और चरित्र में भी बदलाव आ रहा है : रक्षामंत्री

समय के साथ ही युद्ध के खतरों और चरित्र में भी बदलाव आ रहा है : रक्षामंत्री
X

नईदिल्ली। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि समय बदलने के साथ ही खतरों और युद्धों के चरित्र में भी बदलाव आ रहा है। भविष्य में और भी सुरक्षा से जुड़े मुद्दे हमारे सामने आ सकते हैं। सीमाओं पर धीरे-धीरे संघर्ष इतना व्यापक होता जा रहा है, जिसकी पहले कभी कल्पना भी नहीं की गई थी। इस साल पूरा देश 1971 के युद्ध का स्वर्णिम वर्ष मना रहा है। पाकिस्तान के साथ इस युद्ध में हमारी सेनाओं ने अपने शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन किया था।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शुक्रवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सैन्य साहित्य महोत्सव-2020 के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज सैन्य साहित्य महोत्सव में आप सभी साहित्य प्रेमियों के बीच आकर मुझे बड़ी खुशी हो रही है। यह उत्सव धीरे-धीरे कानूनी जीवन और आम जनता को जोड़ने वाले सेतु के रूप में विकसित हो रहा है। यहां आकर लोग किताबों द्वारा सेना से जुड़ी सैद्धांतिक जानकारियां ले सकते हैं और साथ ही सेना के अफसरों और जवानों से संवाद करके उनके निजी और वास्तविक अनुभवों को भी जान सकते हैं। साथ ही सेना के ऑपरेशंस और उनकी कार्य प्रणालियों के बारे में भी जान सकते हैं। उन्होंने कहा कि मिलिट्री लिटरेचर को आमजन से जोड़ने के पीछे खुद मेरी भी गहरी रुचि रही है। मेरी बड़ी इच्छा है कि हमारी आने वाली पीढ़ियां, हमारे देश के इतिहास, ख़ासकर सीमाई इतिहास को जानें और समझें।

राजनाथ सिंह ने कहा कि रक्षा मंत्री का पद ग्रहण करने के साथ ही मैंने बकायदा एक कमेटी गठित की। यह हमारे सीमाई इतिहास, उससे जुड़े युद्ध, शूरवीरों के बलिदान और उनके समर्पण को सरल एवं सहज तरीके से लोगों के सामने लाने की दिशा में काम कर रही है। उन्होंने कहा कि समय-समय पर मैं खुद इन कामों की समीक्षा करके जरूरी दिशा-निर्देश देता रहता हूं। मेरा प्रयास रहता है कि हमारे देश की जनता अलग-अलग स्तरों पर हमारी सेनाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चीजों को अच्छी तरह से समझे और यथासंभव उसमें अपना योगदान भी दे।

महापुरुषों ने राष्ट्रीयता की अलख जगाई -

आधुनिक भारत पर प्रकाश डालते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, सरदार भगत सिंह और लाला लाजपत राय से लेकर प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद और माखनलाल चतुर्वेदी ने राष्ट्रीयता की अलख अपनी लेखनी से जगाई जो आज भी पाठकों के ह्रदय को राष्ट्रप्रेम के प्रकाश से भर देती है। हमारे देश में राष्ट्रीयता की भावना से साहित्य लिखे जाने की पुरानी परंपरा रही है। हिन्दी हो या पंजाबी या फिर गुजराती लगभग सभी भाषाओं में ऐसे लेखन हुए हैं, जिन्होंने अपने समय में लोगों के अंदर स्वदेश प्रेम की भावना को जागृत और विकसित किया है। हमारे यहां लिटरेरी और फ़िल्म फेस्टिवल्स का ट्रेंड तो रहा है पर मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल अपने आप में बिल्कुल नई शुरुआत है। डिफेंस और स्ट्रेटजी से जुड़े विषयों के साथ-साथ देश की संस्कृति, जय जवान-जय किसान, आत्मनिर्भरता और बॉलीवुड जैसे विषयों पर संवाद इस आयोजन को बहुत व्यापक बना देते हैं।

Tags

Next Story