राहुल से किया नाथ का वादा टूटा, अब कांग्रेस में दिग्विजय की चलेगी !
- लगातार तोड़फोड़ के बाद सवालों के घेरे में कांग्रेस प्रदेश नेतृत्व
भोपाल। मध्यप्रदेश में पिछले दिनों कांग्रेस से 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद कांग्रेस की तरफ से लगातार ये दावा किया जा रहा था, कि पार्टी की विचारधारा से सम्बन्ध न रखने वाले लोगों ने पार्टी छोड़ दी है, अब पार्टी में जो भी नेता हैं, वो खालिस कांग्रेसी है। लेकिन कांग्रेस के दावों का अब कोई आधार नजर नहीं आ रहा। कुछ रोज पहले प्रद्युम्न लोधी के विधायकी पद से इस्तीफे के बाद अब कांग्रेस की एक विधायक सुमित्रा देवी कासडेकर ने भी विधायकी के साथ कांग्रेस का दामन को छोड़ दिया। सुमित्रा देवी कासडेकर के इस्तीफे के साथ जहां सत्तारूढ़ भाजपा की आक्रामक राजनीति देखने को मिली, तो वहीं कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व कई तरह से सवालों में घिर गया और सवाल उठने लगे, कि आखिर वो क्या वजह है कि कांग्रेस के बड़े क्षत्रप अपने विधायकों को नहीं संभाल पा रहे हैं। खासतोर तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ की 40 साल के राजनीतिक अनुभव पर सवाल उठ रहे हैं, और सिर्फ क्षेत्र विशेष नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश के हरेक अंचल में कांग्रेस पार्टी अपनों की बगावत का शिकार हो रही है, जो कि ग्वालियर-चंबल से निकलकर बुंदेलखंड और अब वहां से मालवा निमाड़ तक जा पहुंची है।
कांग्रेस में इस तरह की बगावत के बाद पार्टी के नेतृत्व की भूमिका खुद व खुद सवालों में घिर जाती है, और सीधे सवाल खड़े होते हैं इस वक्त पार्टी के सर्वे सर्वा बने कमलनाथ पर। जो पहले मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री रहते अपनी ही सरकार के 22 विधायकों को विश्वास में नहीं ले सके, और अब मध्यप्रदेश कांग्रेस के मुखिया के साथ नेता प्रतिपक्ष के रुप में भी अपने विधायकों को काबू कर पाने में वह अक्षम सिद्ध हो रहे हैं, और पार्टी का दामन छोड़ने वाला हर विधायक उनकी नाकामियों को मुखरता के साथ उठा रहा है, कि कमलनाथ ने कभी छिंदवाड़ा से बढ़कर कभी कुछ सोचा ही नहीं, इसी कारण अन्य क्षेत्र के विधायकों को पार्टी में अपनी उपेक्षा महसूस हुई और वह अब अपनी पार्टी से बगावत कर रहे हैं।
सवालों में नाथ का नेतृत्व !
दरअसल इस टूट फूट के बाद सिर्फ बाहरी तौर पर ही नहीं, बल्कि आंतरिक तौर पर भी कमलनाथ के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं, और तो और पार्टी हाईकमान भी अब इसे लेकर थोड़ा तल्ख नजर आ रहा है। कांग्रेस के आंतरिक सूत्रों की बात करें, तो प्रद्युम्न लोधी के इस्तीफे के बाद राहुल गांधी ने कमलनाथ से फोन पर बात कर पार्टी विधायकों और पदाधिकारियों के पलायन को रोकने के लिए चर्चा की थी। उस वक्त कमलनाथ ने राहुल को यह विश्वास दिलाया था, कि अब आगे किसी भी तरह की दरक कांग्रेस में नजर नहीं आएगी, और वह खुद ही मोर्चा संभालेंगे। नाथ ने राहुल गांधी से किए वादे को निभाने के लिए कोशिशें भी शुरू कर दी थी, और बुंदेलखंड क्षेत्र में भाजपा के संपर्क में आए कुछ कांग्रेसी विधायकों से वन-टू-वन चर्चा कर उन्हें पार्टी से जुड़े रहने के लिए प्रेरित किया था। लेकिन शायद कमलनाथ यह नहीं समझ सके, कि अब भाजपा बुंदेलखंड नहीं, बल्कि मालवा निमाड़ को अपना लक्ष्य बनाने जा रही है और उसने एक अप्रत्याशित चेहरे सुमित्रा देवी कासडेकर को कांग्रेस से तोड़ लिया। इस घटनाक्रम के बाद पार्टी को बचाने संबंधी नाथ की किलेबंदी सवालों में घिर गई जाहिर है पार्टी आलाकमान भी इसे लेकर कमलनाथ से खुश नहीं होगा।
अब दिग्विजय खेमा होगा मजबूत !
आलाकमान की नजरों में कमलनाथ के कमजोर होने के बाद साथ दिग्विजय खेमा एक बार फिर मजबूत होकर उभरता नजर आ रहा है। पार्टी सूत्रों का दावा है, कि जिस स्थिति में कमलनाथ पार्टी को संभालकर रखने में असफल हो रहे हैं, ऐसे में अब दिग्विजय सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपे जाने के संकेत दिल्ली में बैठे कांग्रेस आलाकमान ने दिए हैं। दिग्विजय सिंह पार्टी विधायकों से वन-टू-वन चर्चा कर उन्हें पार्टी से जोड़कर रखने की कोशिश करेंगे। दावा है, कि आलाकमान ने दिग्विजय सिंह को इसकी इजाजत भी दे दी है और वह अपने काम में जुट गए हैं, संभव है कि वह जल्द ही बुंदेलखंड क्षेत्र का दौरा कर वहां पार्टी विधायकों से चर्चा करेंगे। इस संबंध में बुंदेलखंड से आने वाले दिग्विजय खेमे के नेता बृजेंद्र सिंह भी क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं और कांग्रेस के विधायकों के साथ लगातार बैठकें कर रहे हैं।