मप्र में OBC आरक्षण के बिना होंगे चुनाव, मुख्यमंत्री ने बताया- क्या होगा सरकार का आगला कदम
भोपाल। मप्र पंचायत चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 15 दिन के भीतर बिना अरक्षण पंचायत एवं नगर पालिका के चुनाव की अधिसूचना जारी करने के प्रदेश सरकार को निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ ही पिछले लंबे समय से ओबीसी आरक्षण को लेकर अधर में लटके पंचायत चुनाव का रास्ता अब साफ हो गया है।
अभी माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया है जिसका अध्ययन नहीं किया है। ओबीसी आरक्षण के साथ मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव हो इसके लिए रिव्यू पिटिशन दायर करेंगे और पुनः आग्रह करेंगे कि स्थानीय निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ हों।: मुख्यमंत्री श्री @ChouhanShivraj pic.twitter.com/Ce9Z0cUfdD
— Office of Shivraj (@OfficeofSSC) May 10, 2022
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई करते हुए अपने आदेश में कहा कि मध्यप्रदेश में बिना ओबीसी आरक्षण के ही स्थानीय निकाय के चुनाव होंगे। ओबीसी आरक्षण के मामले में प्रदेश की भाजपा सरकार की रिपोर्ट को कोर्ट ने अधूरा माना है। अधूरी रिपोर्ट होने के कारण मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग को चुनाव में आरक्षण नहीं मिलेगा। इसलिए अब स्थानीय चुनाव 36 प्रतिशत आरक्षण के साथ ही होंगे। इसमें 20 प्रतिशत एसटी और 16 प्रतिशत एससी का आरक्षण रहेगा। जबकि, शिवराज सरकार ने पंचायत चुनाव 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के साथ कराने की बात कही थी। इसीलिए यह चुनाव अटके हुए थे।
5 साल में चुनाव कराना सरकार की जिम्मेदारी
कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को दो हफ्ते में अधिसूचना जारी करने को कहा है। कोर्ट ने ये भी कहा कि पिछले दो साल से स्थानीय निकायों के करीब 23 हजार पद खाली पड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एमपी सरकार को फटकार लगाई है। 5 साल में चुनाव कराना सरकार की जिम्मेदारी है जिससे वे भाग नहीं सकती। आरक्षण के ट्रिपल टेस्ट को पूरा करने के लिए और समय नहीं दिया जा सकता।
सीएम शिवराज ने दी प्रतिक्रिया -
वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि हमने आदेश नहीं देखा है। प्रदेश में पंचायत चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ ही होंगे। इसके लिए हम कोर्ट में रिव्यू याचिका दायर करेंगे। इसके साथ ही हम फिर से आग्रह करेंगे कि स्थानीय चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ ही हो।बता दें कि मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग ने प्रदेश में ओबीसी की 45 फीसदी जनसंख्या को देखते हुए 35 प्रतिशत आरक्षण देने की अनुशंसा की थी। इसी मुद्दे को लेकर प्रदेश में पंचायत चुनाव का मामला अटक गया था। मामला हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था।