राष्ट्रीय राजधानी में घुसपैठियों का जाल: बांग्लादेशी घुसपैठिये कब तक भारत की सुरक्षा से खिलवाड़ करेंगे?

बांग्लादेशी घुसपैठिये कब तक भारत की सुरक्षा से खिलवाड़ करेंगे?
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मुनीष त्रिपाठी: हाल ही में दिल्ली पुलिस ने बांग्लादेशियों के फर्जी दस्तावेज बनाने वाले गिरोह का पर्दाफाश कर 12 सदस्यों को गिरफ्तार किया है। लगभग एक महीने बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है जोर शोर से घुसपैठियों का मुद्दा गरमाया हुआ है।

खुफ़िया रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली , एनसीआर सहित देश के प्रमुख महानगरों तथा देश के विशेष समुदाय की सैकड़ों बस्तियों में घुसपैठिये अवैध रूप से बस गए है। लाखों बांग्लादेशी घुसपैठिये और रोहिंग्या देश के लिये गंभीर सुरक्षा के लिये खतरा बन चुके है।

राजनैतिक कारण और कमजोर इच्छाशक्ति के चलते इस गंभीर विषय की अनदेखी की की गई। शायद ही भारत का कोई भी बड़ा शहर, कस्बा हो जहां संदिग्ध रूप से कुछ बाहरी लोग हाल ही में न बसे हो। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने 1914 में भारत में अनुमानित बांग्लादेशियों की संख्या लगभग दो करोड़ बताई थी।

इस प्रकरण का दुखद पहलू यह है कि घुसपैठ का मुद्दा केवल चुनाव के दौरान जोरशोर से उठता है परंतु चुनाव के बाद इसकी तीव्रता धूमिल हो जाती है। यदि हम देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की ही बात करें तो सबसे प्रमुख बात तो यह है कि दिल्ली सरकार और पुलिस से यदि पूछा जाए कि दिल्ली में कितने रोहिंग्या और बांग्लादेशी हैं तो इसका उत्तर गोलमोल ही मिलता है।

शायद राज्यों की पुलिस को भी नहीं पता कि कितने रोहिंग्या और बांग्लादेशी हैं ? हालांकि हाल ही में एलजी के आदेश के बाद दिल्ली पुलिस द्वारा घुसपैठियों, रोहिंग्याओं के खिलाफ तलाशी अभियान शुरू किया गया है। अच्छी बात है अब आप शासित दिल्ली नगर निगम ने भी अपनी तरफ से अभियान शुरू करने का फैसला लिया है।

एलजी ने दिल्ली पुलिस को अवैध अप्रवासियों की पहचान के लिए एक महीने तक विशेष अभियान चलाने के निर्देश दिये और केंद्रीय एजेंसियों के साथ समन्वय करके आगे की कार्रवाई करने के लिये कहा है। उन्होंने कहा कि सभी सरकारी एजेंसियों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि शहर में कहीं भी सार्वजनिक स्थानों पर कोई अनधिकृत कब्जा न हो जैसा कि भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है।

इस दौरान बीते 22 दिसंबर तक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जांच के दौरान मात्र 175 घुसपैठिये ही चिन्हित किये जा सके है। चूकि घुसपैठियों के खिलाफ अभियान सीमित अवध के लिए है ऐसे में घुसपैठिये दिल्ली छोड़कर आसपास के जिलों गाजियाबाद आदि में भाग सकते है। ऐसे में फिर इस अभियान पर पलीता लगा सकता है। इसलिए जरूरत है एक समेकित, कारगर और दीर्घकालीन अभियान शुरू करने की।

इस प्रकरण का दूसरा नाकारात्मक पहलू यह है कि इस मुद्दे पर आप और भाजपा के बीच राजनैतिक बयानबाजी शुरू हो गई है जिससे इस अभियान की सफलता पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है आप का यह बयान कि घुसपैठियों के बहाने भाजपा पूर्वांचल निवासियों पर निशाना साध रही है जो कि बिल्कुल तथ्य से परे है। ऐसे बयानों से अभियान की तीव्रता बाधित हो सकती है। ज़ब एलजी और एमसीडी दोनों अपनी अपनी ओर से घुसपैठियों के खिलाफ अभियान चला रहे है तो ऐसे में विरोधाभासी बयान की क्या आवश्यकता है।

घुसपैठिए दिल्ली-एनसीआर में हत्या, लूट, डकैती, चोरी और अन्य आपराधिक वारदात के जरिए अपराध का ग्राफ भी बढ़ा रहे हैं। सांप्रदायिक हिंसा करने में भी पीछे नहीं हैं। साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था बिगाड़ने के मकसद से नकली नोटों का कारोबार करने और सभी तरह के ड्रग्स की तस्करी भी करते हैं।

बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए दिल्ली-एनसीआर सबसे सुरक्षित ठिकाना है। इसका प्रमुख कारण इनके दस्तावेज दिल्ली में बड़ी ही आसानी से बन जाना है। केन्द्र सरकार ने भी माना है कि भारत पहले से ही बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों की घुसपैठ की गंभीर समस्या से जूझ रहा है।

बांग्लादेशी घुसपैठियों ने कुछ सीमावर्ती राज्यों (असम और पश्चिम बंगाल) की डेमोग्राफी ही बदल दी है। सरकार ने कहा, 'भारत में रोहिंग्या के अवैध प्रवास और उनके भारत में रहने की अनुमति देना सिर्फ गैर-कानूनी ही नहीं बल्कि सुरक्षा के लिहाज से बहुत गंभीर खतरे का मामला भी है।

असम की हिमंता सरमा सरकार घुसपैठ पर रोक लगाने में तो कामयाब रही है परंतु भारत सरकार की लचर आव्रजन नीति और राजनैतिक कारण से अवैध बांग्लादेशियों तथा रोहिंग्याओं को पूर्णरुप से वापस भेजने में सफल नहीं हो पा रही है ।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोहिंग्या और उनके समर्थकों की प्रत्यावर्तन के खिलाफ पैरवी करने की याचिका को खारिज करने के बाद भी सरकार रोहिंग्याओं को म्यांमार में उनके मूल स्थान पर वापस भेजने में असमर्थ है। भारत में घुस आए रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजना इसलिये भी जरूरी है कि ये लोग म्यांमार में हिंसा के दौरान वहां से भाग कर नहीं बल्कि साजिश के तहत पिछले एक दशक के दौरान आए हैं।

शंका इसलिए भी उठ रही है कि असम और बंगाल के शरणार्थी कैंपों को छोड़कर इतनी दूर ये दिल्ली, जम्मू कश्मीर तक कैसे आ गए ? गौरतलब है कि 2010 से लेकर अब तक रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या में करीब चार गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

जम्मू और दिल्ली में अब इन अवैध घुसपैठियों की बायोमीटिक, फिंगरप्रिंट, पासपोर्ट, शरणार्थी कार्ड आदि की जानकारी जुटाना शुरू किया गया है। यह कार्रवाई केंद्रीय गृह मंत्रालय के आठ अगस्त 2017 को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को लिखे पत्र का संज्ञान लेकर की गई है। इस पत्र में गृह मंत्रालय ने भारत में अवैध घुसपैठियों की बढ़ती संख्या और उससे पैदा होने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा संकट पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। रोहिंग्या म्यांमार के बांग्लाभाषी मुसलमान हैं।

राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में इनकी संलिप्तता के सबूत मिलते रहे हैं। एक प्रश्न के जबाब में गृह मंत्री ने राज्यसभा में बताया था कि वर्ष 2018 से 2020 के बीच भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने का प्रयास करने वाले तीन हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

इनमें सर्वाधिक संख्या बांग्लादेशी, पाकिस्तानी व म्यांमारी रोहिंग्या घुसपैठियों की है। गौरतलब है कि मात्र दो वर्षो में ही तीन हजार घुसपैठिये गिरफ्तार हुए हैं न जाने कितने अपने प्रयास में सफल भी हो गए होंगे। पिछले दो दशकों में ही न जाने कितने घुसपैठिये भारत में घुसकर कहां-कहां बस गए होंगे?

इन घुसपैठियों की पहचान और प्रत्यर्पण की बात करते ही कथित सेक्युलर जमात और एनजीओ सक्रिय हो जाती है। जांच में यह बात भी सामने आई है कि इन घुसपैठियों को भारत में बसाने के लिए पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब आदि मुस्लिम देशों से हवाला फंडिंग की जा रही है।

हवाला फंडिंग के माध्यम से कुछ एनजीओ, मदरसे, वेलफेयर सेंटर आदि चलाने की आड़ में इनकी सुगम बसावट सुनिश्चित करने में लगे है और जरूरी दस्तावेज बनवाने में भी इनकी मदद कर रहे है। भारत की खुफिया एजेंसियां अब इनके खुलासे में जुटी हुई हैं।

रोहिंग्या शरणार्थियों के सत्यापन की प्रक्रिया में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। बहुत से रोहिंग्या घुसपैठियों ने लेन-देन करके या सत्ताधीशों के साथ मिलीभगत कर राशन कार्ड, आधार कार्ड तथा वोटर कार्ड आदि बनवा लिए हैं।

एक और चिंता की बात यह है कि इनके बच्चे बहुत ज्यादा हैं जिससे उनकी पहचान करना मुश्किल हो रहा है। यह काम भी कई राज्यों में राजनीतिक शह पर ही हो रहा है ताकि वहां की जनसांख्यिकी को बदला जा सके और निर्णायक वोट बैंक तैयार किया जा सके।

सत्यापन-प्रक्रिया शुरू होते ही बहुत से रोहिंग्या दिल्ली और जम्मू छोड़कर इधर-उधर के इलाकों तथा अन्य राज्यों में भी खिसक जाते हैं। मगर इन दिक्कतों के बावजूद सत्यापन-प्रक्रिया पूरी प्रामाणिकता के साथ पूर्ण की जानी चाहिए और अवैध घुसपैठियों को हर हाल में प्रत्यर्पित किया जाना ही चाहिए।

केंद्र सरकार को किसी भी प्रकार के दबाव में न आकर इस मामले में सहयोग करना चाहिए। ऐसा करके ही राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता सुनिश्चित की जा सकती है। महाराष्ट्र में घुसपैठियों और रोहिंग्याओं की बढ़ती आबादी और उनके संगीन अपराधों में लिप्त होने के चलते महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए हाल ही में उनके लिए डिटेन्शन शिविर निर्माण करने का फैसला लिया है जो कि देर से ही सही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अच्छा कदम है।

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