स्वदेश की विशेष पड़ताल : एनजीओ द्वारा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के नाम पर करोड़ों का गोलमाल !

स्वदेश की विशेष पड़ताल : एनजीओ द्वारा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के नाम पर करोड़ों का गोलमाल !
X
'स्वदेश' ने पिछले दो वर्षों के आधार पर जमीनी पड़ताल करने की कोशिश की है, योजना के क्रियान्वयन से लेकर इसके डिजाइन तक में बड़ी बुनियादी खामियां हैं।

वेब डेस्क। हमारे नागरिक जीवन में विज्ञान औऱ तकनीकी सुगम्यता एवं सामान्य समझ विकसित हो इसके लिए सरकार जनभागीदारी से मैदानी वातावरण बनाने के लिए प्रयासरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर भारत में शोध और विकास यानी आर एंड डी पर विशेष जोर देते हैं। इसी उद्देश्य से मौजूदा केंद्र सरकार ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय को एक तरह से पुनर्गठित कर आम आदमी के नजदीक लाने का काम किया है। बेशक सरकार की मंशा देश में विज्ञान सम्मत लोकदृष्टि को विकसित करने की है लेकिन सिविल सोसायटी के नाम से भारत में खड़े एक माफिया सदृश्य वर्ग ने सरकार की इस अच्छी सोच को चूना लगाने में कोई कसर नही छोड़ी है।

विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी मंत्रालय की 'नवाचार' एवं 'नव प्रवर्तन' नाम से कुछ विशिष्ट योजनाएं प्रचलित हैं। इन योजनाओं के तहत शासकीय संस्थानों के अलावा सिविल सोसायटी संगठनों को धनराशि उपलब्ध कराई जाती है ताकि विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के नवोन्मेष एवं नवाचार पर व्यापक शोध किया जाए। सरकार विज्ञान की जागरूकता के लिए भी बड़ी धनराशि उपलब्ध कराती है। इसका उद्देश्य समाज में शैक्षणिक रूप से पिछड़े विशेषकर अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग में अंधविश्वास औऱ कथित चमत्कारों के चंगुल से उन्हें बचाना भी होता है।

भारत सरकार ने इस कार्य में एनजीओज को इस उद्देश्य से शामिल किया कि ये संगठन जनता के बीच तुलनात्मक रूप से ज्यादा जुड़े होते है। इस योजना की 'स्वदेश' ने पिछले दो वर्षों के आधार पर जमीनी पड़ताल करने की कोशिश की है। इस पड़ताल में कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं। यह प्रथम दृष्टया ही समझ आ रहा है कि योजना के क्रियान्वयन से लेकर इसके डिजाइन तक में बड़ी बुनियादी खामियां हैं। परिणामस्वरूप करोड़ों रुपये की सरकारी राशि एनजीओ की पहले से बदनाम कारगुजारियों की भेंट चढ़ती दिख रही हैं। आमजनों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने का उद्देश्य एक संगठित एनजीओ तंत्र के आगे बेमानी साबित हो रहा है। केंद्र और राज्य सरकार के मध्य इन योजनाओं में कोई प्रशासनिक समन्वय या मूल्यांकन जैसी व्यवस्था भी नही है। नतीजतन करीब 20 करोड़ रुपए अकेले मप्र में ही एनजीओ ने खर्च तो कर दिए हैं, लेकिन हमारी पड़ताल में यही नजर आता है कि यह धनखर्ची निरुद्देश्य साबित हो रही है।

इस पड़ताल को कल से स्वदेश में पढि़ए... सिलसिलेवार

Tags

Next Story