अखिलेश की सरकार बनती तो करते ये... खतरनाक काम, विशेष ग्रुप से किया था वादा

अखिलेश की सरकार बनती तो करते ये... खतरनाक काम, विशेष ग्रुप से किया था वादा
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गोरखपुर हमले के आरोपी मुर्तजा पर मेहरबान होने का आरोप

लखनऊ/वेबडेस्क। गोरखनाथ मंदिर पर हमले के आरोपी मुर्तजा के प्रति सपा प्रमुख अखिलेश यादव का नरम रुख सामने आया है। उन्होंने इस मामले में मानवीय पहलू से जांच की मांग की है। उन्होंने कहा है की मुझे पता चला है मुर्तजा मनोरोगी है। इसलिए इस जांच में मनोरोगी की भी मदद ली जानी चाहिए। इस बयान के बाद अखिलेश यादव की सभी जगह आलोचना हो रही है। पूर्व सीएम पर मुर्तजा के प्रति सहानुभूति और नरम रूख होने के आरोप लग रहे हैं। अखिलेश पर इससे पहले भी ऐसे आरोप लग चुके है।

आइए जानते है कब-कब लगे आरोप -

अखिलेश यादव ने वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी में सीरियल बम धमाकों के आरोपियों को जेल से रिहा कराने के लिए कोर्ट में याचिका लगाई थी। इस याचिका पर आतंकी तो रिहा नहीं हुए लेकिन उन्हें और उनकी सरकार को अदालत से जमकर फटकार जरूर मिली थी।

मेनिफेस्टो में वादा -

दरअसल, अखिलेश यादव ने साल 2012 के विधानसभा चुनाव के मेनिफेस्टो में जेल में बंद मुस्लिम समुदाय के आतंक के आरोपियों को रिहा करने और हर्जाना देने का वादा किया था। इसके साथ ही उन्हें गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारियों को दंडित करने का भी प्रावधान रखा गया था। अपने इस चुनावी ववादे को पूरा करने के लिए अखिलेश यादव ने सीएम पद की शपथ लेने के 7 माह बाद ही कोर्ट में सरकार की ओर से याचिका लगाई थी। यह याचिका मार्च 2006 को लखनऊ, वाराणसी, फैजाबाद में हुए सीरियल ब्लास्ट के आरोपियों को रिहा करवाने के लिए डाली गई थी।

आतंकवाद को बढ़ावा -

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार की इस याचिका को 23 नवंबर 2012 को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान जस्टिस आरके अग्रवाल और आरएसआर मौर्य की खंड पीठ ने कहा था की ""कौन तय करेगा कि कौन आतंकवादी है, कौन नहीं? मामला अदालत में तय होगा। सरकार कैसे तय कर सकती है कि आतंकवादी कौन है? क्या सरकार, आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ मामले वापस लेने के लिए कदम उठाकर, आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है? आज आप मामले वापस ले रहे हैं....कल आप उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित करेंगे।"

आरोपियों को सजा -

खास बात ये है की अखिलेश यादव ने जिन आतंकवादियों को रिहा करवाने के लिए कोर्ट में याचिका डाली थी। उन्हीं में से एक तारिक काजमी को 2015 में बाराबंकी अदालत से और 2020 में गोरखपुर अदालत ने आतंकी घटनाओं को अंजाम देने का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके अलावा दूसरे सह आरोपी मुजाहिद की फैजाबाद अदालत में सुनवाई के बाद लखनऊ जेल ले जाते समय तबीयत बिगड़ने के बाद हो गई थी।

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