हिन्दुओं का पूर्वी बंगाल से बांग्लादेश तक का सफर, जानिए कैसे हुई 33 से 6 फीसदी आबादी
नईदिल्ली/ वेबडेस्क। इस बार बंगाली समुदाय के वैश्विक त्यौहार दुर्गा पूजा के दौरान बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हुई हिंसक घटनाओं ने पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया। तोड़फोड़, मारकाट, पंडालों में आगजनी और एक इस्कॉन कार्यकर्ता की हत्या जैसी घटनाओं ने इस देश में रह रहे हिंदू आबादी की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खडे हो गये। वैसे बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर इस्लामी कट्टरपंथियों के सितम का पुराना इतिहास रहा है। यही वजह है कि बांग्लादेश से हिंदुओं का लगातार पलायन होता रहा।
साल 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर एक नए देश के रूप में अस्तित्व में आए बांग्लादेश का इतिहास रक्तरंजित रहा है। 4 नवंबर 1972 को स्वीकार किए गए नए संविधान में बांग्लादेश ने खुद को एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, लोकतांत्रित देश घोषित किया था। लेकिन यह संविधान महज 17 साल ही चल पाया और 7 जून 1988 में बंगलादेश ने खुद को मुस्लिम राष्ट्र घोषित कर दिया।
ऐसे घटी हिन्दू आबादी -
- 1901 में जब पूर्वी बंगाल का गठन हुआ था तब देश की कुल आबादी में 33 फ़ीसदी हिंदू थे।
- 10 सालों बाद 1911 में उनकी संख्या घट कर 31.50 फ़ीसदी पर जा पहुंचा। उसके बाद हर 10 साल पर होने वाली जनगणना में हिंदू आबादी तेजी से घटती रही।
- 1921 में 30.60 फीसदी,
- 1931 में 29.40 फीसदी,
- 1941 में 28 फीसदी,
- 1951 में 22.05 फ़ीसदी,
- 1961 में 18.50 फ़ीसदी,
- 1974 में 13.5 फीसदी,
- 1981 में 12.13 फ़ीसदी,
- 1991 में 10.51 फीसदी,
- 2001 में 9.60 फीसदी
- 2011 के अनुसार वर्तमान में 8.54 फ़ीसदी रह गई है।
बांग्लादेश के वर्तमान हालात और हिंदुओं की स्थिति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों की एक समाचार एजेंसी को दी गई राय -
डॉ. पंकज कुमार रॉय (प्रिंसिपल, योगेश चंद्र चौधरी कॉलेज) -
सन 1901 में, बांग्लादेश की हिंदू आबादी 33 फीसदी थी। आधी सदी बाद, 1947 की खंडित स्वतंत्रता के बाद, हिंदू आबादी घटकर 22.5 फीसदी रह गई। 1952 के भाषा आंदोलन या 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद भी हिंदू आबादी के पतन को रोकना संभव नहीं हुआ। आज बांग्लादेश में हिन्दुओं की आबादी घटकर महज 8.5 फीसदी रह गई है। हालांकि दुर्गा पूजा को दुर्गोत्सव में तब्दील कर दिया गया था, लेकिन प्रशासन के 'सबकी पूजा" के वादे के बावजूद, दुर्गा मंडप, मंदिर या हिंदुओं के घरों में धोखे से हमले किये गये। धार्मिक कट्टरता, काफिर महिलाओं के प्रति मोह, धन की लालसा और धार्मिक संघर्ष बांग्लादेश के सामाजिक जीवन में गहरे उतर गए हैं। एक दौर में हिंदू बहुल रहे अफगानिस्तान पर आज तालिबान का कब्जा है। ऐसा लगता है जैसे सिंधु घाटी सभ्यता के स्रोत पर हिंदू विलुप्त होने के कगार पर हैं।
डॉ मोहित रॉय (भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य एवं शरणार्थी मामलों की समिति के संयोजक)-
लोग अकाल, गृहयुद्ध, प्राकृतिक आपदाओं और आजीविका की तलाश में अपनी मातृभूमि छोड़ देते हैं लेकिन बांग्लादेश के हिंदुओं के पलायन के पीछे उपरोक्त में से कोई कारण नहीं रहा है बल्कि इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा किये गये उत्पीड़न, संपत्ति पर कब्जा, मंदिरों में तोड़फोड़ और अपवित्रता, महिलाओं के साथ बलात्कार और अभद्रता, धर्मांतरण की धमकी जैसे कारणों के चलते हिंदू अपनी मातृभूमि छोड़ रहे हैं। यह इस्लामी समाज में राष्ट्र पर कब्जा करने का एक सतत कार्यक्रम है।
निरंजन रॉय (पूर्व प्रधानाध्यापक जगबंधु हाई स्कूल-सुबह शाखा)-
1975 में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद बंगाली राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता की भावना को नष्ट कर दिया गया था। राष्ट्रपति इरशाद के शासन के दौरान, इस्लाम को संविधान में राज्य धर्म के रूप में स्वीकार किया गया था। परिणामस्वरूप, हिंदुओं की धार्मिक स्वतंत्रता बहुत कम हो गई। जमात-ए-इस्लाम और हेफ़ाज़त-ए-इस्लाम जैसे चरमपंथी समूहों की ताकत में इजाफा होता रहा। नतीजतन, हिंदू डर के मारे देश छोड़कर पलायन करते चले गए।