क्या है तालिबान, कैसे बना ताकतवर, कौन करता है संचालन, जानिए

क्या है तालिबान, कैसे बना ताकतवर, कौन करता है संचालन, जानिए
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वेबडेस्क । अफगानिस्तान में अमेरिका और तालिबान के बीच दो दशक तक चले संघर्ष के दौरान इसे सत्ता से हटा दिया गया था।जैसे ही अमेरिका ने 11 सितंबर तक अपनी वापसी पूरी करने की तैयारी की, दो दशकों के युद्ध के बाद, उग्रवादियों ने काबुल पर कब्जा कर लिया। जिसका मुख्य कारण अफगानिस्तान सरकार द्वारा बिना संघर्ष झुक जाना और राष्ट्रपति गनी का देश छोड़कर भागना है। जिसके बाद अमेरिका और इसके सहयोगियों द्वारा प्रशिक्षित अफगान सुरक्षाबलों ने घुटने टेक दिए।

अफगानिस्तान में अस्थिरता का दौर -

अफगानिस्तान में अस्थिरता का दौर पांच दशक पुराना है। 1933 में जाहिर शाह को शासन मिला। 1950 के दशक में शाह के प्रधानमंत्री मोहम्‍मद दाऊद ने सोवियत संघ से नजदीकी बढ़ाई। 1973 में तख्ता पलट कर सत्ता पर काबिज हो गया। 1979 में सोवियत हमले में दाऊद की मौत हो गई। यहाँ कम्युनिस्ट सरकार का गठन हुआ। 1989 में सोवियत ने पूरी तरह अफगानिस्‍तान खाली कर दिया। इसके बाद मुजाहिदीनों और सरकार के बीच संघर्ष हुआ। इसी बीच 1990 के शुरुआत में तालिबान का जन्म हुआ। जिसने 1996 आते- आते पूरे अफगानिस्तान पर नियंत्रण पा लिया।

क्या है तालिबान -


तालिबान का पश्तो भाषा में अर्थ होता है "छात्र" 1990 के दशक की शुरुआत में अफगानिस्तान से सोवियत सैनिकों की वापसी के बाद उत्तरी पाकिस्तान में उभरा। तालिबान का जन्म उत्‍तरी पाकिस्‍तान के मदरसों में हुआ। इन मदरसों में सुन्‍नी इस्‍लाम कट्टरपंथ की शिक्षा दी जाती है। तालिबान का मुख्य संस्थापक मुल्‍ला उमर को माना जाता है। जिसकी साल 2013 में मौत हो गई।

तालिबान का उदय -


अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत काल समाप्त होने के बाद जो गृहयुद्ध छिड़ा, उसके बाद 1990 के शुरुआती सालों में तालिबान का उदय हुआ।उस समय अफ़ग़ान लोग तालिबानियों को मुजाहिदीनों के मुकाबले ज्यादा पसंद करते थे। जिसका कारण तालिबान का वादा था कि भ्रष्‍टाचार और अराजकता खत्‍म कर देंगे। लेकिन तालिबान के हिंसक रवैये और इस्‍लामिक कानून वाली क्रूर सजाओं ने जनता में आतंक फैला दिया।तालिबान ने यहां शरिया कानून लगाते हुए कठोर फरमान जारी किए। जिसमें संगीत, टीवी और सिनेमा पर रोक लगा दी गई। मर्दों के लिए दाढ़ी बढ़ाना और महिलाओं के लिए सिर से पैर तक खुद को ढंकना और बुरका पहनना अनिवार्य हो गया। महिलाएं बिना पुरुष अकेले बाहर नहीं निकल सकती थीं।

कैसे करता है काम -


तालिबान का नेतृत्व शूरा नाम की काउंसिल करती है। इसमें 26 सदस्य होते है। यह काउंसिल क्‍वेटा से काम करती है।इसलिए इसे क्वेटा शूरा भी कहा जाता है।ये तालिबान के लिए फैसले लेने वाली सबसे बड़ी संस्था है।

वर्तमान में मावलावी हैबतुल्‍ला अखुंदजादा तालिबान का कमांडर है। उसके अलावा चार अन्य उसके सहयोगी और प्रमुख कमांडर है। जिसमें उमर का बेटा मुल्‍ला मोहम्‍मद याकूब, लिबान का सह-संस्‍थापक मुल्‍ला अब्‍दुल गनी बरादर, हक्‍कानी नेटवर्क का मुखिया सिराजुद्दीन हक्‍कानी और अब्दुल हकिम है। माना जा रहा है की यही पांच लोग अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी हुकूमत चलाएंगे।

ये है वर्तमान कमांडर -

मावलावी हैबतुल्‍ला अखुंदजादा -

ये शरिया कानून का जानकार और तालिबान का पूर्व चीफ जस्टिस है। इसे फतवों देने के लिए जाना जाता है। इसने अवैध संबंध रखने वालों और हत्यारों को मौत की सजा देने का फतवा जारी किया था। 25 मई 2016 को हिब्तुल्लाह अखुंदजादा को तालिबान का प्रमुख कमांडर बनाया गया है।

मुल्ला अब्दुल गनी बरादर -

यह तालिबान का साह संस्थापक है। यह तालिबान के संस्थापक उमर के समय संगठन का उपप्रमुख था। 2010 में अमेरिका और पाकिस्तान ने एक ऑपरेशन में बरादर को गिरफ्तार कर लिया था। जिसके बाद वह 2018 तक पाकिस्तानी जेल में रहा। जेल से रिहा होने के बाद से वह तालिबान के राजनीतिक प्रमुख के रूप में कतर में रह रहा है। बरादर ने अमरीका और तालिबान के बीच हुए दोहा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

मुल्ला मोहम्मद याकूब -

तालिबान के संस्थापाक मोहम्मद आमिर का बेटा है। इस साल तालिबान की रहबरी शूरा ने मोहम्मद याकूब को मिलिट्री विंग का कमांडर नियुक्त किया है। वह मुल्ला याकूब के नाम से जाना जाता है। इसे नरमपंथी रुख वाला नेता बताया जाता है।

सिराजुद्दीन हक्‍कानी -

सिराजुद्दीन हक्कानी मुजाहिदीन कमांडर जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा है। यह अपने पिता द्वारा बनाए गए हक्कानी नेटवर्क का संचालन करता है। ये नेटवर्क तालिबान के फाइनेंशियल और मिलिट्री प्रॉपर्टी की देखरेख करता है। इसी नेटवर्क को आत्मघाती हमलों का हमले शुरू करने का श्रेय जाता है।

मुल्ला अब्दुल हकीम -

अब्दुल हकिम तालिबान की शांतिवार्ता दल का सदस्य है। वर्तमान में यह धार्मिक स्कॉलर्स की पावरफुल परिषद का प्रमुख है। बताया जाता है की तालिबान प्रमुख हिबतुल्लाह अखुंदजादा का वफादार और भरोसेमंद होने की वजह से सभी प्रमुख फैसलों में इसकी भूमिका तय रहती है।

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