Ratan Tata and PM Modi: 2008 में 'सुस्वागतम' कहकर नरेंद्र मोदी ने रतन टाटा का किया था वेलकम, ताउम्र निभाई दोस्ती

2008 में सुस्वागतम कहकर नरेंद्र मोदी ने रतन टाटा का किया था वेलकम, ताउम्र निभाई दोस्ती
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Ratan Tata and PM Modi : सड़क पर दौड़ती छोटी से नैनो कार, एक लाख रुपए की कीमत की इस कार का सपना रतन टाटा ने उस समय देखा था जब बारिश में एक परिवार भीग रहा था। अपनी कार में बैठे रतन टाटा इस परिवार को देख यह सोचने लगे कि, क्यों न ऐसी कार बनाई जाए जिसे मिडिल क्लास लोग अफोर्ड कर पाएं। इस कार को बनाने की राह इतनी आसान नहीं थी। कार बनाने के लिए रतन टाटा को पश्चिम बंगाल से गुजरात तक का सफर तय करना पड़ा। इस सफर में ही नरेंद्र मोदी और रतन टाटा मित्र बने। 2008 में 'सुस्वागतम' कहकर जब नरेंद्र मोदी ने गुजरात में रतन टाटा का वेलकम किया तो दोनों के रिश्ते और मजबूत हो गए।

2008 में जो कुछ हुआ उसकी पृष्ठभूमि सालों पहले से तैयार होने लगी थी। कहानी पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी के शासन से शुरू होती है। पश्चिम बंगाल में लम्बे समय तक कम्युनिस्ट पार्टी का शासन रहा। कम्युनिस्ट विचारधारा के अनुसार उद्योग और बड़ी - बड़ी इंडस्ट्री मजदूरों का दमन करने के लिए होती है। इस विचारधारा के तहत किसान और मजदूरों को ज्यादा अहमियत दी जाती है। ज्योति बसु ने पश्चिम बंगाल में अपने कार्यकाल के दौरान भूमि सुधार के लिए कई अहम फैसले लिए। इसके तहत एक व्यक्ति कितनी जमीन रख सकता है यह तय किया गया। बड़े - बड़े जमींदारों से जमीन लेकर भूमिहीन किसानों और मजदूरों को बांटी गई। सीपीआई सरकार के इन फैसलों ने आम जनता के बीच कम्युनिस्ट विचारधारा को इतना मजबूत बना दिया कि, इंदिरा और राजीव गांधी की वेव में भी कम्युनिस्ट पार्टी का झंडा ऊंचा बना रहा।

सीएम पद की कमान बुधदेव भट्टाचार्य के हाथों में :

जब ज्योतिबसु उम्रदराज हो गए तो कम्युनिस्ट पार्टी ने राज्य में सीएम पद की कमान बुधदेव भट्टाचार्य के हाथों में आई। 2001 में जब बुधदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में सीपीआईएम दोबारा प्रचंड बहुमत से सरकार में आई। कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा के हिसाब से सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन वक्त बदलाव मांगता है। 1977 में कम्युनिस्ट पार्टी के शासन से बाद से लागू किए गए सुधार कार्य साल 2000 में विकास के लिए न काफी साबित हो रहे थे। बुधदेव भट्टाचार्य को जब मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली तो उन्होंने तय किया कि, अब राज्य में बड़े उद्योग को भी बढ़ावा दिया जाएगा।

कम्युनिस्ट पार्टी के नेता बुधदेव भट्टाचार्य द्वारा बड़े उद्योग की स्थापना का यह निर्णय कई लोगों के लिए चौंकाने वाला था। उस समय पश्चिम बंगाल में 60 प्रतिशत से अधिक भूमि कृषि की भूमि थी। ऐसे में बड़े उद्योग की स्थापना का मतलब था किसानों से भूमि अधिग्रहित करना। जैसे तैसे बुधदेव भट्टाचार्य की सरकार ने राज्य में बड़े उद्योग स्थापित करने के लिए योजना बनाई और फिर राज्य में हुई नैनो के मैनुफैक्चरिंग पलांट और रतन टाटा की एंट्री।

टाटा के नैनो प्लांट के लिए सिंगूर में जमीन :

18 मई 2006 को पश्चिम बंगाल के हुगली में सिंगूर क्षेत्र की एक हजार एकड़ जमीन को बुधदेव भट्टाचार्य की सरकार ने अधिग्रहित कर टाटा के नैनो प्लांट को देने का निर्णय लिया। यह निर्णय कम्युनिस्ट विचारधारा के बिलकुल विपरीत था। इस निर्णय ने पश्चिम बंगाल की राजनीति को पलट कर रख दिया। सिंगूर क्षेत्र की सरकार के इस फैसले से खुश नहीं थी। 25 मई 2006 को जब टाटा के अधिकारी सिंगूर में जमीन देखने पहुंचे तो सिंगूर के लोगों ने विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।

इसके बाद जुलाई में भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई शुरू हुई। हजारों किसानों ने डीएम ऑफिस के बाहर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। धीरे - धीरे स्थिति और गंभीर होती जा रही थी। सरकार किसानों को समझा नहीं पा रही थी और न किसान स्थिति को समझ रहे थे। सीपीआई सरकार के सालों के शासनकाल में ऐसा पहली बार हुआ था जब लोगों को यह लगाने लगा कि, सरकार उनसे जमीन लेकर बड़े उद्योग को दे देगी और फिर से वे उनका दमन किया जाएगा।

अधिग्रहित की गई जमीन टाटा को सौंप दी गई :

इस मामले में फिर हुई एंट्री टीएमसी की। स्थानीय नेता अब सिंगूर के लोगों की तरफ से सरकार का विरोध करने लगे थे। 25 सितंबर को सिंगूर में अधिग्रहित की गई जमीन टाटा को सौंप दी गई। टीएमसी समेत स्थानीय लोगों ने जमकर विरोध किया। ममता बनर्जी खुद इस आंदोलन में उतरीं थी। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सिंगूर में जो कुछ हो रहा था अब उसकी खबरें पश्चिम बंगाल के कोने - कोने में गूंजने लगी थी।

सिंगूर में विजयदशमी के दिन लोगों ने घरों में लाइट नहीं जलाई। जब इससे बात नहीं बानी तो घर के चूल्हे भी जले। कुछ समय बाद इस आंदोलन में यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर और टीचर समेत NGO शामिल हो गए। विरोध बढ़ता देख ज्योति बासु ने बुधदेव सरकार को उनके निर्णय पर दोबारा विचार करने की सलाह दी लेकिन बुधदेव अपने निर्णय पर कायम रहे।

भूख हड़ताल पर बैठ गईं ममता बनर्जी :

4 दिसंबर को ममता बनर्जी भूख हड़ताल पर बैठ गईं। राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम समेत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने पत्र लिख ममता बनर्जी से भूख हड़ताल ख़त्म करने के लिए कहा लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी। 24 वे दिन ममता बनर्जी ने भूख हड़ताल ख़त्म कर दी लेकिन सिंगूर आंदोलन जारी रहा।

सिंगूर प्लांट बंद नहीं होगा ऐसा सोचने वाले गलत :

एक तरफ आंदोलन जारी था दूसरी ओर टाटा का प्लांट बनाया जा रहा था। लोगों ने तय कर लिया था इस प्लांट में काम चलने नहीं देंगे। कभी अधिकारियों को पीटा जाता तो कभी प्लांट से सामान चोरी हो जाता। इन सबसे रतन टाटा अब परेशान हो चुके थे। उन्होंने आख़िरकार एक बयान दिया। इसमें उन्होंने कहा कि, "जिन्हें लगता है डेढ़ हजार करोड़ रुपए के निवेश के बाद टाटा अपना सिंगूर प्लांट बंद नहीं करेगा तो यह उनकी ग़लतफ़हमी है। मैं अपने अधिकारियों और कर्मचारियों को पिटते नहीं देख सकता।"

इसके बाद ममता बनर्जी ने कहा कि, धमकियों से पीछे हटने वाली नहीं हैं। वे शांतिपूर्ण आंदोलन का वादा करके सिंगूर गई और टाटा के प्लांट के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया। शांति पूर्ण आंदोलन उग्र तब हो गया टाटा प्लांट के वर्कर को पीटा गया और प्लांट के कर्मचारियों को लाने ले जाने वाली बस को रास्ते में ही रोक दिया गया।

मोदी ने टाटा को गुजरात के साणंद में प्लांट लगाने के लिए इन्वाइट किया :

इन सब स्थिति को देखते हुए गुजरात और ओडिशा समेत कई राज्यों ने टाटा को अपने राज्य में प्लांट लगाने के लिए इन्वाइट किया। बाद में पश्चिम बंगाल सरकार ने किसानों के लिए बेहतर मुआवजे की घोषणा की लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने टाटा को गुजरात के साणंद में प्लांट लगाने के लिए इन्वाइट किया। उन्होंने सुस्वागतम कहते हुए रतन टाटा का स्वागत किया। पश्चिम बंगाल के एक्सप्रीरिएंस के बाद जिस तरह से नरेंद्र मोदी ने रतन टाटा का स्वागत किया, उस समय को रतन टाटा ने ताउम्र याद रखा।

साणंद में चुनी गई जमीन का टाटा परिवार से ऐतिहासिक संबंध :

गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने साणंद में 3.5 लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से 1,100 एकड़ की शानदार जमीन की पेशकश की। इससे कंपनी के स्थानांतरण संकट का समाधान हो गया। ऐसा कहा जाता है कि सिंगुर से टाटा मोटर्स के बाहर निकलने की घोषणा के बाद नरेंद्र मोदी ने रतन टाटा को एक शब्द का एसएमएस - सुस्वागतम - भेजा था, जिसमें गुजरात में परियोजना का स्वागत किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि साणंद में चुनी गई जमीन का टाटा परिवार से ऐतिहासिक संबंध था। एक सदी से भी पहले, जमशेदजी टाटा ने भयंकर सूखे के दौरान उसी जमीन पर एक मवेशी फार्म स्थापित करने के लिए 1,000 रुपये दान किए थे।

टाटा ने करोड़ों की लागत वाली इमारतें पीछे छोड़ दीं :

इसके बाद के महीनों में, टाटा मोटर्स ने अपने उपकरण सिंगुर से साणंद स्थानांतरित कर दिए, और करोड़ों की लागत वाली इमारतें पीछे छोड़ दीं। 2 जून 2010 को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में रतन टाटा ने 2,000 करोड़ रुपये की लागत वाले साणंद प्लांट का उद्घाटन किया, जिससे कंपनी और क्षेत्र के लिए एक नए युग की शुरुआत हुई। साणंद में टाटा के निवेश ने जल्द ही अन्य प्रमुख निवेशकों को आकर्षित किया। 2011 में, फोर्ड ने पास में एक प्लांट स्थापित करने के लिए 4,000 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की। प्यूज़ो, हिताची और कैडिला हेल्थकेयर जैसी कंपनियों ने गुजरात में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, अरबों डॉलर का निवेश किया और राज्य को एक औद्योगिक पावरहाउस में बदल दिया।

रतन टाटा को याद करते हुए क्या बोले पीएम मोदी :

रतन टाटा के निधन के बाद उन्हें याद करते हुए पीएम मोदी ने कहा, "मेरा मन श्री रतन टाटा जी के साथ अनगिनत बातचीत से भरा हुआ है। जब मैं सीएम था, तब मैं उनसे अक्सर गुजरात में मिलता था। हम विभिन्न मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान करते थे। मुझे उनके दृष्टिकोण बहुत समृद्ध लगते थे। जब मैं दिल्ली आया, तब भी ये बातचीत जारी रही। उनके निधन से बेहद दुखी हूं। इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार, दोस्तों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति।"

भारत के औद्योगिक परिदृश्य को आकार देने में रतन टाटा की विरासत और प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके स्थायी संबंध को हमेशा याद किया जाएगा। उनका योगदान प्रेरणादायी बना हुआ है, भले ही देश अपने सबसे प्रतिष्ठित कारोबारी को विदाई दे रहा हो।

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