भारत-चीन को उसी की भाषा में देगा जवाब

भारत-चीन को उसी की भाषा में देगा जवाब
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- मौजूदा हालात को लेकर तीनों सेनाओं ने तैयारियों का ब्लूप्रिंट भी पीएम को सौंपा - भारत ने लद्दाख में एयरफोर्स का मूवमेंट भी बढ़ाने का फैसला लिया - चीन ने भी अपने सैनिकों को एक ऑपरेशन के लिए तैयार रहने के आदेश दिए

नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच एलएसी पर चल रहे तनाव को कम करने के लिए कमांडर स्तर पर छह दौर की वार्ता विफल होने के बाद अब भारत भी इस बार चीन को उसी की भाषा में जवाब देने और आरपार के मूड में है। मौजूदा हालात को लेकर तीनों सेनाओं ने तैयारियों का ब्लूप्रिंट भी पीएम को सौंपा है।

उच्च-स्तरीय भारतीय और चीनी सैन्य कमांडरों के बीच 22 मई और 23 मई को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पूर्वी लद्दाख में मौजूदा समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की गई लेकिन वार्ता बेनतीजा रही। इसके बाद भी कमांडर स्तर की चार बार बातचीत हुई लेकिन भारत और चीन के अपने-अपने हितों पर अड़े रहने से समस्या जस की तस बनी रही।

छह बार कमांडर स्तर की वार्ता विफल होने के बाद रक्षामंत्री राजनाथ सिंह मंगलवार को चीफ आर्मी ऑफ स्टाफ (सीडीएस), तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ बैठे और विचार मंथन करके फैसला लिया गया कि भारत की सीमाओं की पवित्रता बनाए रखने के संबंध में कोई समझौता नहीं किया जाएगा। भारत शांति में विश्वास करता है और अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए दृढ़ है। यहां तक ​​कि भारतीय रक्षा मंत्री ने आदेश दिया कि भारतीय सेना एक इंच भी पीछे नहीं हटेगी बल्कि और ज्यादा अलर्ट मोड में होना चाहिए। भारत ने लद्दाख में एयरफोर्स का मूवमेंट भी बढ़ाने का फैसला लिया है।

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने एलएसी भारतीय सैनिकों की तैनाती के बारे में जानकारी ली और चीनी तनाव के मद्देनजर भारतीय सेना को पूरा सहयोग करने का आश्‍वासन दिया। दरअसल लद्दाख में स्थिति 'संवेदनशील' नहीं 'खतरनाक' है। भारत की रणनीतिक पोस्ट एलएसी के बहुत करीब है, जहां भारत ने हाल ही में 6000 सैनिकों को तैनात किया है। इसके अलावा अन्य बेस कैंपों में भारी संख्या में भी सैनिक मौजूद हैं।

इसके बाद मंगलवार को ही देर रात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत और चीन के बीच लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर चल रही तनातनी पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल विपिन रावत, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह औऱ तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ बैठक की। तीनों सेनाओं की तरफ से लद्दाख में चीन के साथ बने हालात पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विस्तृत रिपोर्ट दी गई।

प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला से भी बातचीत की। सशस्त्र बलों ने चीन सीमा पर स्थिति से निपटने के लिए सैन्य विकल्पों पर भी शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व को जानकारी दी है। साथ ही सेनाओं की तैयारियों का खाका पेश किया।

इधर जब नई दिल्ली में सुरक्षा बैठक चल रही थी तो दूसरी ओर चीनी राष्ट्रपति ने अपनी सेना को अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए हर स्थिति के लिए तैयार रहने को कहा। साथ ही चीनी सैनिकों को एक ऑपरेशन के लिए तैयार रहने के आदेश दिए हैं।

भारतीय सेना का कहना है कि हम एलएसी के साथ भारतीय क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और सड़क निर्माण का कार्य जारी रखेंगे। चीनी आपत्तियों के बावजूद हमने पहले भी एलएसी के साथ कई पोस्ट स्थापित की थी और सड़क सीमा संगठन (बीआरओ) ने 73 रणनीतिक सड़कों में से 61 सड़कों का निर्माण किया था।

नेपाल की आपत्तियों पर तवज्जो नहीं

दूसरी तरफ 8 मई को कैलाश मानसरोवर मार्ग को 17,060 फीट की ऊंचाई पर लिपुलेख दर्रे से जोड़े जाने पर नेपाल ने विरोध करना शुरू कर दिया। यहां तक कि राजनीति नक्शा जारी करके लिपुलेख और काला पानी पर अपना दावा पेश किया। इसी के बाद सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने 15 मई को जब यह कहा कि इसके पीछे 'किसी और का हाथ' है, तभी से नेपाल ने और ज्यादा भड़का हुआ है।

हालांकि भारत में नेपाल के राजदूत ने पिछले महीने की शुरुआत में एक जरूरी बैठक के लिए विदेश मंत्रालय को एक अनुरोध प्रस्तुत किया था लेकिन आर्मी चीफ के बयान के बाद 21 मई को फिर बैठक के लिए अनुरोध किया लेकिन नेपाली दूत को अभी तक बैठक की कोई तारीख नहीं दी गई है।

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